घर से पहली बार मैं बाहर पढ़ाई के सिलसिले में निकला था। रोज सुबह आठ बजे उठना और नौ बजे की बस पकड़कर कॉलेज जाना। शाम को कॉलेज से छूटते ही फिर से बस पकड़कर घर आ जाना। करीब साल भर से यहीं मेरी जिंदगी थी। बस स्टॉप, कॉलेज, घर, पढ़ाई और सोना। यह चार चीजों के अलावा मेरी जिंदगी में कुछ न था। ऐसी जिंदगी वो भी बाहर घर से बाहर रहते हुए लोगों को हैरान करने वाली है।लेकिन मेरी ज़िंदगी के पल ऐसे ही गुजर रहे थे। दोस्त यार तो थे लेकिन बहुत ही कम, नया शहर नए लोग नया माहौल में मैं खुद को ढालने की कोशिश कर रहा था। रोज की ज़िंदगी की तरह उस दिन भी मैं बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहा था लेकिन मुझे क्या पता था कि यह बस स्टॉप पर ही मेरी जिंदगी प्यार, खुशी के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर होगी। कान में इयर फोन लगाए मैं मोबाइल में गाने सुन रहा था। तभी मुझे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ। मैंने पलटकर देखा तो बहुत ही खूबसूरत सी सफेद ड्रेस और गुस्से से लाल लड़की मुझसे कुछ कह रही थी मैंने फौरन अपने इयरफोन निकाले और बोला जी बताएं। उसने कहा.... बताएं वताएं नहीं आप के पैर के नीचे मेरा टुपट्टा दबा हुआ हुआ। मैं अपना पैर हटाते हुए बोला सॉरी पता नहीं चला। वह बोली पता कैसे चलता कान में तो
फोटो स्त्रोत- इंटरनेट
इयरफोन लगाए रखे हुए हो। वह गुस्से में मुझे बातें सुनाती जा रही थी। आस पास खड़े लोग मुझे देख रहे थे। किसी के लिए भी पब्लिक प्लेस में यह मोमेंट बहुत ही ऑकवर्ड होता है लेकिन मुझे इसका फर्क ही नही पड़ा।मैं उसको देखे जा रहा था। इतने मैं बस आ गई और वह बस में बैठ गई। मैं भी उस बस में सवार हो गया। रास्ते भर उसको देखता रहा। कॉलेज पहुंचने के बाद भी पूरे दिन मेरे दिमाग में उसकी ही सूरत घूमती रही। रात भर मैं उसके खयालों में खोया रहा। आंखों से नींद गायब थी बस इंतजार था सुबह का। पहली बार मैं किसी को देखने को बेताब था। बार बार नजरें घड़ी की तरफ जाती। दिल में एक अजीब से बैचेनी थी। किसी तरह सुबह हो ताकि मैं उससे मिल सकूं। उस दिन मैं जल्दी ही उठ गया और जल्दी ही बस स्टॉप पहुंचकर उसका इंतजार करने लगा। एक एक मिनट घंटों के बराबर लग रहा था। चारों तरफ नजरें उसको ही तलाश कर रही थी लेकिन वो नज़र ही नही आ रही थी जैसे जैसे बस का समय होता जा रहा था मेरी बेताबी बढ़ती जा रही थी तभी एकाएक वह नजर आई। उस दिन वह ब्लैक ड्रेस में थी, उसके खुले हुए बाल मुझे आसमान में छाए काले बादलों की तरह नजर आ रहे थे। उसके गले का लॉकेट ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने चांद को कैद कर लिया हो। मेरे तरफ आते उसके कदमों की आहट मेरे दिल की धड़कनों का बढ़ा रहा थी, तभी उसकी नजरें जैसे ही मुझसे मिली मैंने मुस्कुराते हुए उसको हॉय किया। लेकिन उसने बिना जवाब दिए मुंह मोड़ लिया। उसका जवाब न देना मुझे जरा भी बुरा न लगा। बस उसको देख कर ही दिल को सुकून आ गया था। मैं रोज़ उसका बस स्टॉप पहुँच कर उसका इंतजार करता और जब वो आती तो मैं उसको कभी इशारों में कभी मुस्कुरा कर हॉय बोलता लेकिन वो जवाब नही देती। करीब पंद्रह दिन तक ऐसे ही सिलसिला चलता रहा। वह मुझे देखती और मैं उसको हाथ उठाकर हॉय बोलता। फिर एक दिन मैने उसको हॉय बोला तो उसने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया।