Saturday, 30 May 2015

फ्लैटों की बिक्री पर भूकम्प का झटका

इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। महीने भर पहले नेपाल में आये विनाशकारी भूकंप के झटके राजधानी समेत पूरे प्रदेश  में महसूस किये गये। भूकंप के झटको से लोगों में दहशत का आलम ये था कि वो रातों को घरो में सोने के बजाये पार्क और खुले मैदान में जागकर अपनी रातें गुजारी है। भूकप का डर लोगों के अंदर किस हद तक समाया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शहर में अपार्टमेंट की बिक्री में काफी गिरावट आयी है अब लोग फ्लैट खरीदन से कतरा रहे है जिन्होंने फ्लैट लिया भी  है वो भी  डर के साये में जीने को मजबूर है। ऐसे में बिल्डरों की चिुता जहां एक तरफ बढ़ रही है वही दूसरी तरफ लोग अब मकानों की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे है।

पांच सालों में बढ़ा है अपार्टमेंट कल्चर
मार्डन होते लखनऊ में पिछल्ले पांच सालों में अपार्टमेंट और फ्लैटों के प्रति शहरवासियों का लगाव ज्यादा बढ़ा है। जिसके कारण शहर के अंदर और बाहरी इलाकों में अपार्टमेंट की भरमार होती जा रही है। अपार्टमेंट बनाने में प्राइवेट कंपनियों से लेकर सरकारी विभाग भी  लगे हुए है। शहर की 25 प्रतिशत अबादी जो सक्षम है वो मकान न लेकर अपार्टमेंट कल्चर को ज्यादा अपना रहे है। शहर में गंगनचुंबी इमारते अब असानी से देखने को मिल रही है। लेकिन अभी  हाल में ही आये लगातार भूकंप के झटको ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अपार्टमेंट में लाख सुविधा होने के बाद भी  क्या वो ऐसी आपदा से उनको बचाने में सक्षम है ?

भूकंप के खौफ से कम हुई बिक्री
राजधानी में भूकंप के झटको ने लोगों में ऐसा खौफ पैदा किया है कि वो अपनी सुरक्षा को लेकर ज्यादा सजग हो गये है। कभी  फ्लैटों की तरफ भागने वाले शहरवासी आज उनसे दूरी बनाये हुए है। क्योकि भूकंप में सबसे ज्यादा जान माल के नुकसान का खतरा जो है उसमें अपार्टमेंट का नाम पहले आता है। सेकेंड भर के भूकम  में पूरा शहर तबाह हो जाता है ऐसे में अपार्टमेंट से बाहर आने में लोगों को वक्त भी  नहीं मिल पायेगा।  यहीं खौफ उनके दिलो ओर दिमाग में भर गया है जिससे उनका रुझान अपार्टमेंट की तरफ हाल के दिनों में काफी कम हुआ है।

मानकों के अनुरुप भी  नहीं बनाते है अपार्टमेंट
शायद ही किसी ने सोचा हो कि राजधानी में भी  कभी  भूकंप के झटके आ सकते है इसी लापरवाही के चलते कई प्राइवेट कंपनियां और बिल्डरो ने आज से तीन साल पहले जो अपार्टमेंट बनाये थे वो भूकंपरोधी मानक के अनुरुप नहीं बनाये थे जिसका खामियाजा अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों को भूगतना पड़ सकता है। भूकम के झटके आने के बाद आनन फानन में आपदा प्रंबधन भी  जो पहले कभी  निष्क्रिय पड़ा था सक्रिय नजर आने लगा। दसके अलावा विकास प्राधिकरण और आवास विकास भी  अब बिना नक्शे और भूकंपरोधी मानकों को पूरा करने वालों को ही तरजीह दे रहा है। लेकिन ऐसे में सवाल ये उठता है कि पहले जो अपार्टमेंट मानको के विपरीत बने है उनके खिलाफ क्या कार्रवाई कर रहा है।

ये है अपार्टमेंट के क्षेत्र
शहर में अपार्टमेंट कल्चर बढ़ने के इलाके में सबसे ऊपर गोमती नगर का क्षेत्र आता है जहां पर मकान कम और अपार्टमेंट ज्यादा है दसके अलावा फैजाबाद रोड़, कैसरबाग और जापलिंग रोड़ पर भी  अपार्टमेंट का कल्चर तेजी से बढ़ा है। यदि ऐसे में भूकंप का कोई मजबूत झटका आता है तो सबसे ज्यादा तबाही इसी क्षेत्र में होगी।
भूकंप रोधी पैमाना
 मकान का नींव डालते समय ही भूकंप रोधी पैमाना का ख्याल रखा जाना चाहिए. एक्सपर्ट के अनुसार नींव में छड़ व कंक्रीट से प्लिंथ ढलायी व मजबूत छड़ के साथ सभी  कोनों पर कंक्रीट पिलर आवश्यक है। साथ ही दरवाजे व खिड़की के ऊपर लिंटल बैंड व फिर छत के पास छत बैंड आवश्यक रूप से दिया जाना चाहिए। सामान्यत: कंक्रीट पिलर का इस्तेमाल तो हर कोई करता है, लेकिन प्लिंथ ढलायी व छत बैंड के इस्तेमाल से लोग बचते हैं, इस कारण भूकंप के झटके से मकान में दरारें आ सकती है और वह टूट भी  सकता है।

वर्जन
अपार्टमेंट निवासियों के
.1::: फैज बद्र और उनके भाई  दुबई में जॉब करते है। कैसरबाग स्थित अपार्टमेंट में उनकी मॉ किराये के फ्लैट में रहती है। उन्होंने बताया कि जब उन्हे पता चला कि शहर में भूकम  आया है तो उन्होंने अपनी मॉ को दुबई बुला लिया । भूकंप के खौफ से वो अपार्टमेंट में फ्लैट लेने वाले थे मगर उन्होंने अब अपना मन बदल दिया है उन्होंने बताया कि अब वो पूरी तरह तसल्ली कर लेंगे कि अपार्टमेंट भूकंप विरोधी मानकों के अनुरुप बना है तभी  फ्लैट लेगे।

2::: आजम गढ़ निवासी साहिल के अनुसार वो पिछल्ले कई वर्षों से लखनऊ में रह रहे है उन्होने बताया कि अभी  हाल में ही एक फ्लैट लिया था जिसमें वो अपने परिवार को बुलाकर साथ रहने की सोच रहे थे मगर भूकंप के डर से अब वो उस फ्लैट को बेच कर कोई मकान लेने की सोच रहे है साहिल ने बताया कि उनकी एक छोटी बेटी है और वो काम के सिलसिले में बाहर रहते है यदि ऐसे में कोई हादसा होता है तो उनकी पत्नी बच्चे को लेकर कैसे बाहर आयेगी। बस इसी कारण उन्होने फ्लैट बेचने का मन बना लिया है।

बिल्डर का वर्जन
शहर के प्रतिष्ठित बिल्डर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब से भूकंप आया है तब से फ्लैटों की बिक्री में काफी कमी आई है जिन लोगों ने फ्लैट के लिए बंकिंग की थी उन्होनें भी  बुकिंग कैंसिल कर दी है। ऐसे में हम लोगों का करोड़ो रुपया फसा हुआ है। जबकि हम लोग मानकों के अनुरुप बना रहे है फिर भी  लोगों में भूकंप के डर से बिक्री धीमी हो गई है। ये डर जब तक बना रहेगा तब तक तो एसी ही हालत रहेगी।

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Thursday, 28 May 2015

सूदखोरों की शरण में किसान




लखनऊ। पहले फसल बर्बादी, उसके बाद सरकार की उदासनीता ने किसानों की कमर तोड़ दी है। अभी  साल के शुरुआत में ओलावृष्टि और बारिश से खेतो में लहराती फसल तबाह हो गई और साथ में खत्म हो गई किसानों की उम्मीद और ारण पोषण के लिए लगी आस। एक तरफ दैवीय आपदा ने किसानों का सब कुछ छीन लिया वहीं दूसरी तरफ सरकार द्वारा सहायता न मिलने से किसान महाजन और साहूकारों की शरण में जा रहे हैं जिससे उन्हेआर्थिक दबाव के साथ मानसिक दबाव भी  झेलना पड़ रहा है। किसानी के जरिये ही अपना और अपने परिवार का रण पोषण करने वाले किसानों के पास अपनी अगली फसल के लिए पैसे साहूकारों से लेने पड़ रहे हैं। इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। ऐसे में सूदखोर अपने मन मुताबिक ब्याज लगाकर किसानो को पैसा दे रहे है । मजबूरी में किसान इनके शरण में जाने को मजबूर हैं।

सरकार की उदासीनता से किसान परेशान

सरकार लगातार किसानो की बर्बाद फसल का मुआवजा देने का ढ़िंढोरा पीट रही है और सरकार द्वारा अब तक पचास करोड़ रुपये से ज्यादा बांटने की बात कही जा चुकी है मगर हकीकत में ये पैसा बर्बाद किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने में नाकाफी है। इसके अलावा ये पैसा सही किसान तक पहुंच
अभी  नहीं रहा है। दैवीय आपदा से गेंहू की फसल कम से कम सत्तर प्रतिशत बर्बाद हो गई है। इसके अलावा  किसानों की मदद के लिए सरकार की तरफ से जो सर्वे करवाये गये हैं, वो अभी  सही ढ़ंग से नही किये गये हैं जिससे मुआवजे का पैसा सही हकदार तक नहीं पहुंच रहा है।

