इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। परिवहन विभाग लाख दावे के बाद भी दलालों पर कोई लगाम नहीं लगा पा रहा है। राजधानी में परिवहन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से दलाल लर्निंग और परमानेंट लाइसेंस की फीस से दस गुना ज्यादा पैसा वसूल रहे हैं। राजधानी के आरटीओ दफ्तर दलालों की गिरफ्त में हैं।
पैसा खर्च करें तुरंत होगा काम
चाहे आपको ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो, गाड़ी का रजिस्टेÑशन कराना हो या फिर सवारी गाड़ी का फिटनेस परमिट लेना हो, सारे काम हो जायेंगे और इसके लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। दलाल आरटीओ आॅफिस के इर्द गिर्द ही मिल जाएंगे। मगर, इसके लिए आपको मोटी रकम खर्च करनी पड़ेगी। वैसे तो लाइसेंस की सरकारी फीस 60 रुपये है, लेकिन दलाल इसके लिए 2300 रुपये वसूलते हैं। इसके एवज में आपको गाड़ी चलाकर ट्रायल नहीं देना पड़ेगा और आपका काम चुटकी में हो जायेगा। चपरासी से लेकर बड़े साहब तक इस गोरखधंधे में शामिल हैं।
ऐसे होता हैं खेल
परिवहन निगम द्वारा डाक से लाइसेंस को आवेदक के घर भेजे जाने की सुविधा दी जा रही है। इस सुविधा के बाद अधिकारियों का दावा था कि दलालों पर लगाम लग सकती है। मगर, हकीकत यह है कि लाइसेंस तो जरूर डाक से पहुंच रहा है, लेकिन खेल सारा दलाल ही कर रहे हैं।
दरअसल, आवेदक को लर्निंग लाइसेंस बनवाने के लिए होने वाली लिखित परीक्षा में बाबू जानबूझ कर फेल कर देते हैं। इसके बाद शुरू होता है दलालों का खेल। लाइसेंस बनाने के लिए परेशान आवेदक दलालों के पास भागने लगते हैं। ऐसे में दलाल दोबारा फार्म भरवा कर बिना किसी ट्रायल के लाइसेंस बनवा देता है। सुविधा और काम की गारंटी के चक्कर में आवेदक भी सोचता है कि कौन झंझट में पड़े दलाल को पैसे दो और काम कराओ।
आवेदक से सीधे बात नहीं करते अधिकारी
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए दलालों का खेल कोई आज का नहीं है। आम लोगों को लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया नहीं मालूम थी। उधर, आरटीओ दफ्तर के अधिकारी •ाी आवेदक से सीधे बात नहीं करते हैं। क्योंकि सीधे आवेदक से बात करने पर एक फूटी कौड़ी •ाी अधिकारी महोदय को नहीं मिलती है और दलाल से कमीशन तय रहता है। नतीजा यह है कि दलालों का जलवा कायम है।
मिलीभगत से होता है खेल
दलालों का बोलबाला ऐसे ही नहीं है उनको वहां पर बाबू और अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। चपरासी से लेकर अधिकारियों तक का हिसाब-किताब होता है और सबका हिस्सा लगता है। दलालों द्वारा जो काम करवाया जाता है उसकी रकम पहुंचा दी जाती है। अधिकारियों और दलालों के बीच में चपरासी माध्यम का काम करते हैं। कोई •ाी अधिकारी दलालों से सीधा पैसा नहीं लेता। दलालों के अनुसार 2300 रुपये में तीन सौ रुपये सरकारी फीस के नाम से चला जाता है। 1000 रुपये अधिकारी को और 100 रुपये चपरासी को देने पड़ते हैं। इसी तरह लर्निंग और परमानेंट लाइसेंस बनाने का कमीशन अलग-अलग चपरासी को दिया जाता हैं।
अंदर से लेकर बाहर तक जमावड़ा
आरटीओ के दफ्तर के बाहर और अंदर तक दलालों का राज है। बाहर बनी दुकानें और पेड़ की छाव में दलालों का काम चलता रहता है। दलाल को किसी का काम करवाना होता है तो वो दफ्तर के चपरासी को पैसा और फार्म दे देता है, वाकी काम चपरासी करवाता है। शाम को दफ्तर बंद होने के बाद हिसाब का लेन-देन होता है। अधिकारियों की शह पर दलालों के हौंसले बुलंद हंै।
सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगा पाये लगाम
ट्रांसपोर्ट नगर दफ्तर में तो सीसीटीवी कैमरे लगा दिये गये हैं, लेकिन उसके बाद •ाी वहां पर दलालों पर लगाम नहीं लग सकी है। वहीं रहीमनगर दफ्तर में तो अ•ाी तक कैमरे •ाी नहीं लग पाये। इससे यहां पर दलालों का बोलबाला ज्यादा है। आरटीओ के दफ्तर के बाहर लगी चाय की दुकानें इनका मुख्य अड्डा हैं। लाख कोशिशों के बाद •ाी परिवहन वि•ााग दलालों पर लगाम लगाने में नाकाम है।
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