Thursday, 7 May 2015

कुदरती कहर से बचने के लिए आपदा प्रबंधन असहाय


इन्टरवल एक्सप्रेस
 लखनऊ। प्राकृतिक आपदा या दैवीय आपदा एक ऐसा कुदरती कहर है, जिसका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन उसके लिए पहले से तैयार रहने से कुछ हद तक लोगों की जान बचाई जा सकती है। सूखा, बाढ़, चक्रवाती तूफानों,भूकम्प, भूस्खलन, ओलावृष्टि, और ज्वालामुखी फटने जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, न ही इन्हें रोका जा सकता है, लेकिन इनके प्रभाव को एक सीमा तक कम जरुर किया जा सकता है, जिससे जान-माल का कम से कम नुकसान हो। यह कार्य तभी  किया जा सकता है, जब सक्षम रूप से आपदा प्रबंधन का सहयोग मिले।
अभी  हाल में ही आये नेपाल और उत्तर भारत में भूकंप के झटकों ने यह सवाल फिर खड़ा कर दिया है कि क्या प्रदेश का आपदा प्रबंधन प्राधिकरण किसी ऐसी कुदरती आपदा से निपटने के लिए तैयार है ? अगर आपदा प्रबंधन तंत्र मुस्तैद हो, गतिशील हो और भावन निर्माण पद्धतियां वैज्ञानिक और विवेकपूर्ण हों तो जान माल का नुकसान काफी हद तक कम किया जा सकता है।

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
बचाव और राहत के लिए भारत में 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का गठन किया गया था। इसे राज्यों और जिला स्तरों पर भी  बनाया गया। आपदा प्रबंधन का पहला चरण है खतरों की पहचान। इस अवस्था पर प्रकृति की जानकारी तथा खतरे की सीमा को जानना शामिल है। इसके अतिरिक्त बढ़ती आबादी के प्रभाव  क्षेत्र एवं ऐसे खतरों से जुड़े माहौल से संबंधित सूचना और डाटा भी  आपदा प्रबंधन का अंग है। इसमें ऐसे निर्णय लिए जा सकते हैं कि निरंतर चलने वाली परियोजनाएं कैसे तैयार की जानी हैं और कहां पर धन का निवेश किया जाना है जिससे दैवीय आपदाओं का सामना किया जा सके। ये आपदा के पूवार्नुमान के आंकलन का प्रयास करते हैं और आवश्यक सावधानी बरतते हैं। जनशक्ति, वित्त और अन्य आधारभूत समर्थन आपदा प्रबंधन की उप-शाखा का ही हिस्सा हैं। आपदा के बाद की स्थिति आपदा प्रबंधन का महत्वपूर्ण आधार है। जब आपदा के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है तब लोगों को पुन: बसाने का कार्य आपदा प्रबंधन द्वारा किया जाता है। लेकिन कुछ राज्यों में इन प्राधिकरणों की हालत देखिए, वे बेहद निष्क्रिय जान पड़ते हैं। दो साल पहले उत्तराखंड के केदारनाथ में आई भीषण प्राकृतिक विपदा को भूले  नहीं हैं और लोग उस दौरान आपदा प्रबंधन की दयनीय हालत को भी भूलाया नहीं गया है। ऐसे में इस आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन मात्र खानापूर्ति जान पड़ता है।
आपदा प्रबंधन में नहीं है कर्मचारी
आपदा प्रबंधन का कार्य क्षेत्र बहुत बड़ा है, लेकिन उसके हिसाब से कर्मचारियों की भारी कमी है। जानकारी के मुताबिक कई सालों से आपदा प्रबंधन में भारती तक नहीं हुई है।



राजधानी में आपदा प्रबंधक निष्क्रिय

प्रदेश की राजधानी में पिछले दिनों आये भूकंप के झटकों ने सबको हिला के रख दिया। यदि यहां पर भूकंप आया तो सबसे ज्यादा नुकसान राजधानी में होगा, क्योकि यहां पर मॉर्डन कल्चर के तर्ज पर बन रहे बड़े-बड़े अपार्टमेंट बिना मानकों को पूरा किए ही आसमानों को छू रहे हंै। इनमें भूकंप विरोधी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके अलावा शहर में कई इमारतें और भवन जर्जर हालत में हैं, और हजारों लोग उनमें रहते हैं। आपदा प्रबंधन ने इनके बचाव के लिए अ•ाी तक कोई योजना नहीं बनाई है।