मेरे लिए जिंदगी का वह पल सबसे खास था। फिर कई दिनों तक बस इशारों इशारों में ही बात होती रही। एक दिन किस्मत ने भी साथ दिया बस काफी भरी हुई थी। बाकी लोग बस में चढ़ गए बस मैं और वो नही चढ़ पाए। बस स्टॉप पूरा खाली हो चुका था मैं हिम्मत करके उसके पास गया और पहली बार उससे बात की। वही नॉर्मल कहाँ पढ़ती हो, घर कहाँ है कौन सा कोर्स कर रही हो मैं एक के बाद एक सवाल करता जा रहा था तभी वो बोली इंटरव्यू ले रहे हो क्या मेरा। मैने भी पलट के बोल दिया चाहो तो तुम भी ले लो मेरा इंटरव्यू। मेरे कहते ही वो हँसते हुए बोली जब जरूरी समझूंगी तो इंटरव्यू भी ले लूंगी। फिर हम दोनों में बात होने लगी और बस आ गई। फिर कई महीनों तक हम दोनों बस स्टॉप पर ही मिलते रहे। करीब 6 महीने बाद हम दोनों ने अपना नम्बर एक्सचेंज किया। उसके बाद तो भाई साहब वक़्त कम पड़ जाता था लेकिन हमारी बातें खत्म ही नही होती थी। कॉलेज का लास्ट इयर था इसके बाद मुझे शहर छोड़ के वापस घर आना होगा या किसी और शहर में जॉब के लिए जाना होगा। उस आने वाले पल को मैं सोच कर ही डर जाता हूँ। जब भी उसको बताता हूँ तो वो मेरा हाथ पकड़ के कहती है कभी कभी लंबे सफर में साथ चलने के लिए थोड़े वक़्त के लिए बिछड़ना जरूरी होता है। यह बहुत छोटा वक़्त होगा यकीन मानो ....... आखिर वो वक़्त भी आ गया कॉलेज पूरा हुआ और सब अपने घर जाने लगे उसके साथ जैसे वक़्त का पता ही नही चला कब दो साल गुजर गए। रात के करीब 8 बज रहे थे 1 30 बजे की मेरी ट्रैन थी मैं उससे बात करते करते अपना सामान पैक कर रहा था तभी वो बोली मुझे तुमसे मिलना है अभी क्योकि रात में 1 30 बजे तुम चले जाओगे फिर पता नही कब मिलोगे। या मिलने आओगे भी या नही। मैंने कहा पगला गई हो क्या अभी तो 1 घंटा पहले ही तो तुम्हारे साथ था और यह तुम कैसी बातें कर रही हो। उसने कहा मुझे कुछ नही सुन्ना मुझे मिलना है बस। पंद्रह मिनट में वही मिलो जहां पहली बार मिले थे। यह कहते ही उसने फोन रख दिया । उसको छोड़ के जाने का दिल तो मेरा भी नही था। मैं पंद्रह मिनट बाद बस स्टॉप पर पहुँच गया। वो वहां पहले से खड़ी थी मुझे देखते ही उसने गले लगा लिया। कुछ देर बाद गले से हाथ निकलते हुए उसने मुझे एक गिफ्ट दिया। और बोली जब ट्रेन में बैठ जाना तब खोलना। फिर वो चली गई। जब मैं ट्रैन में बैठा तो उसका गिफ्ट खोल के देखा उसको देख कर मैं हैरान रह गया। असल में एक फोटो फ्रेम करवा कर दी थी जो हमारी पहली मुलाकात का थी याद आया नही न अरे उसी दिन की जब उसका दुपट्टा मेरे पैरों के नीचे दब गया था तस्वीर में वो मुझ पर चिल्ला रही थी और मैं उसको देख रहा था। उसके बाद मैंने उसको फोन किया। और बोला यह फ़ोटो तुम्हारे पास कैसे आई किसने क्लिक की तो उसने बस इतना ही कहा कि मेरे पास तो शुरू से एक्टिवा थी मैं कॉलेज भी उसी से जाती थी 2 साल पहले खराब हो गई थी इसलिए मुझे बस से जाना पड़ा कुछ दिन पांच दिन बाद सही भी हो गई थी और हां तुम यह मत समझना की तुम ही मुझसे मिलने बस स्टॉप र आते थे। ...... बस स्टॉप से शुरू हुई कहानी आज भी बदस्तूर जारी है।
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