सूदखोरो की चांदी

दैवीय आपदा से बर्बाद किसानों के लिए अपनी अगली फसल बोने के लिए सूद पर  पैसे लेना मजबूरी बन गया है। दैवीय आपदा से हुए नुकसान से जहां एक तरफ किसान अपनी बर्बादी पर रो रहा है
, वहीं दूसरी तरफ सूद पर पैसा देने वाले महाजनों की चांदी है। उनके पास अगली फसल को बोने के लिए पैसे की जरुरत को महाजन पूरा तो कर रहे हैं मगर उसके बदले उनसे सूद के रुप में हजारों रुपये वसूल कर रहे हैं। सूद पर पैसे देने वाले लोग किसानों की मजबूरी का रपूर फायदा उठा रहे हंै और किसान सब कुछ जानकर भी  उनकी शरण में जाने को मजबूर हैं क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई और विकल्प ही नहीं है।

बैकिंग प्रणाली  बनी रोड़ा

देश प्रदेश का किसान ज्यादातर साक्षर नही है
, इसलिए सरकार की तरफ से दिया जाने वाले बैंक लोन की प्रणाली अभी  उसकी समझ में नही आती है, जिसके कारण वो बैंकों से मिलने वाले लोन को झंझट समझकर उससे दूर भागता  है और अंत में जाकर सूद पर पैसा ले लेता है। बैंकों की जटिल लोन प्रणाली भी  किसानों को सरकारी मदद पहुंचाने में बाधा बन जाती है जिस कारण किसान बैंक के चक्कर काटने से बचने के लिए उससे ज्यादा ब्याज पर महाजन से पैसा ले लेता है।

क्या है ब्याज

फसल बर्बादी पर किसानों को सरकार की तरफ से मुआवजा नहीं मिला। जो मिला
भी  वो बहुत कम है, जिसके सहारे वो अपना  पोषण करें या उन पैसों से खेती करें। इसी के चलते महाजनों की चांदी है। वो किसानों को अपने मनमुताबिक ब्याज पर पैसा दे रहे हैं जिसमे वो औसत से ज्यादा ब्याज लगा रहे हैं। इस वक्त जो महाजन पैसा दे रहा है, वो उन पैसों पर बीस प्रतिशत या उससे ज्यादा ब्याज ले रहा है। इसके अलावा ब्याज पर ब्याज भी  लेते है  जिससे किसान इस सूदखोरो के चंगुल से निकल ही नहीं पाते हंै और हमेशा उनके कर्जदार रहते हैं। इसके अलावा जब कोई महाजन से पैसा ब्याज पर लेता है तो उसके बदले उसको कुछ सामान भी  गिरवी रखना पड़ता है। लेकिन किसानों की बात करे तो महाजन इनको बिना किसी शर्त के पैसा दे देते हैं क्योंकि किसानों के पास उनकी जमीन होती है और महाजन जानता है कि वो अगर पैसा न दे पाया तो उसकी जमीन को अपने कब्जे में ले लेगा। इसलिए किसानों को ब्याज पर पैसा भी  आसानी से मिल जाता है।

नियम

सरकार ने सूदखोरों के चंगुल से लोगों को मुक्त कराने के लिए इनके ऊपर शिंकजा
भी  कसा है और सूदखोरी को गैर-कानूनी करार दिया है। ऐसे में जो इसमें लिप्त पाया जाता है, उसके लिए सजा का भी  प्रावधान है मगर ये गैर-कानूनी होते हुए भी  शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रो में खूब फल-फूल रहा है। इनमें कार्रवाई भी  होती है तो मात्र खानापूर्ति बनकर रह जाती है।

वर्जन
1:::::: बाराबंकी क्षेत्र के पंडरी गांव के निवासी केतन जो किसानी करते है उन्होंने बताया कि उनके पास छ: बीघा जमीन है इस बार बारिश से पूरी फसल बर्बाद हो गई। जिसके कारण ब्याज पर जो पैसा लिया था वो वापस नहीं कर पाये और फसल बर्बाद होने की वजह से दूबारा ब्याज पर पैसा लेना पड़ा जिससे हमारे ऊपर दोहरा ाार पड़ गया है। इस बार अगर फसल नहीं पैदा हुई तो गिरवी रखा खेत भी  बेचना पड़ जायेगा। बैंक से लोन लेने के बारे में उन्होने कहा कि हम तो अनपढ़ है और बैंक का हिसाब किताब नहीं पाता यहां जब जरुरत होती है साहूकार से जा के पैसा ले आते है। बिना लिखा पढ़ी के असानी से मिल जाता है।

2::::::: गंगौली गांव के निवासी राम सेवक के परिवार में सात लोग है। उनके पास साढ़े तीन बीघा जमीन है। इसी जमीन के सहारे वो पूरे परिवार का पेट पालते है। उन्होने बताया कि इसी जमीन के सहारे उन्होने साहूकार से 25000 रुपये ब्याज पर लिये थे मगर फसल की पैदावार अच्छी न होने के कारण वो पैसा वापस नहीं कर पाये ऊपर से ब्याज तो जो है सो है। उन्होंने बताया कि अगली फसल के लिए भी  उनको पैसे की जरुरत है तो वो भी  साहूकार से ही लेगे। ब्याज ज्यादा देने के बारे में उन्होंने कहा कि साहूकार ब्याज तो ज्यादा लेते है मगर इसके अलावा कोई रास्ता भी  तो नही है।

#सूदखोर #किसान #बैंक #सूदखोरी

Friday, 22 May 2015

मन में हो जूनून तो मिलता है लक्ष्य - अरुणिमा सिन्हा

इन्टरवल एक्सप्रेस लखनऊ।

कश्ती हर तूफां से निकल सकती है 
बिगड़ी हुई बात फिर बन सकती है
हिम्मत रख हौसला न हार 
किस्मत किसी रोज बदल सकती है। 
शायद, ये पंक्तियां अरुणिमा सिन्हा के लिये ही लिखी गई हैं। एक पैर के सहारे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी मांउट एवरेस्ट तक पहुंचने वाली अरुणिमा सिन्हा अपने जुनून को एवरेस्ट से •ाी बड़ा मानती हैं। युवाओं की प्रेरणास्त्रोत बनकर उभरी  अरुणिमा सिन्हा को देखकर ऐसा लगता है कि अगर हिम्मत और जूनून हो तो कागज की कश्ती भी  समुंदर में झोंके खाकर साहिल पर पहुंच सकती है। यह उनका जुनून ही है जिसने बांया पैर न रहते हुए भी  उन्हें एवरेस्ट की ऊंचाई छूने की कामयाबी दिलाई। पेश है उनकी बहादुरी और कामयाबी की दास्तान।
मोहम्मद फाजिल
जिस देश में बेटियों को बोझ समझकर उनका त्याग कर दिया जाता है, बेटे की चाहत में जहां गर्भ  में ही बेटियों की बलि दे दी जाती है। महज इसलिए क्योेंकि वह बड़ी होकर धरती समाज और परिवार पर बोझ बनेंगी। ऐसे में जब कोई बेटी कुछ बड़ी उपलब्धि हाासिल कर लेती है तो न सिर्फ उसके परिवार को बल्कि पूरे देश और दुनिया को भी  उस पर गर्व महसूस होता है। ऐसी बहादुर बेटियां ही सिर्फ उन निर्दयी और बेरहम लोगों को बता सकतीं हैं कि बेटियों के कारण सिर सिर्फ झुकता नहीं बल्कि गर्व से ऊपर भी  उठता हैं।
ऐसी ही एक भारतीय बेटी है जिसने सिर्फ अपना ही नहीं परिवार व देश का नाम दुनिया भर के सामने फक्र से ऊंचा कर दिया है, साथ ही ये भी  बताया कि शारीरिक कमजोरी और विकलांगता लक्ष्य को हासिल करने में रुकावट नहीं बन सकती। एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने शहर आई अरुणिमा सिन्हा ने हमसे काफी कुछ शेयर किया।
अपने बारे में कुछ बताइये?
मैं मूल रुप से अम्बेडकर नगर की रहने वाली हूं। मैं वालीबॉल और फुटबाल की काफी अच्छी खिलाड़ी थी। वालीबॉल में तो मैंने राष्ट्रीय स्तर पर टीम का प्रतिनिधित्व भी  किया है। हादसे के बाद खेल न खेल पाने की कसक थी मगर मैंने उसको बदलकर पर्वतारोही बनने का फैसला किया। आज अपनी मेहनत और घरवालों के हौसले के सहारे मैं इस मुकाम पर पहुंच पाई हूं। दुर्घटना के समय मैं पदमावती एक्सप्रेस से दिल्ली जा रही थी। बरेली के पास कुछ अज्ञात बदमाशों ने मेरी चेन छीनने की कोशिश की जब मैंने विरोध किया तो मुझे ट्रेन से नीचे फेंक दिया जिससे मेरा बांया पैर कट गया। लगभग सात घण्टे तक बेहोशी की हालत में तड़पती रहीं। सुबह टहलने निकले कुछ लोगों ने जब मुझे पटरी के किनारे बेहोशी की हालत में पाया तो तुरंत अस्पताल पहुंचाया। एम्स में इलाज के दौरान मेरा बाया पैर काट दिया गया। इन सब मुसीबतों के बीच मेरे परिवार और सहयोगियों ने मेरा बहुत साथ दिया। बछेंद्री पाल ने मेरे सपने को साकार करने और उसके लिए हिम्मत देने का काम किया।