अनुमान लगाने के बाद भी  सुस्त आपदा प्रबंधन
इन दैवीय आपादाओं में भूकंप को छोड़कर बाकी आपदा जैसे सूखा, बाढ़ का कुछ हद तक अनुमान लगाया जा सकता है ऐसी आपदा से लोगों को बचाने का कार्य सरकार का और उसके जिम्मेदार विभाग  का होता है। सूखा और बाढ़ से बेघर और पीड़ित लोगों के पुनर्वास का काम आपदा प्रबंधन करता है जिससे लोगों को दोबारा स्थापित किया जा सके। आपदा प्रबंधकों को ऐसे प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य जीवन शुरू करने का कार्य करना पड़ता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि आपदा प्रबंधन विभाग को जब इस बात का अंदाजा हो जाता है कि इस बार सूखा और अधिक बारिश होगी तो वो ऐसे स्थानों को चिह्नित कर लोगों को पहले से ही सुरक्षित स्थानों पर क्यों नहीं पहुंचाता है? विभाग हमेशा आपदा होने के बाद ही क्यों सक्रिय होते है? इसके पीछे का कारण आपदा प्रबंधन का सुस्त रवैया और आपदा से निपटने के लिए पहले से कोई तैयारी न करना है।

आपदा प्रबंधन नहीं कर रहा लोगों को जागरुक
आपदा प्रबंधन विभाग उन क्षेत्रों को चिह्नित करता है जहां पर दैवीय आपदा के आसार सबसे ज्यादा होते हैं वहां पर विभाग लोगों को इन आपदाओं से बचने के उपाय बताता है और वहां के निवासियों को सूखा,बाढ़, •ाूकंप आने की स्थिति में क्या करना चाहिए इसकी जानकारी करवाता है। जिससे कम से कम लोगों को जान माल का नुकसान हो। लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग लोगों को जागरुक करने के बजाय आराम से आपदा के आने का इंतजार करने में व्यस्त रहता है। इसके अलावा वि•ााग के पास आपदा से निपटने के लिए डॉक्टरों और इंजीनियरों समेत दूर संचार विशेषज्ञों की पूरी एक टीम होती है जो ये काम करती है।

वर्जन
पिछले कुछ दिनों से राजधानीवासी दहशत की जिंदगी जी रहे है। आपदा प्रबंधन वि•ााग इन प्राकृतिक आपदओं के आगे बौना है। प्राकृतिक आपदाओं के लिए आपदा प्रबंधन को जागरुकता का काम करना चाहिए। जागरुक कोर कमेटी बनाकर स्कूलों में जा कर बच्चों को आपदा से बचाने के उपाय बताने चाहिए। इसके अलावा राजधानी में कई अपार्टमेंट भूकप विरोधी मानकों के अनुरुप नही बन रहे है जिसमें आपदा प्रबंधन कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। इसके अलावा राजधानी में आपदा प्रबंधन का दफ्तर कहां है इसका काम क्या है लोगों को इस विभाग के बारे में ही जानकारी नहीं है तो हम इस विभाग से क्या उम्मीद कर सकते है। ::::महेश चंद्र देवा, आर्टिस्ट और समाजसेवी

भूकंप और दैवीय आपदा के आगे तो सरकार इंसान सभी  बेबस है लेकिन हमारी जागरुकता से इन आपदओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। जैसे बिल्ड़िग का डिजाइन और उसका नक्शा इस हिसाब से बनना चाहिए कि वो भूकंप जैसी आपदा को रोक सकेगे। इसके लिए जिम्मेदार विभाग को इसका पालन सख्ती से करवाना चाहिए और बिल्डिग या अपार्टमेंट बनने के मानकों का पूरी कड़ाई से पालन होना चाहिए जैसा कि अभी  नहीं हो रहा है।::::::::::फैसल इंजीनियर

आपदा प्रबंधन की डिजास्टर मैनेंजमेंट मीटिंग डीएम की अध्यक्षता में 11 तारीख को होगी। जिसमें सभी  जिलों से पूरा ब्यौरा मांगा जायेगा। इसके अलावा एनजीओ और सरकारी संस्था की मदद भी  ली जायेगी। :::::धनंजय शुक्ला एसडीएम

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