इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से किसानों का जो नुकसान हुआ है उसके लिए तो प्रदेश सरकार ने मुआवजे का ऐलान कर दिया है मगर उन किसानों का क्या होगा जो दूसरे किसानों की खेती की जमीन को बटाई पर लेकर खेती करते है। ऐसे किसानो के लिए सरकार ने अभी तक कोई स्कीम या राहत कार्य का ऐलान तक नहीं किया है। ऐसे में आत्महत्या करने वाले किसानों में दोहरी मार झेलने वाले बटाई किसान ज्यादा है। बटाई पर खेती करने वालों के आगे दैवीय आपदा से हुए नुकसान के कारण आत्महत्या करने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है।
सरकार अब तक आठ सौ करोड़ से ज्यादा मुआवजा देने की बात कर रही है। सरकार की गलत नीतियों और सर्वे में अ•ााव के कारण मुआवजे से उन लोगों को फायदा हो रहा है जिनको कम नुकसान हुआ है उन लोगों के प्रति सरकार का कोई ध्यान नहीं है जो बेचारे बटाई पर किसानी करते है। इस बार हुई आकस्मिक बारिश और ओलावृष्टि से सबसे ज्यादा नुकसान ऐसे बटाई पर खेती करने वाले किसानों का ही हुआ और मुआवजा जमीन मलिक को मिल रहा है।
क्या है बटाई
बटाई वो है जिसमें जमीदारों और सक्षम किसानों की जमीन को गरीब किसान एक साल के लिए किराये पर लेता है और उसके बदले वो जमीन मलिक को तय रकम या अनाज देता है। उसी की जमीन पर अपने पैसे और मेहनत करके वो अनाज उगाता है उसी अनाज को बेंच कर अपना •ारण पोषण करता है और मलिक को पैसा या उसके बदले अनाज देता है। इस तरह की खेती में जमीन मलिक को बिना मेहनत और पैसे लगाये बिना पूरा फायदा मिलता है।
सर्वे मात्र खानापूर्ति
सरकार द्वारा जो सर्वे करवाये जा रहे है वो मात्र खानापूर्ति साबित हो रहे है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक पूरी तरह से सर्वे भी नहीं हो पाये है जो सर्वे लेखपालों के द्वारा किये जा रहे है वो भी प्रधान या क्षेत्रीय नेता के दरवाजे बैठ कर हो रहे है ऐसे में प्रधान या नेता अपने परिचितों और लग्गू लोगों का ही नाम लिखवा देते है। मुख्य रुप से पीड़ित किसानों को तो ये भी नहीं पता चल पाता कि सर्वे हुआ भी है कि नहीं। लेखपाल और जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे है गांवों में घूमकर बर्बाद फसल का अंदाजा लगाने के बजाय प्र•ाावी लोगों के घरों में बैठकर फसल की बर्बादी का अंदाजा लगा रहे है।
70 प्रतिशत फसल हुई बर्बाददैवीय आपदा से गेंहू की फसल कम से कम सत्तर प्रतिशत बर्बाद हो गई। ऐसे में मुनाफा तो दूर की बात है बटाई किसानों की लागत तक नहीं निकल पाई। खेतों में फसल की अच्छी पैदावार के लिए डाया, यूरिया और नियमित अंतराल पर पानी लगवाते रहे। जिसका नतीजा ये हुआ कि गेंहू की पैदावार बहुत अच्छी हुई मगर जनवरी माह से रुक रुक कर होने वाली बारिश से सब बर्बाद हो गया है। जिस एक बीघा खेत में कम से कम चार कुंटल गेंहू निकलना चाहिए था उसमें मात्र एक ही कुंटल गेंहू निकला है। ऐसे में बटाई किसानों पर दोहारी मार पड़ रही है एक तरफ जहां उनको खेत मलिक को पैसा या अनाज देना है वही दूसरी तरफ खुद की भूख मिटाने के लाले पड़ गये है।