एवरेस्ट फतेह करने का ख्याल कैसे आया?
ट्रेन हादसे में मैने अपने पैर गंवा दिये थे। अस्पताल में बिस्तर पर बस पड़ी रहती थी। परिवार के सदस्य, मेरे अपने मुझे देखकर पूरा दिन रोते, मुझे सहानुभूति की भावना से अबला व बेचारी कहकर सम्बोधित करते। मगर ये मुझे मंजूर नहीं था मैने मन ही मन कुछ अलग करने की ठानी। हादसे के बाद खेल न खेल पाने की कसक थी मगर मैंने उसको बदलकर पर्वतारोही बनने का फैसला किया। उसके बाद मैं अपने जीजा और भाई के साथ जमशेदपुर पहुंच गई। वहां मैने एवरेस्ट फतेह कर चुकी बछेंद्री पाल से मुलाकात की। उस वक्त मेरा एक पैर कटा हुआ था और दूसरे पैर में स्टील के टांके लगे हुए थे। मैने उनसे कहा कि मैं पर्वतारोही बनना चाहती हूं। यह सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा कि तुम तो पहले ही एवरेस्ट फतेह कर चुकी हो, अब केवल दुनिया के लोगों के लिए फतेह करना है। उनकी इस बात से मेरा हौसला और बढ़ गया। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 21 मई को माउंट एवरेस्ट पर पहुंच गई। वहां पहुंचने के बाद मेरा दिल कर रहा था कि मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर चिल्लाकर लोगों को बता दूं कि मैं कोई अबला या कमजोर नारी नहीं हूं।

आपको इसकी प्रेरणा कहां से मिली?
मैनें अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया। हादसे के बाद मेरे ऊपर कई तरह के आरोप लगे जैसे बिना टिकट यात्रा कर रही थी, तो टीटी के आने पर कूद गई। लोगों ने तरह-तरह के आरोप लगाये। आज मैं उन्हीं लोगों को धन्यवाद देना चाहती हूं क्योंकि उनकी ही वजह से मेरे अंदर हिम्मत आई, कुछ कर गुजरने का जज्बा आया। मेरे आलोचक ही मेरे सबसे बड़े  शुभचिंतक है।

आपका कोई खास सपना जिसे साकार होते देखना चाहती हैं?

मेरा सपना एक इन्टरनेशनल स्पोर्ट एकेडमी बनाने का है। इसके लिए मैनेें उन्नाव में दस बीघा जमीन लेने का मन बनाया है । इस एकेडमी का नाम चंद्रशेखर आजाद रखा है। यहां विकलांग बच्चों को  शिक्षा के साथ, खेल भी  सिखाया जायेगा। इसके अलावा डीआरडीओ से भी  बात हो रही है, जिससे विकलांग बच्चों के लिए एक रिसर्च सेंटर खोला जायेगा जिसमें कम पैसे में अच्छा और कृत्रिम पैर आसानी से उपलब्ध हो सके। मेरा कृत्रिम पैर विदेश का है। अब मैं चाहती हूं कि यहां के लोगों को अच्छे कृत्रिम पैर देश में ही सस्ते दामों में मिल सके। ये सारा काम मैं खुद अपने पैसे से करवा रही हूं। मुझे जो भी  राशि बतौर पुरस्कार मिली है, उसी राशि से एकेडमी के लिए जमीन खरीदी है। सरकार की तरफ से अभी  तक कोई आर्थिक मदद नहीं मिली हैं।

क्या आपके पास भी  फिल्मों के आॅफर आए हैं?
 जी हां, मेरे ऊपर फिल्म बनाने को लेकर हॉलीवुड के एक डायरेक्टर से बात चल रही है। मगर मैं उनको सिर्फ इंग्लिश फिल्म के राइट्स दूंगी। हिंदी फिल्म के राइट्स के लिए भी  बॉलीवुड के जान-माने डायरेक्टर से बातें चल रही है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि मेरे ऊपर किताब भी  लिखी जा चुकी है जिसका नाम 'बोर्न आगेन आन द माउंटेन'  हैं। इसके अलावा हिंदी और कन्नड़ में भी  इसके प्रकाशन की तैयारी है।

पद्म श्री पाकर कैसा महसूस हुआ? 
देश का इतना बड़ा सम्मान मिलने से जो खुशी मिली है, उसको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। मेरे लिए ये सम्मान नहीं जिम्मेदारी है। इस सम्मान का मान रखना मेरा पहला कर्तव्य है।

युवाओं के लिए संदेश
मैं युवाओं को यह संदेश देना चाहती हूं कि वो सबसे पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसको पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करें। किस्मत के सहारे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। किस्मत भी  बहादुर लोगों का साथ देती है।

#पद्मश्री #इंटरव्यू #अरुणिमासिन्हा #एवरेस्ट #फ़तेह

अखिलेश की राह में रोड़ा बनते जा रहे है सपाई


इन्टरवल एकसप्रेस
लखनऊ। मुख्यमत्री अखिलेश यादव के अगामी विधानसभा  चुनाव लक्ष्य 2017 में दूबारा सत्ता में आने की राह में सपा कार्यकर्ता और उनके अपने ही लोग रोड़ा बनते जा रहे है। जब से प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है तबसे सपा कार्यकर्ताओं के द्वारा उत्पात मचाने की खबरे आये दिन आती रहती है। सपा सरकार पर हमेशा से ही ये आरोप लगता रहा है कि अपराध बेलगाम हो जाते है। इसकी बानगी का नजारा सपा सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में ही देखने को मिला जब कार्यकर्ता बेलगाम हो मंच पर चढ़ गये और अपने समाजवादी होने का एहसास दिलाया था।
नहीं लगा पा रहे है लगााम
सपा सरकार के आते ही गलियों के छुटभैया  नेता भी  अपने को मुख्यमंत्री से कम नहीं समझते है। सपा सरकार में उनके कार्यकर्ता और नेता कानून को भी  ठेंगा दिखाते है। थाने और सड़क पर ऐसा रौब दिखाते है कि जैसे वो खुद ही मुख्यमंत्री और कानून है। कार्यकर्ताओं ने तो कई बार अनुशासनहीनता की हदें ही पार कर दी है। कई बार पार्टी की बैठक में ही कई नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते नजर आये है। पार्टी की अदंरुनी मामले भी  अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन चुके है। अभी  हाल में ही सपा एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने अपने फेसबुक पर ही सीधे मुख्यमंत्री और पार्टी के खिलाफ खुलकर लिखा जिसके बाद उनको नोटिस दी गई। जिसका जवाब भी  उन्होंने फेसबुक पर ही दिया है। इसके अलावा आगरा के सपा नेता शैलेंद्र अग्रवाल पर फोन स्पूफिंग कर 300 करोड़ की ठगी करने का आरोप लगा है जिसके चलते उनको गिरफ्तार कर लिया गया है।
मुलायम को भी  देनी पड़ी है नसीहत
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव एक खास हुनर के मलिक है सपा मुखिया अपनी पार्टी के लिए कार्य करने वाले जो कभी  उनके निकट से गुजरा हो या जो पार्टी हित में कभी  काम आया हो उसको कभी  नहीं भूलते है अपनी इसी अच्छाई के कारण वो वह कई बार हितैषियों के बेलगाम और अनुशासनहीनता के चलते मुसीबत में नजर आये है। इसी कारण वो कई बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में और खुले मंच से पार्टी के कार्यकर्ताओं को नसीहत देते हुुए दिखाई दिये है। कई बार उन्होंने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भ्रष्टचार से भी  दूर रहने की नसीहत दी है।
बढ़ती जा रही है नेताओं और कार्यकर्ताओं की दंबगाई
 प्रदेश में जब से सपा सरकार बनी है तबसे लेकर आज तक सपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की दंबगाई में इजाफा होता जा रहा है। हाल में ही में  गोसाईगंज के विधायक अभय सिंह के काफिले की गाड़ी को बाराबंकी के अहमदपुर टोल प्लाजा पर रोके जाने से उनके समर्थक भड़क गए और उन्होंने टोल कर्मियों पर हमला कर दिया। सपा कार्यकतार्ओं के हमले में टोल प्लाजा का एक कर्मचारी घायल हो गया। सूत्रों के मुताबिक घटना के वक्त अभय  सिंह एक गाड़ी में खुद मौजूद थे। इसके अलावा मंत्री परशुनाथ यादव के बेटे लकी यादव पर भी  वसूली और मारपीट कई तरह के आरोप लगते रहे है, फर्रुखाबाद में सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव के कार्यक्रम में वहां के जिलाध्यक्ष को गाड़ी अंदर ले जाने की अनुमति न मिलने पर उसके बेटे ने और कई कार्यकर्ताओं ने पुलिसकर्मियों  को बेरहमी से मारा पीटा था। ये सब मामले  सत्ता पक्ष से जुड़े होने के  कारण कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। सपा मुखिया की सख्त हिदायत के बाद भी  2014 में समाजवादी पार्टी में मंत्री रह चुके वीरेंद्र सिंह के बेटे मनीष ने जिला पंचायत चुनाव में जीत हासिल करने के बाद विजय जुलूस निकाला हवा में बंदूक लहराते और फायरिंग करते हुए खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ने लगीं। सपा कार्यकतार्ओं की इस हुड़दंग के आगे पुलिस भी  बेबस नजर आई। हद तो तब हो गई जब जुलूस के साथ सुरक्षा के लिए चल रही एएसपी की गाड़ी पर ही हुड़ंदगियों ने कब्जा कर लिया और उसी पर चढ़कर गोलियां दागने लगे और पुलिस मूक दर्शक बनी रही। ये तो मात्र कुछ घटनाएं है जबकि सपा सरकार के तीन साल का कार्यकाल ऐसे न जाने कितने कारनामों से भरा है।
#सपाई #अखिलेश #मिशन २०१७ #सपा सरकार

