Friday, 5 June 2015

फिर से पीछे छूटता विकास का नारा


इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति वैसे तो हमेशा से ही जातिवाद के आधार पर होती आई है मगर पिछल्ले दो तीन वर्षों से प्रदेश की राजनीति में काफी बदलाव देखे गये है जिसमें कई बार ऐसा लगा कि प्रदेश में राजनीति अब विकास के नाम पर होने लगी है। राजनैतिक पार्टियां जातिवाद और संप्रदायिकता की राजनीति से से ऊपर उठ गई है। मगर ये मात्र भ्रम  ही साबित हुआ। प्रदेश में अगामी 2017 के विधानसभा  चुनाव के आते ही प्रदेश में विकास का नारा कमजोर पड़ने लगा है। सभी  राजनैतिक पार्टी सत्ता की चाह में जातिवाद की राजनीति करने में लग गई है वो चाहे विपक्षी पार्टी हो या सत्ता की सिंहासन पर बैठी पार्टी हो। अगामी विधानसभा  चुनाव को जीतने के लिए सभी  पार्टियों ने अपने पत्ते खोलने शुरु कर दिये है उनके इन पत्तों में प्रदेश की विकास का नारा कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है।

2012 में शुरु हुआ था विकास का नारा

विधानसभा  चुनाव 2012 में सपा ने अखिलेश यादव को आगे कर युवा चेहरा और विकास का मुददा उठाया था। अखिलेश का युवा चेहरा और विकास की बात पर प्रदेश की जनता ने जातिवाद को किनारे कर सपा को जमकर वोट दिया जिसका नतीजा ये रहा कि समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ और प्रदेश में सपा की सरकार बनी। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश के विकास का मुददा उठाकर भाजपा  ने  2014 के लोकसभ  चुनाव में अप्रत्याशित तरीके से विजय प्राप्त की और दिल्ली में कांग्रेस का सफाया कर अपनी सरकार बनाई। इन दोनों सालों में जो राजनीति में बदलाव देखने को मिला  उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह जो थी वो विकास का नारा था। हालकि दोनो ही पार्टियों ने अभी  देश प्रदेश के विकास को लेकर काफी काम भी  किया है मगर अब प्रदेश में अगामी विधानसभा  चुनाव के करीब आते ही विकास का मुददा पीछे छूटता जा रहा है और जातिवाद की राजनीति हावी होती दिख रही है।

जातिवाद की राजनीति हूई शुरु
वैसे तो विकास का नारा आज भी  सरकार की तरफ से दिया जा रहा है और अगामी विधानसभा  चुनाव में यही विकास के नारे के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान भी  कर चुकी है मगर ऐसे में कोई भी  पार्टी किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती इसलिए पार्टियां विकास के नारे के साथ जातिवाद के जरिये भी  अपनी पैठ वनाने में लगी है। हाल ही में प्रदेश सरकार के कुछ फैसलों से ये साफ भी  हो गया है जैसे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ,लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और महाराणा प्रताप पर सार्वजनिक छुटटी घोषित कर जाति के आधार पर अपनी जमीन तैयार करनी शुरु कर दी है। इसके अलावा आरक्षण मुददा भी  उठा कर एक तरफ सपा बीएसपी के वोट बैंक पर निशाना साधने और भाजपा  को मुददाविहीन करने की हर संभव  कोशिश में लगी है। सपा द्वारा गौ हत्या, और एक विशेष समुदाय की पार्टी होने का विपक्षियों के लगातार निशाने पर रही है लेकिन सरकार ने गौ हत्या पर कड़ा कानून बनाकर और एक समाजवादी श्रवण यात्रा शुरु कर जातिवाद की राजनीति का शुभारम्भ  कर विपक्षियों को मुददा विहीन कर दिया।  इनसब फैसलों से ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाला विधानसभा  चुनाव विकास के नारे के बजाये जातिवाद के सहारे लड़ा जायेगा जैसाकि हमेशा होता आया है।


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