Saturday, 30 November 2019

मुझे ऐक्टिंग पसंद है इसलिए पूरी तैयारी के साथ इंडस्ट्री में आया हूं


एक मंजिल, एक रास्ता और एक ही लक्ष्य। फिल्म इंडस्ट्री में अपने काम के दम पर पहचान बनाना। अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए अक्षय ओबेरॉय ने खुद को थिएटर में मांझा और फिर अपनी मंजिल के सफर पर निकल पड़े। पोर्टफोलियो लेकर कास्टिंग डायरेक्टर से लेकर फिल्म डायरेक्टर तक के यहां चक्कर लगाए। लाइनों में लगकर ऑडिशन दिए। खुद को एक अच्छा अभिनेता बनाने के लिए अंग्रेजी से तौबा की और घर पर उसे बोलने पर डांट भी खाई। बॉडी लैंग्वेज पर महीनों काम किया। उन्होंने बार कोड, द टेस्ट डे, सिलेक्शन डे समेत कई वेब सीरीज में काम किया लेकिन असली पहचान उन्हें 'गुड़गांव' ने दी। 14 साल की उम्र में‘अमेरिकन चाय’ में परेश रावल के साथ काम करने और 2010 में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाले अक्षय ओबरॉय का नाम बॉलिवुड के बेहतरीन ऐक्टरों में शुमार है। करीब एक महीने से शहर में वह दो फिल्में तमिल रीमेक थिरुत्तु पायले-2 और रिचा चड्ढा के साथ शूटिंग कर रहे हैं। उनसे हुई खास बातचीत में उन्होंने अपने फिल्मी करियर को लेकर हमसे की खास बातचीत।


पूरी तैयारी के साथ इंडस्ट्री में आया हूं
मैं अमेरिका में पैदा हुआ और वहीं पला बढ़ा। चौदह साल की उम्र में 2002 में फिल्म अमेरिकन चाय से मैंने ऐक्टिंग की शुरूआत की थी। फिल्म में परेश रावल ने मेरे फॉदर का रोल किया था। वो सेट पर अखबार पढ़ते थे एक दिन उन्होंने कहा कि कुछ पढ़ते नहीं हो मैंने कहा नहीं तो उन्होंने कहा कि एक ऐक्टर को पढ़ना चाहिए। उसके बाद उन्होंने मुझे पास बुलाया और पूछा कि ऐक्टिंग में इंट्रेस्टेट हो तो तुम्हे इस चीज की पढ़ाई करो ऐक्टिंग एक क्राफ्ट है इसको समझे बगैर ऐक्टिंग नहीं होगी। फिर मैंने उसके बाद थियेटर में बीए इन इकनॉमिक्स किया। मेरे पिता कहते थे कि अगर तुम भाषा नहीं बोल पाओगे तो ऐक्टर कैसे बनोगे। तो मेरे घर पर इंग्लिश नहीं बोली जाती थी अगर गलती से बोल देता था तो पिता जी की डांट सुनने को मिलती थी। मैं इंडस्ट्री में आने से पहले ही भाषा पर फोकस के साथ डांस, ताइक्वांडो सब सीख लिया था जो एक हिंदी फिल्म हीरो के लिए जरूरी होता है। शुरू से मैं ऐक्टिंग के लिए पागल था इसलिए पूरी तैयारी करके आया था।

थिएटर ऐक्टर को खोलता है
पृथ्वी थिएटर व किशोर नामित कुमार से ट्रेनिंग ली।  इस दौरान मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। थियेटर ऐक्टर को खोलता है। इसका सबसे बड़ा फायदा की आपको ऑडियंश का रिएक्शन तुरंत का तुरंत मिलता है। उसके बाद आप उसमें बदलाव कर सुधार कर सकते है। जैसे टाइमिंग, रिदम, लैंडिंग ऐक्टर के लिए बहुत जरूरी होता है, जो हमे थिएटर में सीखने को मिला। मकरंद देशपांडे के साथ बैक स्टेज काफी काम किया। उनसे मैंने काम के प्रति समर्पण सीखा। अगर किसी भी चीज को पाना है तो उसके लिए पागलों की तरह जुट जाओ। मैंने अमेरिका में भी थिएटर किए , लेकिन भाषा का फर्क बहुत है। वैसे मुझे फिल्मों से बहुत प्यार है। फिल्मों से ज्यादा रिएलिटी दिखा सकते है। ऐक्टिंग आंखों का खेल है।