वर्दी के जरिये सेवाभाव ही मेरा मकसद-मानिक राम सिंह


इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। मेहनत और लक्ष्य के प्रति समर्पण जिसके अंदर ये दोनो चीजे है वो इंसान कठिन से कठिन मंजिल भी  असानी से पा सकता है। मूलरुप से जलालपुर जिला अम्बेडकर नगर के निवासी एसपी ट्रांस गोमती मानिक राम सिंह राजधानी की कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने में लगे हुए है। अपने परिवारिक जिम्मेदारियों के साथ वो जनता के प्रति अपनी जवाब देही का भी  निर्वाहन बखूबी कर रहे है। घटनास्थल पर पहुंचना, लोगों के बीच सक्रिय रहना और तुरंत कार्रवाई करना उनकी खासियत है। उनके आने से ट्रांस गोमती इलाके में आये दिन अभियान चलाकर अपराधियों की धरपकड़ करने में लगे हुए है। इस कठिन नौकरी के बीच उन्होंने अपनी लाइफ स्टाइल के बारे में इंटरवल एक्सप्रेस की खास मुलाकात के जरिये अपनी बाते साझा की।

अपने बारे में बताये 
मेरा जन्म 1968 में रामपुर चांडी दिहा गांव में हुआ था इस वक्त ये गांव अम्बेडकर नगर जिले में आता है मगर पहले ये फैजाबाद जिले में हुआ करता है मैने अपने प्रारम्•िाक शिक्षा सौन गांव के प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त की इसके बाद इंटर तक की पढ़ाई बड़ा गांव स्थित जनता इंटर कालेज से प्राप्त की। इसके बाद स्नातक और परास्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रहण की। मैने दर्शन शास्त्र से एमए किया है। इसके बाद मैने 1990 के पीसीएस बैच में मेरा सलेक्शन हुआ।

पुलिस में आने का कोई खास मकसद आपका ?
मेरे परिवार में कोई भी पुलिस विभाग  में नही था और मेरा पुलिस के प्रति कोई खास आकर्षण नहीं था लेकिन जनता करी सेवा करने का जो मौका पुलिस को मिलता है वो किसी और विभाग में नहीं मिल पाता। मेरा जनता की सेवा करने का हमेशा से ही मोटिव रहा है ऐसे में पुलिस विभाग  में मेरी पोस्टिग होने से मेरा ये सपना •ाी पूरा हो गया। पुलिस के पास कोई भी  अमीर मदद के लिए नहीं आता जो आते है वो गरीब होते है जब वो सब कहीं से निराश हो जाते है तो वो पुलिस का सहारा लेते है उनको उम्मीद होती है कि पुलिस उनकी मदद करते है। इसके अलावा •ाी पुलिस विभाग  में मदद करने के बहुत मौके मिलते है। पुलिस की वर्दी शहरवासियों को सुरक्षित होने का एहसास दिलाती है।

पुलिस में क्या बदलाव महसूस करते है
मार्डन समय में पुलिस भी  मार्डन हो गई है अब पुलिस साइकिल से नहीं चलती है उसके पास भी  मार्डन जमाने की बाइक और चार पहिया वाहन है। वक्त के साथ पुलिस में बदलाव होना भी  जरुरी है। 100 नंबर पर सूचना देने से अब घटनास्थल पर पुलिस तुरंत पहुंच जाती है। टेक्नालॉजी का फायदा पुलिस विभाग  ने बखूबी उटाया है अब आन लाइन एफआईआर दर्ज करवाने की प्रणाली आ जाने से थानों पर फरियादियों की  भीड़  कम हो गई है।

अपना यादगार पल बताये?
मुझे याद है कि मेरी जव पहली पोस्टिग 96 में हुई थी। पोस्टिंग के एक महीने बाद ही विधायक की हत्या कर दी गई। उस वक्त प्रदेश में राज्यपाल का शासन था। विधायक की हत्या के बाद पूरे क्षेत्र का महौल तनावपूर्ण हो गया। घटनास्थल पर पहुंचने वाला मैं पहला शख्स था। उस वक्त मैने ये जाना कि जनता के बीच रहना कितना फायदेमंद होता है लोगों ने मेरे काम को सराहा और पुलिस विभाग  की तरफ सभी  मुजको इस काम के लिए सराहा गया।

क्या कभी  राजनीतिक लोगों से पाला पड़ा है ?
कभी  मेरा ऐसा लोगों से आमने सामने पाला नहीं पड़ा मगर फोन पर अक्सर ऐसे लोगों से बात होती है जो पार्टी का नाम बताकर पकड़े गये लोग को छोड़ने का दबाव बनाते है। किसी नेता के खास आदमी या मंत्री से परिवारिक रिश्ते होने का दावा कर के दबाव बनाने का काम करते है मगर मेरी विवेचना या जांच में यदि वो व्यक्ति गलत पाया जाता है तो मैं छोड़ता नहीं हूं। फिर ये तो राजनीति का एक हिस्सा है।

परिवार को कितना समय देते है?
मेरे परिवार में पत्नी और दो बेटे है परिवार के लिए समय ही नहीं मिल पाता है। उनके अध्यापन पर भी  ध्यान नही  दे पाता हूं। कभी कभी  तो मुलाकात तक नहीं हो पाती बच्चों से क्योकि किसी केस में उलझ जाता हूं तो रात में देर से पहुंचता हूं और तब तक वो सो जाते है। परिवार को समय न दे पाने की कमी तो खलती ही है।

खाने में क्या पसंद है?
मैं पूरी तरह से शाकाहारी हूं मैं अंडा तक नहीं खाता । शाकाहारी खाने में मैं सभी  डिश खाता हूं। इसके अलावा मैं ध्रूमपान और शराब जैसी सेहत हानिकारक चीजों का विरोधी हूं। न करता हूं और न ही मुझे पसंद है कि कोई मेरे सामने करें।

खाली समय कैसे बीताते है
खाली समय मिलता ही कहां है जब क•ाी मिलता है तो परिवार के साथ या फिर सोशल मिडिया पर सक्रिय रह कर गुजारता हूं।

कौन नेता पसंद है आपको
मुझे हर वो नेता पसंद है जो विकास की बात करे और विकास का कार्य करें। देश और जनताहित की बात करने वाला ही असल में सबसे अच्छा नेता है मेरी नजर में। संप्रदायिकता फैलाने वाले और लोगों को लड़ाकर अपना काम निकालने वाले कभी  नेता हो ही नहीं सकते है। इसके अलाव मेरे पंसदीदा जो है वो कलाम साहब है उनसे मुझे प्रेरणा मिलती है।

ट्रांस गोमती में लूट चोरी की घटनाएं बढ़ गई है इसके बारे में आप क्या कहेंगे ?
मैं मानता हू कि इधर कुछ दिनों से घटनाऐ बढ़ गई है मगर जब से सीसीटीवी कैमरे लगे है तब से हमारा और हमारे वि•ााग का जो आकलन है उसमें पिछल्ले के मुकाबले अब घटनाऐं कम हुई है। बाकी ऐसे घटनाओं को रोकने के लिए संदिग्ध लोगों पर नजर रखी जा रही है संदिग्ध बाइक सवार को पकड़ कर सीधे थाने में लाने का आदेश दिया गया है। बैंक के 500 मीटर के दायरे में कोई •ाी संदिग्ध व्यक्ति या बाइक  नजर आती है तो उसपर तुरंत कार्रवाई की जा रही है।

युवाओं के लिए संदेश
आज के युवा बहुत प्रतिभाशाली है वो देश का भविष्य है उनको अध्ययन और परिश्रम करके अपने लक्ष्य को हासिल करे। लोगों से मोटिवेशन ले और अपने लक्ष्य को सही तरीके से प्राप्त करें उसके लिए शार्ट कट न अपनाये। क्योकि अपराध चाहे जैसा हो उसका हाल हमेशा बुरा ही होता है। ऐसे में मैं अपने शहर के युवाओं से कहना चाहता हू कि वो सही तरीके से अपना काम करे। नशा, अपराध जैसे गैर कानूनी चीजों से दूर रहें।

Tuesday, 19 May 2015

फीकी हो रही ज़रदोज़ी की चमक


इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। अपने हाथों के हुनर से साड़ी और सूट में खूबसूरत डिजाइन बनाकर मार्केट में अपने एक अलग पहचान बनाने वाले जरदोजी के कारीगर मौजूदा समय में गरीबी और काम की कमी से जूझ रहे है। ऐसे में इन जरदोजी कारीगरों पर महगाई के साथ काम की कमी भी  खूब भारी पड़  रही है। राजधानी में जरदोजी के काम का बोलबाला था लेकिन वर्तमान समय में कम्प्यूटराइज्ड काम ज्यादा होने की वजह से इन हाथ के कारीगरों को पेट भरने के भी  लाले पड़ गये है। काम में फायदा न होते देख कई कारीगरों ने अपना धंधा ही बदल दिया है। मौजूदा समय में वही लोग जरदोजी का काम कर रहे है जिनके यहां पुश्तैनी कार्य होता रहा है या उनके हाथ में इस हुनर के अलावा कोई और हुनर ही नहीं है। इस काम में पैसा भी  न के बराबर है। आठ घंटे के काम में मात्र 80 रुपये ही मिलते है। लगातार कई घंटो तक बैठकर काम करने के कारण बीमारियां भी  ज्यादा होती है।