बटाई किसानों के वर्जन
बाराबंकी जिले के मदारपुर गांव के निवासी रंजीत के परिवार में दस लोग है इनकी रोजी रोटी बटाई पर किसानी कर के ही चलती है। इस बार हुई फसल बर्बादी के कारण इतने बड़े परिवार को पालने की जिम्मेदारी इन पर भरी पड़ रही है। रंजीत ने बताया कि इस बार छ: बीघा बटाई पर लेकर खेती की थी। हर बार की तरह इस बार भी फसल बहुत अच्छी हुई थी मगर बारिश के कारण सारी फसल बर्बाद हो गई। खेत मलिक को पंद्रह कुंटल अनाज देना है मगर हुआ दो कुंटल भी नहीं है। फसल कटी हुई खेत में बड़ी है मगर उसको थ्रेशर से कटवाने के हिम्मत नहीं हो पा रही है क्योकि जितना गेंहू निकलेगा नही उससे ज्यादा कटाई लग जायेगी। इस बार तो खाने को •ाी लाले पड़ जायेगे।
2:::::बाराबंकी जिले के पुरवा निवासी राम प्रताप के परिवार में नौ लोग है जिसमें से उनकी चार बेटियां है जिनमें से दो शादी के लायक है। इस बार उन्होंने पंद्रह बीघा जमीन ली थी बटाई पर इस उम्मीद से कि फसल अच्छी होगी कुछ पैसे बच जायेगे जिससे वो अपनी लड़की की शादी कर पायेगे। कुदरती कहर के आगे उनका ये सपना भी टूट गया। इसके अलावा जो नुकसान हुआ सो अलग। राम प्रताप ने बताया कि पंद्रह बीघा में जिस तरह की फसल थी उससे कम से कम 50 कुंटल गेहू होता मगर बर्बादी के कारण दस कुंटल •ाी निकलना मुश्किल है। ऐसे में हमारी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है खेत मलिक गेहू लेने और पैसा का तकादा करते रहते है। मलिक को तो पैसा चाहिए उसको इससे मतलब नहीं कि हमारा कितना नुकसान हुआ। अब जो तय हुआ था उसको तो देना ही पड़ेगा।
3::::::::: लखनऊ जिले के बसहा गांव के निवासी राम चंदर ने नौ बीघा जमीन बटाई पर ली थी और लग•ाग तीस हजार रुपये लगा दिये है मगर बर्बादी के कारण उनको जहां पंद्रह कुंटल अनाज मिलना था वही इस बार सिर्फ सात कुंटल ही नसीब हो पाया है ऐसे में नौ लोगों के बड़े परिवार के •ाारण पोषण की दिक्कत •ाी उनके सामने खड़ी है उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जो पैसा मिल रहा है वो •ाी सीधे खेत मलिक को ही दिया जा रहा है ऐसे में हम लोगों का पुरसा हाल कोई नहीं है। खेती के सिवा हम लोगों को कुछ आता •ाी नहीं है ऐसे में हुए नुकसान के कारण अब हम लोगों के जीने के लाले पड़ गये है।
4::::::: पैगरामऊ निवासी किसान प्यारे लाल को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है उन्होंने आठ बीघा खेती बटाई पर लेकर की थी जिसमें से ओलावृष्टि और बारिश के कारण चार बीघा तो फसल खेत में लगे लगे ही बर्बाद हो गई। बाकी बचे चार बीघा में मात्र दोकुंटल ही अनाज हुआ जबकि लागत में उन्होंने कम से कम तीस हजार रुपये लगा दिये। उनके परिवार में नौ लोग है खेती पर ही निर्•ार रहने वाले प्यारे लाल इस बात से काफी परेशान लग रहे थे कि परिवार का पेट कैसे पालेगे क्योकि उम्र होने के कारण उनसे अब मजदूरी •ाी नहीें हो पायेगी।
#बटाई #किसान #किसानआत्महत्या #फसलबर्बाद
