Saturday, 30 November 2019

हिंदू सच बोले तो देशद्रोही अगर मुस्लिम बोले तो आतंकवादी



 उर्दू साहित्य में मुनव्वर राना एक ऐसा नाम हैं, जो न सिर्फ सच लिखते है बल्कि बेबाकी से उसको बोलते भी है। उनकी अंदाज ए बयां से लेकर लिखने तक की कला के लोग दिवाने है यहीं वजह है कि उनका साहित्य सिर्फ उर्दू तक ही सीमित न रहकर कई भाषाओं में लिखा गया है। मौजूदा समय में वो अपनी आटोबायोग्राफी मीर आके लौट गया पार्ट टू लिख रहे है। उनके जन्मदिन पर उनसे खास बातचीत में उन्होंने उर्दू साहित्य से लेकर पाकिस्तान और देश के मौजूदा हालात पर खुलकर अपने विचार रखें।


हिंदू सच बोले तो देशद्रोही मुस्लिम बोले तो आतंकवादी

हमने जब अवार्ड वापस किया था उस वक्त अवार्ड वापसी गैंग नाम दे दिया गया। तब भी मैंने कहा था आज भी कह रहा हूं कि अकबर जाहिल था लेकिन उसके पास नव रत्न थे मोदी जी पढ़े लिखे है लेकिन उनके पास नवरत्न नहीं है। मुल्क को मुल्क बना ले या मुल्क को तमाशा बना ले यह आप पर निर्भर करता है। यहां हमेशा कोई जीत पर नहीं रहता है। आवाज में सच होना जरूरी है। सत्तर सालों में देश को क्या से क्या बना दिया। बदले की राजनीति से हमेशा देश का नुकसान होता है। पूरा मुल्क में ऐसे लोग हो गए है जो पल भर में आपको पाकिस्तानी बना देगे। सच बोलने वाला अगर हिंदू है तो देशद्रोही और मुसलमान है तो आतंकवादी कह दिया जाता है। आज हमारे देश के संस्कार की वैल्यू गिर गई।


सोशल मीडिया से उस्तादी का दौर खत्म
सोशल मीडिया से पैदा हुआ शायर परंपराओं से वाकिफ नहीं होता है। गुरू सिर्फ शेर कहना नहीं सिखाता है, जो चीजें मां, बुजुर्गों, धर्म गुरूओं से छूट जाती है, उसको साहित्य का गुरू सिखाता है। सोशल मीडिया पर तुकबंदी वाले शेर होते है, जिसको समझे बगैर लोग लाइक कर वाह वाह करने लगते है। अब लाइक से शेर की अहमियत को आंकते है। जो गलत परंपरा है। उस्तादी शायरी का दौर अब खत्म हो चला है। सोशल मीडिया की वजह से हमारा नुकसान यह हुआ कि परफेक्ट शायरों की कमी हो गई है। आज जल्दबाज बच्चे है। मैच्योर नहीं है जबकि शायरी के लिए मैच्योर होना जरूरी है। वहीं सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी रूमानी शायरी का दौर चल रहा है, यह शायरी हमारे यहां 40 साल पहले ही कही जा चुकी है। पाकिस्तान के शायरों की शायरी में इश्क की तड़प, एहसास ही नजर आता है। उससे अच्छी शायरी हमारे यहां साहिर कहते थे। लेकिन, साहिर को पढ़ा नहीं गया, क्योकि उनमें प्रोग्रेसिव राइटर भी था। युवा साहिर की रूमानी शायरी के आगे गालिब, मीर भी नहीं है। युवा अवस्था में साहिर ने लिखा ' जब तुम्हें मुझसे ज्यादा है जमाने का ख्याल, फिर मेरी याद में यूं अक्श बहाती क्यों हो, तुम में हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर दो वरना मां बाप जहां कहते है शादी कर लो' इस तरह की शायरी का दौर बहुत पुराना रहा है।

शायरी के लिए संतो और फकीरों की संगत जरूरी
मुझे याद है करीब पांच साल पहले मैं एक प्रसार भारती के प्रोग्राम में गया था उस वक्त 22 जुबान रजिस्टर्ड थी जो पूरे भारत में बोली जाती थी। हमारे यहां के कवि व शायरों के मुकाबले बाहर के कवि शायरों की सोच काफी अलग है। यहां का कवि व शायर राम जन्मभूमि, बाबरी मस्जिद के आगे सोच ही नहीं रहा है। वैसे ही आज के मुशायरे और कवि सम्मेलन मदरसिया हो गए है। हमारे समय में मुशायरा सुनने आने वाले लोगों में 30 परसेंट गैर मुस्लिम आते थे। इसलिए हम मान के चलते थे कि अच्छा सुनाना है। शायरी एक अलग चीज है उसको जानने समझने के लिए संतो,फकीरों, दरवेशों में नहीं बैठेंगे तब तक शायरी नहीं आएगी। अब लोग इन सब से दूर हो गए है इसलिए हमारे यहां की शायरी में खराबी आई है।

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