जरदोजी का इतिहास
जरदोजी एक उर्दू व फारसी शब्द है  इस जरदोजी भी  एक तरह की कढ़ाई होती है भारत में प्राचीन काल से ही इस कला की एक अपनी अलग पहचान थी। मुगल शासक अकबर के समय इस कला को बहुत समृद्धि मिली लेकिन उसके बाद औद्योगिकरण के चलते इस कला का पतन शुरु हो गया लेकिन बीसवी सदी में इस कला ने फिर से जोर पकड़ना शुरु कर दिया। राजधानी में आज से बीस साल पहले जरदोजी के काम का बोलबाला था। जरदोजी का काम एक विशेष बिरादरी के द्वारा किया जाता था इस काम में फायदा और मुनाफा ज्यादा होने के कारण कई लोगो ने •ाी इस काम को करना शुरु कर दिया। जिसके चलते प्रतिस्पर्धा का दौर भी  शुरु हो गया। जहां पहले दुकानदार कारीगरों को कपड़ा और डिजाइन देकर अपना पैसा लगवाकर काम करवाते थे उनको कई समृद्धि लोगों  ने अपनी लागत में काम बनवा के देने का काम शुरु कर दिया जिससे दुकानदारों को बिना पैसे लगाये ही माल मिलने लगा और जिसको बेचकर पैसे देने होते थे जिससे दुकानदारों ने खुद काम करवाना बंद कर दिया और ठेकेदारों से काम लेने लगे। राजधानी के अलावा दिल्ली, पंजाब और हैदराबाद में भी  इस काम की मांग ज्यादा है।



जरदोजी के प्रकार

जरदोजी कला में कई तरह के काम किये जाते है जैसे रेशम में काम, करदाना मोती, कोरा नकसी सादी कसब और अन्य तरह के काम किये जाते है। सादे कपड़े पर मोती रेशम के धागे से डिजाइन बनाया जाता है। इसके अलावा वक्त के साथ चिकन पर भी  जरदोजी का काम होने लगे है। चिकन पर जरदोजी का काम तो विश्व प्रसिद्ध है। बनारसी साड़ियों पर भी  जरदोजी के काम की मांग अब ज्यादा बढ़ गई है। सन् 2000 में रेशम का काम ज्यादा होता था मगर वर्तमान समय में चॉदला का काम ज्यादा चल रहा है।
नुकसान ज्यादा फायदा कम
दिहाड़ी के काम में करने वालो जरदोजी कारीगरों को घंटो के हिसाब से काम करना पड़ता है आठ घंटे में नफरी के हिसाब से 80 रुपये मिलते है, पंद्रह घंटे काम करने पर 150 रुपये ही मिलते है। इसके अलावा साड़ी पर काम करने के दौरान यदि व गंदी या कट फट जाती है तो उसका हर्जाना भी  कारीगर से ही लिया जाता है। जरदोजी का काम एक साड़ी पर 1000 रुपये से लेकर पांच लाख रुपये तक का काम होता है। इस काम को करने में रिस्क ज्यादा होता है। यदि एक भी  साड़ी रिजेक्ट हो जाती है तो मेहनत के साथ उसकी लागत भी  कारीगरों को अपनी जेब से देनी पड़ती है। एक साड़ी को बनाने में कम से कम तीन दिन लगते है यदि एक साड़ी  की कीमत एक हजार है तो उसको बनवाने में 600 रुपये की लागत आती है। ऐसे में 400 रुपये की ही बचत हो पाती है।

मशीनीकरण से हुआ नुकसान
कम्प्यूटराइज्ड जमाने में सबसे ज्यादा नुकसान जो हुआ है वो जरदोजी के कारीगरों का हुआ है। जिस साड़ी को पांच लोग मिलकर तीन दिन में बनाते थे उसी साड़ी को मशीन के द्वारा सात से आठ  घंटे में बना दिया जाता है और इसमें लागत भी  कम आती है। जिसके कारण मार्केट में इनके हाथ से बनी साड़ियों के अपेक्षा मशीन के द्वारा बनी हुई साड़ी के कम दाम की वजह से लोग ज्यादा पंसद करते है।

कारीगरो के वर्जन
मोहम्मद आजम 25 साल से जरदोजी का काम कर रहे है इनके परिवार में आठ लोग है जिनके भरण पोषण की जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर है। इनका ये पुश्तैनी काम है इस काम में उनके बच्चे और बीबी भी  साथ देती है। आजम के मुताबिक सुबह से लेकर देर रात तक जब सब लोग काम करते है तब जाकर तीन सौ रुपये कमा पाते है। इस कारण वो अपने बच्चों को स्कूल भी  नहीं भेज पाते है। उनके अनुसार यदि बच्चों को स्कूल भेजेंगे तो यहां काम कौन करेगा क्योकि अकेले मैं इतना नहीं कमा पाता कि परिवार का पेट भी  भरे और बच्चों को पढ़ाये •ाी।

2:::::शाकिर जो बचपन से यहीं काम कर रहे है उन्होने बताया कि इस काम की वजह से वो पढ़ाई भी  नहीं कर पाये। उन्होंने बताया कि पहले के समय में काम का कंपीटिशन कम था मगर अब कंपीटिशन ज्यादा हो गया है। आज वो दिन रात मेहनत करके भी  मात्र 150 रुपये ही कमा पाते है। इसके साथ ही वो परचून के दुकान भी  रखे है। उनका कहना है कि अब वो कोई और काम कर भी  नहीं सकते है क्योकि जरदोजी के अलावा उनको कुछ आता ही नहीं है। उनके साथ के कई लोगों ने जरदोजी के काम के बुरे हाल को देख कर अपना धंधा ही बदल दिया।

3::::: मोहम्मद अंसार के मुताबिक जरदोजी कारीगरों की बदहाल स्थिति का मुख्य कारण बड़े बड़े कारीगरों का दुकानदार को उधार माल देना है जिससे दुकानदार अब अपना पैसा लगाकर काम करवाना ही बंद कर दिया। जिससे सबसे ज्यादा नुकसान कारीगरों का हुआ है ऐसे में ठेकेदार उनसे अपने मन मुताबिक काम करवा रहे है और मेहनत के हिसाब से पैसा भी  नहीं देते। उनके बनाये सूट और साड़ी तो मार्केट में चालीस हजार रुपये तक बिकती है मगर कारीगरों को बस चार हजार रुपये ही मिलते है। दिन रात जीतोड़ मेहनत करने के बाद भी  उनको परिवार को पालना मुश्किल हो रहा है ऐसे में वो इन काम को छोड़कर दूसरे कामों की तरफ भाग  रहे है।

अमर की वापसी से लग सकता है आजम को झटका

इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। वर्तमान समय में अमर सिंह की घर वापसी को लेकर समाजवादी पार्टी के अंदर ही किसी के चेहरे खिले हुए है तो किसी के मुरझाए हुए है। पार्टी अमर सिंह की वापसी को लेकर दो खेमो में बंटती नजर आ रही है। अमर सिंह के विरोधी के रुप में सपा के फायर ब्रांड नेता आजम खां का नाम सबसे ऊपर आता है। जनेश्वर पार्क के उदघाटन समारोह में खास मेहमान में शामिल अमर सिंह को बुलावा देने से नाराज आजम खां ने शिरकत तक नहीं की थी जिसके बाद से अमर सिंह की पार्टी में वापसी की अटकले तेज हो गई है। कभी  सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह के खास रहे अमर सिंह मनमुटाव के चलते पार्टी से अलग हो गये थे उसके बाद पाटीे में आजम खां की हैसियत बढ़ गई और वो पार्टी के स्टार प्रचारकों में शामिल हो गये। मगर आजम का बढ़ता कद पार्टी के कुछ नेताओं के साथ समाजवादी परिवार के लोगों को भी काफी नगवार गुजरने लगा। जिसके चलते पार्टी का एक खेमा अमर सिंह की पार्टी में वापसी करवाने के लिए जोर लगवाये हुए है।
पुराना है सपा का अमर प्रेम
कभी  पार्टी में सपा सुप्रीमों मुलायम के बाद दूसरा नंबर रखने वाले अमर सिंह का समाजवादी परिवार से काफी पुराना रिश्ता है। सपा परिवार में उनके चाहने वालों के साथ उनके विरोधी भी  है मगर इसके बाद भी  उनकी वापसी की अटकले राजनीतिक गलियारे में तेज होती जा रही है। सपा पार्टी के द्वारा बनाये गये जनता परिवार के गठन के समय अमर सिंह की कमी काफी खली। इस समय पार्टी में मुलायम परिवार के कददावार नेता और मंत्री शिवपाल सिंह की गतिविधियां अमर सिंह को लाने में लगी हुई है। जिसके पीछे का कारण आजम का पार्टी में बढ़ता कद है। आजम खां का पार्टी में विरोधी खेमा अमर की वापसी के लिए प्रयासरत है क्योकि उनको लगता है कि आजम की काट के लिए अमर सिंह ही उपयुक्त है।

