इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय चुनावो में काफी हद तक निर्णायक भूमिका निभाते है। चनाव आते ही मुस्लिम हित की बाते करने वाले नेताओं की लाइन लग जाती है लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनका कोई पुरसा हाल नही होता। 2017 में उत्तरप्रदेश के विधानसभ चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने तरीके से प्रयास शुरू कर दिए हैं। प्रदेश के लगभग 17 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता किसी भी राजनीतिक दल का भविष्य बनाने या बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते आये है। यह बात साफ है कि प्रदेश की 403 में से 100 से अधिक सीटों पर मुस्लिम मतदातों के द्वारा ही हार जीत का निर्णय होता है। हर बार की तरह इस बार भी चुनाव आते ही सभी प्रमुख दल सपा, कांग्रेस, बसपा मुस्लिमों को अपनी ओर रिझाने में लग गये है लेकिन इस बार मामला त्रिकोणी नहीं रहा क्योकि मुस्लिम विरोधी कही जाने वाली भाजपा भी इस बार मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जी तोड़ कोशिश में लगी है। फिलहाल अभी ये कहना जल्दबाजी होगा कि प्रदेश का मुसलमान किसके साथ जायेगा। लेकिन ये बात तय कि इस बार मुसलमान जल्दी किसी के बहकावे में नहीं आने वाला है।
भाजपा की कोशिश
मुस्लिम विरोधी चेहरा होने के बावजूद भाजपा इस बार मुस्लिम समुदाय को अपने साथ लाने में लगी हुई है जबसे केंद्र में भाजपा सरकार बनी है तबसे लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा मुसलमानों को देश भक्त बताना और उनको पूरी सुरक्षा देने की बात कहना इस बात की ओर इशारा करता है कि मोदी सबका साथ सबका विकास वाले रास्ते पर चलकर प्रदेश का अगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इसके अलावा केंद्र सरकार के एक साल पूरा होने पर जन जन जक सरकार की उपलब्धियां पहुंचाने के लिए पंपलेटो और बुक को उर्दू में छाप कर मुस्लिम बहुल इलाकों में बांटने के फैसले से विपक्षियों में हलचल मच गई है।
बसपा का भी जागा मुस्लिम प्रेम
बसपा की बात की जाए, तो बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती मुसलमानों के नाम पर राजनीति तो खूब करती हैं, लेकिन वह सपा प्रमुख की तरह किसी मुस्लिम धर्म गुरु को अहमियत नहीं देती है।वहीं दूसरी तरफ सपा पर मुसलमानों को गुमराह करने का आरोप भी जड़ देती हैं। बसपा सुपीमों को इस बार ये एहसास हो चला है कि अगामी विधानसभ चुनाव में उनकी मुकाबला सिर्फ सपा से नहीं बल्कि भाजपा से भी होने वाला है यदि ऐसे में मुस्लिम समुदाय का समर्थन उनको नहीं मिला तो उनकी वहीं दुर्दशा हो सकती है जो 2012 के विधान सभा चुनाव में हुई थी। इस बार बसपा का इरादा किसी भी तरह से सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाना है. देखना यह है कि वह अपने इरादों में कितना कामयाब होती है।
सपा भी जुटी अपना मुस्लिम वोट बैक बचाने में
सपा ने 2012 के विधानसभा चुनाव घोषणापत्र में 16 खास वादे किये थे तीन साल गुजर जाने के बावजूद उन पर अमल नहीं हुआ। सपा के मुस्लिम समुदाय से किये गये चुनावी वादो में सच्चर समिति, रंगनाथ मिश्र आयोग और निमेष आयोग की सिफारिशों को लागू करना , मुसलमानों को रोजगार देना, आरक्षण देना और पिछड़े मुस्लिम इलाकों में स्कूल खोलना आदि थे। मुस्लिम समुदाय को सुरक्षा देने की भी बात की गई थी मगर सरकार में हुए संप्रदायिक दंगों ने सपा की छवि पर बट्टा लगाने का काम किया है। इसके बावजूद सपा मुखिया और प्रदेश मुखिया मुस्लिम समुदाय सपा से जोड़कर रखने की कोशिश में लगे हुए है। अभी हाल में ही उर्दू एकादमी का भी उदघाटन किया है।
कांग्रेस भी पीछे नहीं
अजादी के बाद प्रदेश में कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था मगर मौजूदा समय में प्रदेश की राजनीति नाम मात्र की रह गई है। पिछल्ले दो दशकों से कांग्रेस का प्रदेश में जनाधार लगातार गिरता ही गया है। उसका अपना वोट बैंक खिसक कर दूसरी पार्टियों में चला गया है । इसबार के लोकसभा चुनाव के बाद तो प्रदेश में कांग्रेस की और दुर्दशा हो गई है। पार्टी प्रमुख जानते है कि इस बार प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा तो ये चुनाव उनके लिए संजीवनी बूटी का काम करेगी। इसी के तहत पार्टी अन्य समुदाय के साथ मुस्लिम समुदाय को भी जोड़ने में लगी है। सपा सरकार पर दंगे को लेकर हमलावर होना या केंद्र की मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी बताना पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक प्रेम को दर्शाता है।
#२०१७ #विधानसभा #चुनाव #उत्तर प्रदेश #कांग्रेस #सपा #भाजपा का मुस्लिम प्रेम