लखनऊ। बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से किसानों का जो नुकसान हुआ है उसके लिए तो प्रदेश सरकार ने मुआवजे का ऐलान कर दिया है मगर उन किसानों का क्या होगा जो दूसरे किसानों की खेती की जमीन को बटाई पर लेकर खेती करते है। ऐसे किसानो के लिए सरकार ने अभी तक कोई स्कीम या राहत कार्य का ऐलान तक नहीं किया है। ऐसे में आत्महत्या करने वाले किसानों में दोहरी मार झेलने वाले बटाई किसान ज्यादा है। बटाई पर खेती करने वालों के आगे दैवीय आपदा से हुए नुकसान के कारण आत्महत्या करने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है।
सरकार अब तक आठ सौ करोड़ से ज्यादा मुआवजा देने की बात कर रही है। सरकार की गलत नीतियों और सर्वे में अ•ााव के कारण मुआवजे से उन लोगों को फायदा हो रहा है जिनको कम नुकसान हुआ है उन लोगों के प्रति सरकार का कोई ध्यान नहीं है जो बेचारे बटाई पर किसानी करते है। इस बार हुई आकस्मिक बारिश और ओलावृष्टि से सबसे ज्यादा नुकसान ऐसे बटाई पर खेती करने वाले किसानों का ही हुआ और मुआवजा जमीन मलिक को मिल रहा है।
क्या है बटाई
बटाई वो है जिसमें जमीदारों और सक्षम किसानों की जमीन को गरीब किसान एक साल के लिए किराये पर लेता है और उसके बदले वो जमीन मलिक को तय रकम या अनाज देता है। उसी की जमीन पर अपने पैसे और मेहनत करके वो अनाज उगाता है उसी अनाज को बेंच कर अपना •ारण पोषण करता है और मलिक को पैसा या उसके बदले अनाज देता है। इस तरह की खेती में जमीन मलिक को बिना मेहनत और पैसे लगाये बिना पूरा फायदा मिलता है।
सर्वे मात्र खानापूर्ति
सरकार द्वारा जो सर्वे करवाये जा रहे है वो मात्र खानापूर्ति साबित हो रहे है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक पूरी तरह से सर्वे भी नहीं हो पाये है जो सर्वे लेखपालों के द्वारा किये जा रहे है वो भी प्रधान या क्षेत्रीय नेता के दरवाजे बैठ कर हो रहे है ऐसे में प्रधान या नेता अपने परिचितों और लग्गू लोगों का ही नाम लिखवा देते है। मुख्य रुप से पीड़ित किसानों को तो ये भी नहीं पता चल पाता कि सर्वे हुआ भी है कि नहीं। लेखपाल और जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे है गांवों में घूमकर बर्बाद फसल का अंदाजा लगाने के बजाय प्र•ाावी लोगों के घरों में बैठकर फसल की बर्बादी का अंदाजा लगा रहे है।
70 प्रतिशत फसल हुई बर्बाददैवीय आपदा से गेंहू की फसल कम से कम सत्तर प्रतिशत बर्बाद हो गई। ऐसे में मुनाफा तो दूर की बात है बटाई किसानों की लागत तक नहीं निकल पाई। खेतों में फसल की अच्छी पैदावार के लिए डाया, यूरिया और नियमित अंतराल पर पानी लगवाते रहे। जिसका नतीजा ये हुआ कि गेंहू की पैदावार बहुत अच्छी हुई मगर जनवरी माह से रुक रुक कर होने वाली बारिश से सब बर्बाद हो गया है। जिस एक बीघा खेत में कम से कम चार कुंटल गेंहू निकलना चाहिए था उसमें मात्र एक ही कुंटल गेंहू निकला है। ऐसे में बटाई किसानों पर दोहारी मार पड़ रही है एक तरफ जहां उनको खेत मलिक को पैसा या अनाज देना है वही दूसरी तरफ खुद की भूख मिटाने के लाले पड़ गये है।