पोर्ट फोलियो लेकर घूमता था
फिल्मों में रोल के लिए मैंने बहुत डायरेक्टर व कास्टिंग डायरेक्टर के चक्कर लगाए है। मैंने तो वो ऑडिशन भी दिए है जब ऑडिशन में आए लोगों को नाम से नहीं बल्कि नंबर से पुकारा जाता था। जहां पर बॉडी बिल्डिंग वाले गोरे स्मार्ट लड़कों की लाइन लगी रहती थी। वहां पर मैं पोर्टफोलियो लेकर बैठा रहता था। मैंने बहुत नॉर्मल शुरूआत की। मुझे पता चलता है कि कोई बड़ा डायरेक्टर या कोई अच्छे कांसेप्ट पर फिल्म बना रहा है तो मैं जाकर खड़ा हो जाता हूं और कहता हूं कि सर मैं भी हूं। फिल्म गुड़गांव के वक्त मैं फिल्म फितूर की शूटिंग कर रहा था। अजय रॉय एक फिल्म प्रॉड्यूस करने वाले थे शंकर रमन के साथ गुड़गांव। काफी समय से इसकी चर्चा थी। मुकेश छाबड़ा इसकी कास्टिंग कर रहे थे तो मैं कश्मीर से टिकट बुक के सीधे मुंबई पहुंचकर शंकर के सामने बैठ गया और बोला सर मैं कर लूंगा। लैंग्वेज प्रॉब्लम भी नहीं आएगी क्योकि मैंने भाषा पर बहुत काम किया। असल मैं मेरा फेस और आंखें देखकर कोई भी मुझे इस रोल के लिए कास्ट नहीं करता। लेकिन अजय और शंकर दोनों ने मेरा काम देखा था तो उन्होंने मुझे मौका दिया। गुड़गांव मेरी लिए टार्निंग प्वांइट रही। 

वेब सीरीज हमारी फिल्मों से मिलता जुलता है
वेब सीरीज हमारी फिल्मों की तरह है। आज के समय में जो डायरेक्टर फिल्म बना रहे हैं वहीं वेब सीरीज भी बना रहे है। अगर टीवी की बात करें तो टीवी आज हमारी फिल्मों व वेब सीरीज से काफी अलग हो गया है। मेरी फिल्म कालाकांडी जब रिलीज हुई तो उस वक्त नेटफ्लिक्स अमेजन की शुरूआत हुई थी। मैं वर्कहॉलिक इंसान हूं मुझे काम करने में मजा आता है। वेब सीरीज को देखकर लगा कि इसमें मैं कुछ भी कर सकता हूं अपने को एस्क्प्लोर कर सकता हूं। फिर मैं लग गया काम में और इस साल मैं चार वेब सीरीज कर चुका हूं। वेब सीरीज इंटरटेंटमेंट का फिल्मों के बाद दूसरा प्लेटफॉर्म है। आने वाले समय में वेब ओटीटी का ही दौर है। बार कोड वेब सीरीज का 75 मिलियन व्यू है। वहीं, सेंसरशिप न होने से ऐक्टर को एक्स्प्लोर करने करने आजादी मिलती है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम जबरदस्ती थोपने लगे। अगर सेंसरशिप लगती है तो फिर यह फिल्मों से अलग नहीं रह जाएगा।

पीरियड फिल्म करने का शौक
मुझे पीरियड फिल्म करनी है। जो न मेरी भाषा है और न ही मेरा लुक। न आज की तरह के लोग न रहन सहन, कहना का मतलब है कि आज के दौर से बिल्कुल अलग जो दौ सौ साल पुरानी हो उसको करना चाहूंगा। मुझे वो कपड़े पहनने है वो भाषा बोलनी है जो हमारी नहीं है। असल मैं यह एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है एक ऐक्टर के लिए और मुझे इस तरह का चैलेंजिंग रोल करना बहुत पसंद है। इसके अलावा अगर किशोर कुमार की बायॉपिक बने तो मैं उसको करना चाहूंगा। इसके अलावा अगर फेवरेट ऐक्टर की बात करें तो मुझे संजय मिश्रा के साथ काम करने में मजा आया। उनके अंदर जो एक कलाकार है वो हर जगह हर रोल में फिट हो जाता है। इसके अलावा इरफान खान मुझे बहुत पसंद है।

इस वक्त लखनऊ में दो फिल्में कर रहा हूं
मैं इससे पहले भी लखनऊ आ चुका हूं। छोटे नवाब करके एक मूवी आने वाली है उसकी शूटिंग के लिए आया था। लेकिन इस बार मेरा लखनऊ का लंबा शेड्यूल हो गया है क्योंकि मैं सूसी गणेशन की मूवी के साथ सुभाष कपूर की फिल्म की शूटिंग एक साथ कर रहा हूं। करीब दो महीने का शेड्यूल है। इस दौरान लखनऊ को बहुत करीब से जानने का मौका मिला। यहां का खाना मुझे बहुत पसंद है। यहां का जो भी डिशेज फेमस है उसको टेस्ट कर चुका हूं। इसके अलावा यहां की भाषा बहुत प्यारी है। अब तक जितना सुना था उससे ज्यादा महसूस किया। तरक्की के साथ अपने कल्चर को किस तरह संजो के रखा जाता है वो लखनऊ वालों से सीखना चाहिए।


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