जया बनी दीवार
आजम खां और अमर सिंह के बीच पनपे विवाद के बीच फिल्म अभिनेत्री  और अमर सिंह की खास जया प्रदा है। राम पुर से जब जया प्रदा को सांसद प्रत्याशी बनाया गया तो आजम ने उसका खुलकर विरोध किया जिसके बचाव में अमर सिंह ने आजम के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। तभी  से दोनों के बीच मनमुटाव शुरु हो गया जो आज तक बरकरार है। इस आग में घी डालने का काम एमएलसी के चुनाव ने किया जिसमें एक बार भी  आजम और अमर के बीच चिंगारिया भड़का दी है। विधान परिषद में सपा की तरफ से जया प्रदा का नाम आने पर आजम की मुश्किले बढ़ा दी है तो वहीं दूसरी तरफ अमर सिंह की वापसी का भी  संकेत दे दिया है।

छवि तोड़ने में आजम बाधक 
सपा अपनी एक विशेष समुदाय की पार्टी होने की छवि से बाहर निकलने की हर सं•ाव कोशिश कर रही है मगर लगातार आजम के बयानों से पार्टी अपनी छवि से बाहर नहीं निकल पा रही है। पार्टी के कई वरिष्ट नेता आजम के बयानों से पार्टी को नुकसान होने का दावा भी  कर रहे है। विरोधी पार्टियों के द्वारा आजम के बयानों के विरोध में पूरी पार्टी घिरती नजर आई है। जिसकारण पार्टी के 2017 मिशन को भी  झटका लगा है। अरविंद सिंह गोप का कद बढ़ना और अमर से नजदीकियां इस बात की ओर इशारा कर रही है कि पार्टी आजम के बगैर अपने को आगे बढ़ने की कोशिश में लगी हुई है। शिवपाल सिंह की खास पैरवी से ऐसा प्रतीत होता हैकि वो दिन दूर नहीं जब अमर सिंह पार्टी के महत्वपूर्ण फैसले में मुख्य भूमिका निभयेगे।

मुख्यमंत्री की टीम में भी  आजम नहीं
पार्टी के सूत्रों के अनुसार प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अपनी टीम में ऐसे लोगों को कताई नहीं रखना  चाहते है जिनसे उनकी छवि खराब हो। मुख्यमंत्री की युवा टीम में अरविंद सिंह गोप की कद में बढ़ोत्तरी भी  इसी सन्दर्भ  में की गई है। आजम को किनारे करने के लिए अमर सिंह की वापसी को मुख्यमंत्री का भी  अंदरुनी समर्थन प्राप्त है। कई बार मुख्यमंत्री अखिलेश और आजम के बीच भी  तल्खी देखने को मिली है। पार्टी के कई नेताओं का मनना है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह से अच्छे संबंध होने का आजम खां नाजायाज फायदा उठा रहे है।।

#आज़म खान #सपा #मुलायम #अमर-वापसी

Thursday, 7 May 2015

कुदरती कहर से बचने के लिए आपदा प्रबंधन असहाय


इन्टरवल एक्सप्रेस
 लखनऊ। प्राकृतिक आपदा या दैवीय आपदा एक ऐसा कुदरती कहर है, जिसका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन उसके लिए पहले से तैयार रहने से कुछ हद तक लोगों की जान बचाई जा सकती है। सूखा, बाढ़, चक्रवाती तूफानों,भूकम्प, भूस्खलन, ओलावृष्टि, और ज्वालामुखी फटने जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, न ही इन्हें रोका जा सकता है, लेकिन इनके प्रभाव को एक सीमा तक कम जरुर किया जा सकता है, जिससे जान-माल का कम से कम नुकसान हो। यह कार्य तभी  किया जा सकता है, जब सक्षम रूप से आपदा प्रबंधन का सहयोग मिले।
अभी  हाल में ही आये नेपाल और उत्तर भारत में भूकंप के झटकों ने यह सवाल फिर खड़ा कर दिया है कि क्या प्रदेश का आपदा प्रबंधन प्राधिकरण किसी ऐसी कुदरती आपदा से निपटने के लिए तैयार है ? अगर आपदा प्रबंधन तंत्र मुस्तैद हो, गतिशील हो और भावन निर्माण पद्धतियां वैज्ञानिक और विवेकपूर्ण हों तो जान माल का नुकसान काफी हद तक कम किया जा सकता है।

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
बचाव और राहत के लिए भारत में 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का गठन किया गया था। इसे राज्यों और जिला स्तरों पर भी  बनाया गया। आपदा प्रबंधन का पहला चरण है खतरों की पहचान। इस अवस्था पर प्रकृति की जानकारी तथा खतरे की सीमा को जानना शामिल है। इसके अतिरिक्त बढ़ती आबादी के प्रभाव  क्षेत्र एवं ऐसे खतरों से जुड़े माहौल से संबंधित सूचना और डाटा भी  आपदा प्रबंधन का अंग है। इसमें ऐसे निर्णय लिए जा सकते हैं कि निरंतर चलने वाली परियोजनाएं कैसे तैयार की जानी हैं और कहां पर धन का निवेश किया जाना है जिससे दैवीय आपदाओं का सामना किया जा सके। ये आपदा के पूवार्नुमान के आंकलन का प्रयास करते हैं और आवश्यक सावधानी बरतते हैं। जनशक्ति, वित्त और अन्य आधारभूत समर्थन आपदा प्रबंधन की उप-शाखा का ही हिस्सा हैं। आपदा के बाद की स्थिति आपदा प्रबंधन का महत्वपूर्ण आधार है। जब आपदा के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है तब लोगों को पुन: बसाने का कार्य आपदा प्रबंधन द्वारा किया जाता है। लेकिन कुछ राज्यों में इन प्राधिकरणों की हालत देखिए, वे बेहद निष्क्रिय जान पड़ते हैं। दो साल पहले उत्तराखंड के केदारनाथ में आई भीषण प्राकृतिक विपदा को भूले  नहीं हैं और लोग उस दौरान आपदा प्रबंधन की दयनीय हालत को भी भूलाया नहीं गया है। ऐसे में इस आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन मात्र खानापूर्ति जान पड़ता है।
आपदा प्रबंधन में नहीं है कर्मचारी
आपदा प्रबंधन का कार्य क्षेत्र बहुत बड़ा है, लेकिन उसके हिसाब से कर्मचारियों की भारी कमी है। जानकारी के मुताबिक कई सालों से आपदा प्रबंधन में भारती तक नहीं हुई है।



राजधानी में आपदा प्रबंधक निष्क्रिय

प्रदेश की राजधानी में पिछले दिनों आये भूकंप के झटकों ने सबको हिला के रख दिया। यदि यहां पर भूकंप आया तो सबसे ज्यादा नुकसान राजधानी में होगा, क्योकि यहां पर मॉर्डन कल्चर के तर्ज पर बन रहे बड़े-बड़े अपार्टमेंट बिना मानकों को पूरा किए ही आसमानों को छू रहे हंै। इनमें भूकंप विरोधी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके अलावा शहर में कई इमारतें और भवन जर्जर हालत में हैं, और हजारों लोग उनमें रहते हैं। आपदा प्रबंधन ने इनके बचाव के लिए अ•ाी तक कोई योजना नहीं बनाई है।

अनुमान लगाने के बाद भी  सुस्त आपदा प्रबंधन
इन दैवीय आपादाओं में भूकंप को छोड़कर बाकी आपदा जैसे सूखा, बाढ़ का कुछ हद तक अनुमान लगाया जा सकता है ऐसी आपदा से लोगों को बचाने का कार्य सरकार का और उसके जिम्मेदार विभाग  का होता है। सूखा और बाढ़ से बेघर और पीड़ित लोगों के पुनर्वास का काम आपदा प्रबंधन करता है जिससे लोगों को दोबारा स्थापित किया जा सके। आपदा प्रबंधकों को ऐसे प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य जीवन शुरू करने का कार्य करना पड़ता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि आपदा प्रबंधन विभाग को जब इस बात का अंदाजा हो जाता है कि इस बार सूखा और अधिक बारिश होगी तो वो ऐसे स्थानों को चिह्नित कर लोगों को पहले से ही सुरक्षित स्थानों पर क्यों नहीं पहुंचाता है? विभाग हमेशा आपदा होने के बाद ही क्यों सक्रिय होते है? इसके पीछे का कारण आपदा प्रबंधन का सुस्त रवैया और आपदा से निपटने के लिए पहले से कोई तैयारी न करना है।

आपदा प्रबंधन नहीं कर रहा लोगों को जागरुक
आपदा प्रबंधन विभाग उन क्षेत्रों को चिह्नित करता है जहां पर दैवीय आपदा के आसार सबसे ज्यादा होते हैं वहां पर विभाग लोगों को इन आपदाओं से बचने के उपाय बताता है और वहां के निवासियों को सूखा,बाढ़, •ाूकंप आने की स्थिति में क्या करना चाहिए इसकी जानकारी करवाता है। जिससे कम से कम लोगों को जान माल का नुकसान हो। लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग लोगों को जागरुक करने के बजाय आराम से आपदा के आने का इंतजार करने में व्यस्त रहता है। इसके अलावा वि•ााग के पास आपदा से निपटने के लिए डॉक्टरों और इंजीनियरों समेत दूर संचार विशेषज्ञों की पूरी एक टीम होती है जो ये काम करती है।