बटाई किसानों के वर्जन
बाराबंकी जिले के मदारपुर गांव के निवासी रंजीत के परिवार में दस लोग है इनकी रोजी रोटी बटाई पर किसानी कर के ही चलती है। इस बार हुई फसल बर्बादी के कारण इतने बड़े परिवार को पालने की जिम्मेदारी इन पर भरी पड़ रही है। रंजीत ने बताया कि इस बार छ: बीघा बटाई पर लेकर खेती की थी। हर बार की तरह इस बार भी फसल बहुत अच्छी हुई थी मगर बारिश के कारण सारी फसल बर्बाद हो गई। खेत मलिक को पंद्रह कुंटल अनाज देना है मगर हुआ दो कुंटल भी नहीं है। फसल कटी हुई खेत में बड़ी है मगर उसको थ्रेशर से कटवाने के हिम्मत नहीं हो पा रही है क्योकि जितना गेंहू निकलेगा नही उससे ज्यादा कटाई लग जायेगी। इस बार तो खाने को •ाी लाले पड़ जायेगे।
2:::::बाराबंकी जिले के पुरवा निवासी राम प्रताप के परिवार में नौ लोग है जिसमें से उनकी चार बेटियां है जिनमें से दो शादी के लायक है। इस बार उन्होंने पंद्रह बीघा जमीन ली थी बटाई पर इस उम्मीद से कि फसल अच्छी होगी कुछ पैसे बच जायेगे जिससे वो अपनी लड़की की शादी कर पायेगे। कुदरती कहर के आगे उनका ये सपना भी टूट गया। इसके अलावा जो नुकसान हुआ सो अलग। राम प्रताप ने बताया कि पंद्रह बीघा में जिस तरह की फसल थी उससे कम से कम 50 कुंटल गेहू होता मगर बर्बादी के कारण दस कुंटल •ाी निकलना मुश्किल है। ऐसे में हमारी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है खेत मलिक गेहू लेने और पैसा का तकादा करते रहते है। मलिक को तो पैसा चाहिए उसको इससे मतलब नहीं कि हमारा कितना नुकसान हुआ। अब जो तय हुआ था उसको तो देना ही पड़ेगा।
3::::::::: लखनऊ जिले के बसहा गांव के निवासी राम चंदर ने नौ बीघा जमीन बटाई पर ली थी और लग•ाग तीस हजार रुपये लगा दिये है मगर बर्बादी के कारण उनको जहां पंद्रह कुंटल अनाज मिलना था वही इस बार सिर्फ सात कुंटल ही नसीब हो पाया है ऐसे में नौ लोगों के बड़े परिवार के •ाारण पोषण की दिक्कत •ाी उनके सामने खड़ी है उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जो पैसा मिल रहा है वो •ाी सीधे खेत मलिक को ही दिया जा रहा है ऐसे में हम लोगों का पुरसा हाल कोई नहीं है। खेती के सिवा हम लोगों को कुछ आता •ाी नहीं है ऐसे में हुए नुकसान के कारण अब हम लोगों के जीने के लाले पड़ गये है।
4::::::: पैगरामऊ निवासी किसान प्यारे लाल को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है उन्होंने आठ बीघा खेती बटाई पर लेकर की थी जिसमें से ओलावृष्टि और बारिश के कारण चार बीघा तो फसल खेत में लगे लगे ही बर्बाद हो गई। बाकी बचे चार बीघा में मात्र दोकुंटल ही अनाज हुआ जबकि लागत में उन्होंने कम से कम तीस हजार रुपये लगा दिये। उनके परिवार में नौ लोग है खेती पर ही निर्•ार रहने वाले प्यारे लाल इस बात से काफी परेशान लग रहे थे कि परिवार का पेट कैसे पालेगे क्योकि उम्र होने के कारण उनसे अब मजदूरी •ाी नहीें हो पायेगी।
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