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इस समय पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट मात्र से ही गांवो और पंचायती चुनावी क्षेत्र की फिजा बदल गई है। अब सुबह से लेकर शाम तक चौपाल लगने लगी है साथ ही शाम को मिलने वाली दवा भी सुबह से मिलने लगी है। इससे इतर प्रत्याशी अपनी जीत के लिए सभी समीकरण को बनाने में लगे हुए है। प्रधानी का लालच कहे या रुतबे का जलवा कि भाई भाई के खिलाफ है बाप बेटे के खिलाफ है। इस चुनाव में गांव की तस्वीर बदलने की बात कहके लोग अपने जीतने के लिए हर वो हथकंडा अपना रहे है जो बड़े बड़े चुनाव में अपनाया जाता है। पैसे से लेकर जाति बिरादरी धर्म तक की राजनीति करने में लोग पीछे नहीं हट रहे है। इससे गांव के विकास के लिए होने वाले पंचायत चुनाव अपना मूल रूप से भटक चुके है। प्रदेश में पंचायत चुनाव अब पैसे और बंदूक के नोंंक पर होने लगे है जिससे गांव की ही नहीं बल्कि देश की भी चुनावी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लग गया है। खर्च के मामले में विधायकी के चुनाव भी फेल है।
इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। पंचायती चुनाव भारतीय राजनीति की पहली और महत्वपूर्ण सीढ़ी है। देश की राजनीति की शुरुवात ही पंचायती चुनाव से होती है। आजादी के बाद से शुरु हुए पंचायती चुनाव में पहले की अपेक्षा आज के दौर में काफी बदलाव आ गये है। राजनीति की नींव ही अब काफी हद तक कमजोर हो गई है। इन चुनावों में भी अब साम दाम दंड का उपयोग होने लगा है। वर्चस्व और प्रधानी रंजिश के चलते गांव की गलियां खून के रंग में रंग जाती है। पैसे के साथ खून का भी बहना अब आम हो गया है। पिछल्ले वर्ष चुनाव में पैसा का बोलबाला था इस बार का भी पंचायत चुनाव रुपये और बंदूक के दम पर होता नजर आ रहा है। पंचायत चुनाव के होने में अ•ाी तीन से चार महीने बाकी है। प्रशासन की तैयारी अभी पूरी नहीं हुई है मगर प्रधानी का चुनाव लड़ने वाले लोगों ने अपनी पूरी तैयारी कर ली है। परियीमन से लेकर वोटो के वर्गीकरण तक में सभी प्रत्याशी अपनी जीत को सुनिश्चित करने में लगे हुए है। इसबार के चुनाव में पैसा बोलता है कि तर्ज पर होने जा रहा है। प्रशासन इसको रोकने में कितना सफल होगा ये तो वक्त ही बतायेगा।
होर्ल्डिंग्स के जरिये शुरु हुआ प्रचार
एमएलए और एमपी की तर्ज पर प्रधान प्रत्याशियों ने भी होर्ल्डिंग्स के जरिये अपना प्रचार प्रसार शुरु कर दिया है। अपने मनपसंद नेता की तस्वीर के साथ अपनी तस्वीर लगाकर अपना रुतबा दिखाने में ये प्रधान प्रत्याशी •ाी पीछे नहीं है। होर्ल्डिंग्स पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। इसके अलावा कई क्षेत्रों में प्रधान प्रत्याशियों ने अपने घोषणा पत्र भी बनवाने शुरु कर दिये है जिसमें पंचायती क्षेत्र की प्रमुख समस्या का अंकित किया जा रहा है।
परिसीमन को लेकर मंत्रियो और नेताओं ने शुरु की जोर आजमाइश
आजादी के बाद देश में जब पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई, तब गांधी के ग्राम्य स्वराज्य को पूर्ण करने का सपना था। तब यह सोचा भी नहीं गया था कि पंचायतें इस तरह कलह का अड्डा बनेंगी, गांव के गांव विभजित होंगे। अब तो खेती बेचकर चुनाव लड़े जा रहे हैं। पहले पंचायत के चुनाव में गांव इकट्ठा होता था, हाथ उठाकर वोट करता था और प्रधान चुन लिया जाता था। गांव में ही न्याय पंचायतें छोटे-मोटे विवाद सुलझा देती थीं। अब न्याय पंचायतें समाप्त हो चुकी हैं। पंचायत चुनाव में इस बात पर जोर आजमाइश हो रही है कि पंचायतों को कैसे आरक्षित कराया जाए या आरक्षित होने से बचाया जाए। इसके लिए विधायक से लेकर मंत्री तक तैयार बैठे हैं। राजनीतिक दल अपने-अपने स्वार्थ को सामने रख कर पंचायतों का परिसीमन कराते रहे हैं। यही कारण है कि 20 साल में पंचायतों के परिसीमन पर कोई एक नीति नहीं बन पाई।