वर्जन
पिछले कुछ दिनों से राजधानीवासी दहशत की जिंदगी जी रहे है। आपदा प्रबंधन वि•ााग इन प्राकृतिक आपदओं के आगे बौना है। प्राकृतिक आपदाओं के लिए आपदा प्रबंधन को जागरुकता का काम करना चाहिए। जागरुक कोर कमेटी बनाकर स्कूलों में जा कर बच्चों को आपदा से बचाने के उपाय बताने चाहिए। इसके अलावा राजधानी में कई अपार्टमेंट भूकप विरोधी मानकों के अनुरुप नही बन रहे है जिसमें आपदा प्रबंधन कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। इसके अलावा राजधानी में आपदा प्रबंधन का दफ्तर कहां है इसका काम क्या है लोगों को इस विभाग के बारे में ही जानकारी नहीं है तो हम इस विभाग से क्या उम्मीद कर सकते है। ::::महेश चंद्र देवा, आर्टिस्ट और समाजसेवी

भूकंप और दैवीय आपदा के आगे तो सरकार इंसान सभी  बेबस है लेकिन हमारी जागरुकता से इन आपदओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। जैसे बिल्ड़िग का डिजाइन और उसका नक्शा इस हिसाब से बनना चाहिए कि वो भूकंप जैसी आपदा को रोक सकेगे। इसके लिए जिम्मेदार विभाग को इसका पालन सख्ती से करवाना चाहिए और बिल्डिग या अपार्टमेंट बनने के मानकों का पूरी कड़ाई से पालन होना चाहिए जैसा कि अभी  नहीं हो रहा है।::::::::::फैसल इंजीनियर

आपदा प्रबंधन की डिजास्टर मैनेंजमेंट मीटिंग डीएम की अध्यक्षता में 11 तारीख को होगी। जिसमें सभी  जिलों से पूरा ब्यौरा मांगा जायेगा। इसके अलावा एनजीओ और सरकारी संस्था की मदद भी  ली जायेगी। :::::धनंजय शुक्ला एसडीएम

#आपदा #भूकप #नेपाल #भारतभूकम

Monday, 4 May 2015

दोहरी मार झेल रहे है बटाई किसान

इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से किसानों का जो नुकसान हुआ है उसके लिए तो प्रदेश सरकार ने मुआवजे का ऐलान कर दिया है मगर उन किसानों का क्या होगा जो दूसरे किसानों की खेती की जमीन को बटाई पर लेकर खेती करते है। ऐसे किसानो के लिए सरकार ने अभी  तक कोई स्कीम या राहत कार्य का ऐलान तक नहीं किया है। ऐसे में आत्महत्या करने वाले किसानों  में दोहरी मार झेलने वाले बटाई किसान ज्यादा है। बटाई पर खेती करने वालों के आगे दैवीय आपदा से हुए नुकसान के कारण आत्महत्या करने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है।
सरकार अब तक आठ सौ करोड़ से ज्यादा मुआवजा देने की बात कर रही है। सरकार की गलत नीतियों और सर्वे में अ•ााव के कारण मुआवजे से उन लोगों को फायदा हो रहा है जिनको कम नुकसान हुआ है उन लोगों के प्रति सरकार का कोई ध्यान नहीं है जो बेचारे बटाई पर किसानी करते है। इस बार हुई आकस्मिक बारिश और ओलावृष्टि से सबसे ज्यादा नुकसान ऐसे बटाई पर खेती करने वाले किसानों का ही हुआ और मुआवजा जमीन मलिक को मिल रहा है।
क्या है बटाई
बटाई वो है जिसमें जमीदारों और सक्षम किसानों की जमीन को गरीब किसान एक साल के लिए किराये पर लेता है और उसके बदले वो जमीन मलिक को तय रकम या अनाज देता है। उसी की जमीन पर अपने पैसे और मेहनत करके वो अनाज उगाता है उसी अनाज को बेंच कर अपना •ारण पोषण करता है और मलिक को पैसा या उसके बदले अनाज देता है। इस तरह की खेती में जमीन मलिक को बिना मेहनत और पैसे लगाये बिना पूरा फायदा मिलता है।
सर्वे मात्र खानापूर्ति
 सरकार द्वारा जो सर्वे करवाये जा रहे है वो मात्र खानापूर्ति साबित हो रहे है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी  तक पूरी तरह से सर्वे भी  नहीं हो पाये है जो सर्वे लेखपालों के  द्वारा किये जा रहे है वो भी  प्रधान या क्षेत्रीय नेता के दरवाजे बैठ कर हो रहे है ऐसे में प्रधान या नेता अपने परिचितों और लग्गू लोगों का ही नाम लिखवा देते है। मुख्य रुप से पीड़ित किसानों को तो ये भी  नहीं पता चल पाता कि सर्वे हुआ भी  है कि नहीं। लेखपाल और जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे है गांवों में घूमकर बर्बाद फसल का अंदाजा लगाने के बजाय प्र•ाावी लोगों के घरों में बैठकर फसल की बर्बादी का अंदाजा लगा रहे है।


70 प्रतिशत फसल हुई बर्बाद
दैवीय आपदा से गेंहू की फसल कम से कम सत्तर प्रतिशत बर्बाद हो गई। ऐसे में मुनाफा तो दूर की बात है बटाई किसानों की लागत तक नहीं निकल पाई। खेतों में फसल की अच्छी पैदावार के लिए डाया, यूरिया और नियमित अंतराल पर पानी लगवाते रहे। जिसका नतीजा ये हुआ कि गेंहू की पैदावार बहुत अच्छी हुई मगर जनवरी माह से रुक रुक कर होने वाली बारिश से सब बर्बाद हो गया है। जिस एक बीघा खेत में कम से कम चार कुंटल गेंहू निकलना चाहिए था उसमें मात्र एक ही कुंटल गेंहू निकला है। ऐसे में बटाई किसानों पर दोहारी मार पड़ रही है एक तरफ जहां उनको खेत मलिक को पैसा या अनाज देना है वही दूसरी तरफ खुद की भूख मिटाने के लाले पड़ गये है।

बटाई किसानों के वर्जन
बाराबंकी जिले के मदारपुर गांव के निवासी रंजीत के परिवार में दस लोग है इनकी रोजी रोटी बटाई पर किसानी कर के ही चलती है। इस बार हुई फसल बर्बादी के कारण इतने बड़े परिवार को पालने की जिम्मेदारी इन पर भरी पड़ रही है। रंजीत ने बताया कि इस बार छ: बीघा बटाई पर लेकर खेती की थी। हर बार की तरह इस बार भी  फसल बहुत अच्छी हुई थी मगर बारिश के कारण सारी फसल बर्बाद हो गई। खेत मलिक को पंद्रह कुंटल अनाज देना है मगर हुआ दो कुंटल भी  नहीं है। फसल कटी हुई खेत में बड़ी है मगर उसको थ्रेशर से कटवाने के हिम्मत नहीं हो पा रही है क्योकि जितना गेंहू निकलेगा नही उससे ज्यादा कटाई लग जायेगी। इस बार तो खाने को •ाी लाले पड़ जायेगे।

2:::::बाराबंकी जिले के पुरवा निवासी राम प्रताप के परिवार में नौ लोग है जिसमें से उनकी चार बेटियां है जिनमें से दो शादी के लायक है। इस बार उन्होंने पंद्रह बीघा जमीन ली थी बटाई पर इस उम्मीद से कि फसल अच्छी होगी कुछ पैसे बच जायेगे जिससे वो अपनी लड़की की शादी कर पायेगे। कुदरती कहर के आगे उनका ये सपना भी  टूट गया। इसके अलावा जो नुकसान हुआ सो अलग। राम प्रताप ने बताया कि पंद्रह बीघा में जिस तरह की फसल थी उससे कम से कम 50 कुंटल गेहू होता मगर बर्बादी के कारण दस कुंटल •ाी निकलना मुश्किल है। ऐसे में हमारी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है खेत मलिक गेहू लेने और पैसा का तकादा करते रहते है। मलिक को तो पैसा चाहिए उसको इससे मतलब नहीं कि हमारा कितना नुकसान हुआ। अब जो तय हुआ था उसको तो देना ही पड़ेगा।

3::::::::: लखनऊ जिले के बसहा गांव के निवासी राम चंदर ने नौ बीघा जमीन बटाई पर ली थी और लग•ाग तीस हजार रुपये लगा दिये है मगर बर्बादी के कारण उनको जहां पंद्रह कुंटल अनाज मिलना था वही इस बार सिर्फ सात कुंटल ही नसीब हो पाया है ऐसे में नौ लोगों के बड़े परिवार के •ाारण पोषण की दिक्कत •ाी उनके सामने खड़ी है उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जो पैसा मिल रहा है वो •ाी सीधे खेत मलिक को ही दिया जा रहा है ऐसे में हम लोगों का पुरसा हाल कोई नहीं है। खेती के सिवा हम लोगों को कुछ आता •ाी नहीं है ऐसे में हुए नुकसान के कारण अब हम लोगों के जीने के लाले पड़ गये है।

4::::::: पैगरामऊ निवासी किसान प्यारे लाल को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है उन्होंने आठ बीघा खेती बटाई पर लेकर की थी जिसमें से ओलावृष्टि और बारिश के कारण चार बीघा तो फसल खेत में लगे लगे ही बर्बाद हो गई। बाकी बचे चार बीघा में मात्र दोकुंटल ही अनाज हुआ जबकि लागत में उन्होंने कम से कम तीस हजार रुपये लगा दिये। उनके परिवार में नौ लोग है खेती पर ही निर्•ार रहने वाले प्यारे लाल इस बात से  काफी परेशान लग रहे थे कि परिवार का पेट कैसे पालेगे क्योकि उम्र होने के कारण उनसे अब मजदूरी •ाी नहीें हो पायेगी।