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय चुनावो में काफी हद तक निर्णायक भूमिका निभाते है। चनाव आते ही मुस्लिम हित की बाते करने वाले नेताओं की लाइन लग जाती है लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनका कोई पुरसा हाल नही होता। 2017 में उत्तरप्रदेश के विधानसभ चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने तरीके से प्रयास शुरू कर दिए हैं। प्रदेश के लगभग 17 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता किसी भी राजनीतिक दल का भविष्य बनाने या बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते आये है। यह बात साफ है कि प्रदेश की 403 में से 100 से अधिक सीटों पर मुस्लिम मतदातों के द्वारा ही हार जीत का निर्णय होता है। हर बार की तरह इस बार भी चुनाव आते ही सभी प्रमुख दल सपा, कांग्रेस, बसपा मुस्लिमों को अपनी ओर रिझाने में लग गये है लेकिन इस बार मामला त्रिकोणी नहीं रहा क्योकि मुस्लिम विरोधी कही जाने वाली भाजपा भी इस बार मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए जी तोड़ कोशिश में लगी है। फिलहाल अभी ये कहना जल्दबाजी होगा कि प्रदेश का मुसलमान किसके साथ जायेगा। लेकिन ये बात तय कि इस बार मुसलमान जल्दी किसी के बहकावे में नहीं आने वाला है।
भाजपा की कोशिश
मुस्लिम विरोधी चेहरा होने के बावजूद भाजपा इस बार मुस्लिम समुदाय को अपने साथ लाने में लगी हुई है जबसे केंद्र में भाजपा सरकार बनी है तबसे लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा मुसलमानों को देश भक्त बताना और उनको पूरी सुरक्षा देने की बात कहना इस बात की ओर इशारा करता है कि मोदी सबका साथ सबका विकास वाले रास्ते पर चलकर प्रदेश का अगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इसके अलावा केंद्र सरकार के एक साल पूरा होने पर जन जन जक सरकार की उपलब्धियां पहुंचाने के लिए पंपलेटो और बुक को उर्दू में छाप कर मुस्लिम बहुल इलाकों में बांटने के फैसले से विपक्षियों में हलचल मच गई है।
बसपा का भी जागा मुस्लिम प्रेम
बसपा की बात की जाए, तो बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती मुसलमानों के नाम पर राजनीति तो खूब करती हैं, लेकिन वह सपा प्रमुख की तरह किसी मुस्लिम धर्म गुरु को अहमियत नहीं देती है।वहीं दूसरी तरफ सपा पर मुसलमानों को गुमराह करने का आरोप भी जड़ देती हैं। बसपा सुपीमों को इस बार ये एहसास हो चला है कि अगामी विधानसभ चुनाव में उनकी मुकाबला सिर्फ सपा से नहीं बल्कि भाजपा से भी होने वाला है यदि ऐसे में मुस्लिम समुदाय का समर्थन उनको नहीं मिला तो उनकी वहीं दुर्दशा हो सकती है जो 2012 के विधान सभा चुनाव में हुई थी। इस बार बसपा का इरादा किसी भी तरह से सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाना है. देखना यह है कि वह अपने इरादों में कितना कामयाब होती है।
सपा भी जुटी अपना मुस्लिम वोट बैक बचाने में
सपा ने 2012 के विधानसभा चुनाव घोषणापत्र में 16 खास वादे किये थे तीन साल गुजर जाने के बावजूद उन पर अमल नहीं हुआ। सपा के मुस्लिम समुदाय से किये गये चुनावी वादो में सच्चर समिति, रंगनाथ मिश्र आयोग और निमेष आयोग की सिफारिशों को लागू करना , मुसलमानों को रोजगार देना, आरक्षण देना और पिछड़े मुस्लिम इलाकों में स्कूल खोलना आदि थे। मुस्लिम समुदाय को सुरक्षा देने की भी बात की गई थी मगर सरकार में हुए संप्रदायिक दंगों ने सपा की छवि पर बट्टा लगाने का काम किया है। इसके बावजूद सपा मुखिया और प्रदेश मुखिया मुस्लिम समुदाय सपा से जोड़कर रखने की कोशिश में लगे हुए है। अभी हाल में ही उर्दू एकादमी का भी उदघाटन किया है।
कांग्रेस भी पीछे नहीं
अजादी के बाद प्रदेश में कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था मगर मौजूदा समय में प्रदेश की राजनीति नाम मात्र की रह गई है। पिछल्ले दो दशकों से कांग्रेस का प्रदेश में जनाधार लगातार गिरता ही गया है। उसका अपना वोट बैंक खिसक कर दूसरी पार्टियों में चला गया है । इसबार के लोकसभा चुनाव के बाद तो प्रदेश में कांग्रेस की और दुर्दशा हो गई है। पार्टी प्रमुख जानते है कि इस बार प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा तो ये चुनाव उनके लिए संजीवनी बूटी का काम करेगी। इसी के तहत पार्टी अन्य समुदाय के साथ मुस्लिम समुदाय को भी जोड़ने में लगी है। सपा सरकार पर दंगे को लेकर हमलावर होना या केंद्र की मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी बताना पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक प्रेम को दर्शाता है।
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