लखनऊ। पहले
फसल बर्बादी, उसके बाद सरकार की उदासनीता ने किसानों की कमर तोड़ दी है। अभी साल के शुरुआत में ओलावृष्टि
और बारिश से खेतो में लहराती फसल तबाह हो गई और साथ में खत्म हो गई किसानों की
उम्मीद और •ारण पोषण के लिए लगी आस। एक तरफ दैवीय आपदा ने किसानों का सब कुछ
छीन लिया वहीं दूसरी तरफ सरकार द्वारा सहायता न मिलने से किसान महाजन और साहूकारों
की शरण में जा रहे हैं जिससे उन्हेआर्थिक दबाव के साथ मानसिक दबाव भी झेलना पड़ रहा है। किसानी के
जरिये ही अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले किसानों के
पास अपनी अगली फसल के लिए पैसे साहूकारों से लेने पड़ रहे हैं। इसके अलावा उनके पास
कोई चारा नहीं है। ऐसे में सूदखोर अपने मन मुताबिक ब्याज लगाकर किसानो को पैसा दे
रहे है । मजबूरी में किसान इनके शरण में जाने को मजबूर हैं।
सरकार की
उदासीनता से किसान परेशान
सरकार लगातार किसानो की बर्बाद फसल का मुआवजा देने का ढ़िंढोरा पीट रही है और सरकार द्वारा अब तक पचास करोड़ रुपये से ज्यादा बांटने की बात कही जा चुकी है मगर हकीकत में ये पैसा बर्बाद किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने में नाकाफी है। इसके अलावा ये पैसा सही किसान तक पहुंच अभी नहीं रहा है। दैवीय आपदा से गेंहू की फसल कम से कम सत्तर प्रतिशत बर्बाद हो गई है। इसके अलावा किसानों की मदद के लिए सरकार की तरफ से जो सर्वे करवाये गये हैं, वो अभी सही ढ़ंग से नही किये गये हैं जिससे मुआवजे का पैसा सही हकदार तक नहीं पहुंच रहा है।
सूदखोरो की
चांदी
दैवीय आपदा से बर्बाद किसानों के लिए अपनी अगली फसल बोने के लिए सूद पर पैसे लेना मजबूरी बन गया है। दैवीय आपदा से हुए नुकसान से जहां एक तरफ किसान अपनी बर्बादी पर रो रहा है, वहीं दूसरी तरफ सूद पर पैसा देने वाले महाजनों की चांदी है। उनके पास अगली फसल को बोने के लिए पैसे की जरुरत को महाजन पूरा तो कर रहे हैं मगर उसके बदले उनसे सूद के रुप में हजारों रुपये वसूल कर रहे हैं। सूद पर पैसे देने वाले लोग किसानों की मजबूरी का भरपूर फायदा उठा रहे हंै और किसान सब कुछ जानकर भी उनकी शरण में जाने को मजबूर हैं क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई और विकल्प ही नहीं है।
बैकिंग
प्रणाली बनी रोड़ा
देश प्रदेश का किसान ज्यादातर साक्षर नही है, इसलिए सरकार की तरफ से दिया जाने वाले बैंक लोन की प्रणाली अभी उसकी समझ में नही आती है, जिसके कारण वो बैंकों से मिलने वाले लोन को झंझट समझकर उससे दूर भागता है और अंत में जाकर सूद पर पैसा ले लेता है। बैंकों की जटिल लोन प्रणाली भी किसानों को सरकारी मदद पहुंचाने में बाधा बन जाती है जिस कारण किसान बैंक के चक्कर काटने से बचने के लिए उससे ज्यादा ब्याज पर महाजन से पैसा ले लेता है।
क्या है
ब्याज
फसल बर्बादी पर किसानों को सरकार की तरफ से मुआवजा नहीं मिला। जो मिला भी वो बहुत कम है, जिसके सहारे वो अपना पोषण करें या उन पैसों से खेती करें। इसी के चलते महाजनों की चांदी है। वो किसानों को अपने मनमुताबिक ब्याज पर पैसा दे रहे हैं जिसमे वो औसत से ज्यादा ब्याज लगा रहे हैं। इस वक्त जो महाजन पैसा दे रहा है, वो उन पैसों पर बीस प्रतिशत या उससे ज्यादा ब्याज ले रहा है। इसके अलावा ब्याज पर ब्याज भी लेते है जिससे किसान इस सूदखोरो के चंगुल से निकल ही नहीं पाते हंै और हमेशा उनके कर्जदार रहते हैं। इसके अलावा जब कोई महाजन से पैसा ब्याज पर लेता है तो उसके बदले उसको कुछ सामान भी गिरवी रखना पड़ता है। लेकिन किसानों की बात करे तो महाजन इनको बिना किसी शर्त के पैसा दे देते हैं क्योंकि किसानों के पास उनकी जमीन होती है और महाजन जानता है कि वो अगर पैसा न दे पाया तो उसकी जमीन को अपने कब्जे में ले लेगा। इसलिए किसानों को ब्याज पर पैसा भी आसानी से मिल जाता है।
नियम
सरकार ने सूदखोरों के चंगुल से लोगों को मुक्त कराने के लिए इनके ऊपर शिंकजा भी कसा है और सूदखोरी को गैर-कानूनी करार दिया है। ऐसे में जो इसमें लिप्त पाया जाता है, उसके लिए सजा का भी प्रावधान है मगर ये गैर-कानूनी होते हुए भी शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रो में खूब फल-फूल रहा है। इनमें कार्रवाई भी होती है तो मात्र खानापूर्ति बनकर रह जाती है।
वर्जन
1:::::: बाराबंकी क्षेत्र के पंडरी गांव के निवासी केतन जो
किसानी करते है उन्होंने बताया कि उनके पास छ: बीघा जमीन है इस बार बारिश से पूरी
फसल बर्बाद हो गई। जिसके कारण ब्याज पर जो पैसा लिया था वो वापस नहीं कर पाये और
फसल बर्बाद होने की वजह से दूबारा ब्याज पर पैसा लेना पड़ा जिससे हमारे ऊपर दोहरा •ाार पड़ गया है। इस बार अगर फसल
नहीं पैदा हुई तो गिरवी रखा खेत भी बेचना पड़ जायेगा। बैंक से
लोन लेने के बारे में उन्होने कहा कि हम तो अनपढ़ है और बैंक का हिसाब किताब नहीं
पाता यहां जब जरुरत होती है साहूकार से जा के पैसा ले आते है। बिना लिखा पढ़ी के
असानी से मिल जाता है।
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