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आखिर कब तक मजबूर कहलाएगा मजदूर


देश को आजाद हुए 67 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज इतने वर्षो के बाद भी  एक ऐसा वर्ग है जो दासतान भरी जिन्दगी जीने को मजबूर है या ये कहें कि वह ह्यआज भी  मजबूर  है।  चाहे हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड हो या शरीर को झुलसा देने वाली भीषण गर्मी, मजदूर के लिए सारे मौसम एक जैसे ही हैं। इस मजदूर वर्ग की विडम्बना आज तक कोई समझ नही पाया।  वो बेबस है,बेहाल है, तकलीफों से जूझ रहा है पर उसकी दर्दनाक आवाज सुनने वाला कोई नही है। अफसोस इस बात का है कि इनकी बेबसी और शोषण को रोकने के नाम पर खानापूर्ति करते हुए एक दिन निर्धारित कर दिया गया जिसे मजदूर दिवस कहा जाता है। अब लाख  टके का सवाल ये है कि आखिर मजदूर दिवस पर ही इन असहाय मजदूरों की याद क्यों आती है। मोहम्मद फाजिल की एक रिपोर्ट।


इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। कड़ी धूप में झुलसता शरीर, बदन से टपकता पसीना या कड़ाके की ठंड में बदन पर एक कपड़े के सहारे पूरे दिन काम करके दो वक्त की रोटी के लिए जी-तोड़ मेहनत करने वाले मजदूरों की याद बस मजदूर दिवस पर ही आती है। मजदूरों की असली हालत का अंदाजा लगाना हो तो दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। मजदूर दिवस केवल भरत ही नहीं बल्कि अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। •ाारत में मालिक व पूंजीपति श्रम कानूनों के लचीलेपन के कारण भी मजदूरों का शोषण करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बटोरना चाहते हैं। जानकारों के  मुताबिक, यदि मजदूरी और उनको दी जाने वाली सुविधाएं बढ़ती हैं तो उद्योगपतियों को मिलने वाले फायदे का हिस्सा कम होगा। हमारे देश के उद्योगपति और ठेकेदार ठीक इसी नीति पर चल रहे हैं। जिसमें वो कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर गरीब मजदूरों और दिहाड़ी मजदूरों का शोषण करने में लगा है।
कब आरंंभ  हुआ मजदूर दिवस
आजादी से पहले और उसके बाद भी  देश में मजदूरों की स्थिति बहुत खराब रही। उनसे फैक्ट्ररी मालिक चौबीस घंटे में 18 से 20 घंटे तक काम करवाते थे और मेहनताने के नाम पर उनकी मेहनत का एक चौथाई पैसा भी  नहीं दिया जाता था। अपने हक और अधिकारों के लिए मजदूरों ने आवाज उठाई । सबसे पहले 1877 में नागपुर में मजदूरों ने कम मजदूरी दरों को लेकर हड़ताल की थी। इसके बाद 1882 से 1890 तक 25 बार हड़ताल हुई। 1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस संगठन की स्थापना हुई। •ाारत में पहली बार 1923 में मई दिवस मनाया गया। मद्रास के समुद्र तटों पर मजदूरों की आम स•ाा हुई जिसमें 1 मई को सार्वजनिक छुट्टी की मांग की गई। काम में 8 घंटे तय करने के लिए सबसे पहले रेलवे मजदूरों ने आवाज उठायी। •ाारत में पहला आधुनिक श्रमसंघ 1971 में लेबर यूनियन के नाम से मद्रास में बना।

सरकार की योजनाओं का नही मिल रहा लाभ 
सरकार द्वारा मजदूरों के हित के लिए और उनको रोजगार देने के लिए कई योजना भी  चलाई जा रही है मगर उन योजनाओ के प्रचार प्रसार में कमी व जागरुकता न होने के कारण मजदूरों को उनका हक नहीं मिल रहा है। अगस्त 2005 में •ाारत सरकार ने देश के 94 फीसदी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को रोजगार के शोषण मुक्त अवसर उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून बनाया और 2 फरवरी 2006 से देश के सबसे जरूरतमंद और मानव विकास के नजरिये से पिछड़े हुए 200 जिलों में लागू किया। इस कानून के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले हर परिवार को वर्ष में सौ दिन शारीरिक श्रम आधारित रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। यह एक मांग आधारित योजना है, जिसमें न्यूनतम मजदूरी पर श्रम करने वाले हर व्यक्ति को उसके द्वारा मांग किये जाने पर रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा। यदि रोजगार मांगने के 15 दिन के •ाीतर रोजगार नहीं दिया जाता है तो उसके एवज में बेरोजगारी •ात्ता दिया जायेगा। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय पेंशन स्कीम, जननी पेंशन योजना, आरएसबीवाई, आम आदमी बीमा योजना, हतकरघा बुनकर कल्याण समिति स्कीम इसी का एक हिस्सा है।

औद्योगिक क्रातिं से पहुंचा नुकसान
भारत में जब औद्योगिक क्रांति का जन्म हुआ तो किसी को नहीं पता था कि आने वाले समय में इसका परिणाम ऐसा होगा कि मजदूरों को सबसे ज्यादा कीमत उठानी पड़ेगी। औद्योगिक क्रांति में मजदूरों के अधिकारों का हनन होने लगा। इस क्रांति में मजदूरों से 18 से 20 घंटे तक काम लिया जाता था जिसमे उनके अवकाश और दुर्घटना में घायल होने पर मुआवजे तक की व्यवस्था नहीं थी। उनके सामने अपने •ारण-पोषण की •ाी जिम्मेदारी बढ़ने लगी। ऐसे में उनके आगे आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था तब जाकर उनके अधिकारों के लिए हजारों मजदूरों ने एक होकर अपने हक के लिए आवाज उठाई।

जागरुकता के अभव में फेल हो रही योजनाएं
मजदूरों के हित में वर्ष 2006 में केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना,नरेगा को चालू किया जिसका नाम बदलकर महात्मा गांधी से जोड़ा गया। यह अब मनरेगा कहलाती है। इस योजना के तहत मजदूर को लग•ाग दो सौ रुपये प्रतिदिन मजदूरी देने का प्रावधान है लेकिन जागरूकता के अ•ााव में मजदूरों को इस योजना का ला•ा नही मिल रहा है। श्रमिकों के लिए मजदूर दिवस की कोई अहमियत नही रह गई है। इसका मूल कारण जागरूकता का अ•ााव है। श्रमिक संगठन के अ•ााव में ऐसी स्थिति बनी हुई है।
मालिकों के आगे बेबस हो रहे मजदूर
मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए कई संगठनो ने एक होकर इसकी शुरुआत की थी मगर वर्तमान समय में ये संगठन अपने मूल मकसद से •ाटक गये हैं। आपसी द्वेष और वर्चस्व को लेकर संगठन एक दूसरे से अलग होते चले गये। इसके अलावा कई क्षेत्रों में तो मजदूरों की यूनियन ही नहीं बनी है, जिस कारण उनकी आवाज उठाने के लिए कोई नेता ही नहीं है और उनको अपने अधिकारों की जानकारी तक नही हैं। ऐसे में मजदूर मालिकों के आगे बेबस हैं और कम वेतन में •ाी काम करने को मजबूर हैं। कई मजदूर संघ अपनी दुकान चलाने के लिए मजदूरों की एकता का फायदा उठा रहे हैं। ऐसे में इन सबके बीच गरीब और बेबस मजदूर पिस रहा है।

दिहाड़ी मजदूरों की हालत दयनीय
 हर साल काम के दौरान हजारों मजदूरों की मौत हो जाती है। सरकारी, गैर सरकारी या इसी तरह के अन्य संस्थानों में काम करते समय दुर्घटनाग्रस्त हुए लोगों या उनके आश्रितों को देर सवेर मुआवजे के नाम पर कुछ न कुछ तो मिल ही जाता है। इसमें सबसे दयनीय हालत दिहाड़ी मजदूरों की है। पहले तो इन्हें काम ही मुश्किल से मिलता है और अगर मिलता •ाी है तो वो स्थाई रुप से नहीं होता है इसके अलावा उनका मेहनतना •ाी बहुत कम होता है। यदि काम के दौरान दिहाड़ी मजदूर की मौत हो जाये तो इन्हें मुआवजा •ाी नहीं मिल पाता है। देश में कितने ही ऐसे परिवार हैं, जिनके कमाऊ सदस्य दुर्घटनाग्रस्त होकर विकलांग हो गए या फिर मौत का शिकार हो चुके हैं, लेकिन उनके आश्रितों को मुआवजे के रूप में एक नया पैसा तक नसीब नहीं हो पाता। ऊंची इमारतों पर चढ़कर काम कर रहे मजदूरों को सुरक्षा बैल्ट तक मुहैया नहीं कराई जाती। पटाखा फैक्ट्रियों, रसायन कारखानों  जैसे कामों में लगे मजदूर सुरक्षा साधनों की कमी के कारण होने वाले हादसों में अपनी जान गंवा बैठते हैं। •ावन निर्माण के दौरान मजदूरों के मरने की खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं। इस सबके बावजूद मजदूरों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। अगर मामला मीडिया ने उछाल दिया तो प्रशासन और राजनेताओं की नींद टूट जरूर जाती है, लेकिन कुछ वक़्त बाद वो फिर चैन की नींद सो जाते हैं।
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