जुआ की तरह है पंचायत चुनाव
लोग का मानना था कि प्रधान बनकर लोगों की सेवा की जाती थी मगर वर्तमान समय में ऐसा बिलकुल नही है पानी की तरह पैसा बहाने का मतलब है कि कि वो समाज सेवा नही बल्कि चुनाव जीत कर उस पैसे को ब्याज समेत वसूल करना है। सरकारी योजनाओ का अपने हित के लिए इस्तेमाल करके उसका फायदा उठाते है। इसके अलावा शहर से लगे गांव के जमीन के रेट वर्तमान समय में आसमान छू रहे है जिससे प्रधान ग्राम समाज की जमीन का सौदा प्रापट्री डीलरो से करके मोटा पैसा वसूलते है। इसके साथ ही जो रुतबा होता है सो अलग।
योजनाओं में पारदर्शिता की कमी से बढ़ा भ्रष्टाचार
सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता की कमी से •ा्रष्टाचार ज्यादा बढ़ गया है। सरकारी योजनाएं जैसे मनरेगा, मिड डे मिल जनता के लिए कम, प्रधानों और कुछ अफसरों के लिए कामधेनु साबित हुई है। मिड-डे मील के •ाुगतान में स्कूल के प्रधानाध्यापक और प्रधान के हस्ताक्षर होते हैं। इन दोनों की मिली •ागत से बच्चो को मिलने वाला खाना या तो इनके घर पहुंच जाता है या बाजार में बिक जाता है। इसके अलावा इंदिरा आवास को लेकर लेन-देन हो रहा है। पंचायते यानी छोटी सरकारों को प्रशासनिक दर से मजबूत नहीं किया गया, लेकिन योजनाओं में आने वाला पैसा स•ाी को दिख रहा है।
चुनाव में खर्च हो जाते है लाखो रुपये
पंचायत चुनाव में पिछल्ली बार एक प्रत्याशी पर कम से कम बीस लाख रुपये का खर्चा बैठा था इस बार के पंचायत चुनाव के माहौल को देखते हुए ये खर्चा बढ़ कर चालीस लाख तक जा सकता है। इतने पैसे में तो विधायकी के चुनाव लड़े जाते है। मगर वर्तमान समय में पंचायत के चुनाव में इतना पैसा खर्च हो रहा है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंचायती चुनाव में कितना फायदा होता है। लोग चुनाव के लिए अपनी जमीने तक बेंच रह े है।
परिवार के हिसाब से दिया जाता है पैसा
ग्राम पंचायत चुनाव में जब नोटो के जरिये वोट खरीदने का दौर शुरु होता है तो उसमें परिवार में मौजूद लोगों की संख्या के आधार पर पैसे दिये जाते है जितना बड़ा परिवार उतनी ही मोटी रकम दी जाती है। पिछल्ली बार बड़े परिवार के मुखिया को तीन हजार रुपये तक का एक आदमी के वोट की कीमत दी गई थी। इसबार ये पैसा पांच हजार रुपसे प्रति व्यक्ति तक जा सकता है। इसके साथ ही पैसे पर बिकने वाले वोट पांच सौ रुपये से लेकर पांच हजार तक बिकते है। ये पैसा वोट पड़ने सुबह वाली रत से पहले दिया जाता है।
आकंडे
प्रदेश में ग्राम पंचायतो की संख्या 51914 है जिसमें ग्राम पंचायत वार्ड 652773 है यहां पर कुल मतदाता 113728542 है जिसमें पुरुष 63360787 व महिलाएं 50367755 है। इसके अलावा राजधानी में ग्राम पंचायतो की संख्या 498 है ग्राम पंचायत वार्डों की संख्या 6306 है। राजधानी में कुल मतदाता 1018501 है जिसमें पुरुष मतदाता 539929 है जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 478572 है।
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