Friday, 24 July 2015

मुकदमो में सजा दिला पुलिस रोकेगी अपराधियों का प्रमोशन


इन्टरवल एक्सप्रेस
क्रासर- छोटे मुकदमों में सजा दिलाने की पुलिस द्वारा शुरु हुई कवायद
दो साल से अधिक सजा पाने वाले नहीं लड़ सकते चुनाव


लखनऊ। अपराध और राजनीति का बहुत पुराना नाता है। वर्तमान समस में  पुलिस और कानून से बचने के लिए राजनीति अपराधियों की शरण स्थल बन गई है। छोटे मोटे अपराध करके राजनीति के जरिये बाहुबली बनने की प्रक्रिया बहुत असान है क्योकि राजनीति में आने के लिए किसी डिग्री चरित्र का होना आवश्यक नहीं होता है बस जरुरी है तो आपके पास वोट बैंक का होना । फिर चाहे वो वोट बैंक बंदूक की नोक पर ही क्यो न हो। २प्रदेश की राजनीति में ऐसे बहुत से माननीय है जो अपराध के जरिये राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके है और वो काफी हद तक सफल भी  हुए है। सभी  प्रमुख राजनैतिक पार्टियों में कोई न कोई बाहुबली जरुर है जिनको पार्टी ने स्वीकार नहीं किया उन्होने अपनी ही पार्टी बनाकर राजनीति करना शुरु कर दी है। लेकिन अब पुलिस महकमा ऐसे अपराधियों को राजनीति में की शरण में जाने से रोकने के लिए रणनीति बना रही है जिससे आने वाले समय में अपराधी प्रवृत्ति के लोग राजनीति की आड़ में अपना गैरकानूनी काम नही कर पायेगें।

अपराधो और डर के दम पर कायम करते है रुतबा
छोटे मोटे अपराधो से जयारम की दुनिया में कदम रखने वाले अपराधियों के लिए सबसे बड़ा मकसद होता है अपने क्षेत्र में रुतबा कायम करना। जब तक क्षेत्र में रुतबा और डर कायम नहीं होता तब तक माफिया कहलाने का श्रेय नहीं मिल पाता। एक बार अपने क्षेत्र में रुतबा कायम हो गया तो उसके बाद राजनीति के क्षेत्र में आसानी से दाखिल हुआ जा सकता है। लोगों में अपनी दहशत पैदा करने के लिए अपराध सबसे आसान तरीका होता है। अपराधियों को कई बार वर्चस्व की लडाई में अपने ही क्षेत्र के अपराधियों से लड़ना पड़ता है। इस वर्चस्व की लडाई में कई मासूम लोगों को •ाी जान से हाथ धोना पड़ जाता है अंत में जो जीत जाता है वो क्षेत्र का माफिया बन जाता है और यही से शुरु होती उसकी राजनीति की पारी।




अपराध के जरिये राजनीति में प्रवेश
क्षेत्र में वर्चस्व कायम होने के बाद अपराधी प्रवृत्ति के लोग राजनीति से अपनी जिंदगी की दूसरी पारी की शुरुआत करते है। इसके लिए वो किसी एक पार्टी का दामन थाम लेते है और फिर वही से शुरु होती है अपराध का राजनीतिकरण। राजनीति में आने के बाद इन अपराधियों का रुतबा और बढ़ जाता है। जिससे इनको छोटे मोटे केस में पुलिस का डर भी  खत्म हो जाता है। वर्तमान में राजनीति अपराधियों की पनाहगाह हो गई। जिसमें पार्टियों की भूमिका ज्यादा होती है। राजनीतिक पार्टी राजनीति में अपराधियो को चुनाव लड़ने की मुखालफत तो करती है मगर चुनाव में अपनी ही पार्टी से टिकट देने में पीछे नही हटती।

अपराध के जरिये राजनीति में आने वालों के लिए पुलिस के अ•िायोजन निदेशालय ने बदमाशों के खिलाफ कोर्ट में चल रहे मुकदमों में पैरवी तेज कर उन्हें सजा दिलाने की मुहिम चलाई है। अफसरों का मानना है कि अपराध कर राजनीति में उतरने के बदमाशों के मंसूबों को उन्हें सजा दिलाकर रोका जा सकता है। इसके लिए अ•िायोजन निदेशालय ने कवायद शुरु कर  दी है। अगर अपराधी को दो साल की •ाी सजा मिल जाए तो उसके राजनीति में पहुंचने के मंसूबे कामयाब नहीं होंगे।

प्रदेश भर  में की जायेगी अभियोजन  अधिकारियो की नियुक्ति
पुलिस के अ•िायोजन निदेशालय द्वारा जल्द ही प्रदेश में अ•िायोजन अधिकारी नियुक्ति किये जायेगे जिससे केस पुलिस की तरफ से केस और मजबूत होगा। खासकर उन केसों में जिनमें पुलिस वादी होती है उन केसों को मजबूती से लड़कर ऐसे बदमाशों को सजा दिलाई जायेगी और अ•िायोजन निदेशालय इस बात पर •ाी सख्त है कि जो काफी समय से लम्बित मामले है उनका निस्तारण जल्द से जल्द हो। 17 सितंबर 2012 से 30 जून 2015 के दौरान दर्ज 6381 अ•िायोगों में से 2379 निस्तारित कराते हुए 1161 मामलों में सजा दिलाने में कामयाबी हासिल हुई है। 13 जुलाई से 13 अगस्त 2015 के दौरान शातिर अपराधियों को सजा दिलाने और उनकी जमानत निरस्त कराने का अ•िायान चलाया जा रहा है।

संविदा पर रखे जायेगें रिटायर्ड अफसर
पुलिस की तरफ से पैरवी करने वाले संविदा पर रिटायर्ड अफसर होगे। अ•िायोजन निदेशालय पुलिस वि•ााग से रिटायर्ड हो चुके तेज तर्रार अधिकारियों को संविदा पर रखने की तैयारी कर रहा है।

छोटे अपराधो में सजा दिलाकर राजनीति प्रवेश पर रोक
दो साल तक की सजा पाये हुए अपराधी चुनाव नहीं लड़ सकते है ऐसे में पुलिस अ•िायोजन निदेशालय बड़े मुकदमों में न पड़कर छोटे मोटे केसों की मजबूत पैरवी करके सजा दिलाने की कोशिश में लगा है। दो साल तक की सजा के प्रावधान वाले केसों में अ•िायोजन वि•ााग आरोपी को सजा दिलाकर उनके राजनीति के दरवाजे बंद करने की कोशिश में लगा है यदि ऐसा ही होता रहा है तो आने वाले समय में राजनीति में अपराधियों की पनाहगाह नहीं बन पायेगी।

राजनीति में अपराधियों की भागीदारी
यूपी विधानसभा  के 403 विधायकों की सूचीं में से लगभग  47 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) के अनुसार ये दावा किया गया है। 2012 के विधान स•ाा चुनाव के बाद एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) के अनुसार 224 विधायकों में से 111 दागी विधायकों के साथ सपा इस दौड़ में सबसे आगे है। भजपा में 25 दागी विधायक, बसपा में 29, और कांग्रेस में 13 दागी विधायक है। एडीआर की रपिोर्ट के अनुसार 189 विधायकों ने पर्चा दाखिल करते हुए अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज होने का उल्लेख किया। अगर हम इस आकड़े ही तुलना 2007 के 403 विधानस•ाा सीट के करें तो 140 पर यानी 35 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज है। यह संख्या 2012 विधानस•ाा चुनाव से काफी कम थी।

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