बनारस का साधारण सा लड़का विनीत सिंह आज एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में फिल्मों से लेकर वेब सीरीज तक में अपनी धाक जमा रहा है। वह बॉस्केटबॉल के नेशनल प्लेयर रह चुके हैं। पिता के सपनों को पूरा करने के लिए डॉक्टर भी बने। हालांकि, उनका सपना तो ऐक्टिंग करना था, जिसको पूरा करने के लिए वह 1999 में मुंबई गए। मुंबई में पहचान बनाने की जद्दोजहद के बीच छोटे-छोटे रोल किए। 'गैंग ऑफ वासेपुर' में दानिश के किरदार से पहचान मिली पर उतनी नहीं जितने के वह हकदार थे। स्ट्रगल करते-करते साल दर साल बीतते गए। जब कोई मुख्य किरदार नहीं मिला तो खुद के लिए ही कहानी लिख डाली। आखिर में उनकी लिखी हुई फिल्म मुक्काबाज ने ही उनको पहचान दिलाई। एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में आज अपना अलग मुकाम बना चुके ऐक्टर विनीत के बॉलिवुड के सफर की कहानी भी कम फिल्मी नहीं है। वह इन दिनों लखनऊ में तेलुगू की सुपरहिट फिल्म के हिंदी रीमेक की शूटिंग कर रहे हैं। हमसे उन्होंने लखनऊ प्रेम, इंडस्ट्री में अपने स्ट्रगल और करियर में आते उतार-चढ़ाव को लेकर बात की।
मेरे लिए यह फिल्म नई है
यह फिल्म तमिल का रीमेक है, जो एक नए सब्जेक्ट पर है। सोशल मीडिया से जुड़े लोग इस फिल्म से खुद को जोड़ पाएंगे। असल में सोशल मीडिया पर हम आप सामने वाले को उतना और वैसा ही जानते है जितना वह बताता और दिखाता है। इसमें थ्रिलर के साथ कई ऐंगल है। एक ऐक्टर के तौर पर जब मैंने फिल्म की कहानी सुनी तो मैं काफी एक्साइट हुआ। फिल्म में मैं पुलिस वाले का लीड रोल कर रहा हूं। फिल्म को सुसी गणेशन ही बना रहे है जिन्होंने तमिल में इसको बनाया था। फिल्म की शूटिंग लखनऊ में ही होनी है और यहीं की कहानी भी है।
मुझे स्ट्रगल ने निर्भीक बना दिया
मैं किसी भी रोल को करने से पहले ही उसकी तैयारियां शुरु कर देता हूं। अगर मुक्काबाज की बात करें तो उस फिल्म के किरदार के लिए मैंने दो ढाई साल पहले से ही तैयारियां शुरु कर दी थी। मुक्काबाज लिखने के दौरान मैंने मुंबई को अपना घर बना लिया था अगर मुंबई में ही काम मिलता था तो करता था वरना नहीं करता था। इन सबके बीच मेरे सारे पैसे खत्म हो गए थे। फिल्म की कहानी लेकर मैं अनुराग कश्यप के पास गया, अनुराग सर ने कहा था 'अगर बॉक्सर नही बनोगे तो फिल्म नहीं बनाऊंगा'। मैं किसी को मौका नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने मुंबई में रहते हुए जितना कमाया था, जो भी खरीदा था, उस सबको बेचकर बॉक्सिंग की तैयारी के लिए पाटियाला चला गया। अब मेरे पास खोने को कुछ बचा नहीं था। उसके बाद मेरी लाइफ में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वह यह कि मैं निर्भीक हो गया। इन परिस्थितियों ने मुझे बहुत मजबूत बना दिया।
मेरी तो अभी शुरुआत हुई है
मैंने फिल्म इंडस्ट्री में करीब करीब 19 साल दिए हैं, लेकिन मेरा मानना है कि मेरी असल शुरुआत मुक्कबाज के बाद ही हुई है। मुक्काबाज को रिलीज हुए डेढ़ साल हुए है, उसके बाद मैंने बार्ड ऑफ ब्लड, गोल्ड, सांड की आंख, आधार, कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना, बेताल को मिलाकर यह आठवां प्रॉजेक्ट है जो मैं कर रहा हूं। मुक्काबाज से पहले भी मैंने कई फिल्में की है लेकिन आज मैं कई फिल्मों में बतौर लीड काम कर रहा हूं। उस अकेली मूवी ने मुझे मेरे दस साल वापस कर दिए हैं। अब मैं जिसके साथ एक बार काम करता हूं तो वह दुबारा जरुर बुलाते है। पहले मौका नहीं मिलता था अब एक मौके के बाद दूसरा भी मिल रहा है। एक ऐक्टर के तौर मेरे लिए यह बहुत अच्छा है।
ईमानदारी से किरदार निभाता हूं
एक अभिनेता के तौर पर मेरी कोशिश रहती है कि मैं हमेशा कुछ नया करुं। मैं कोई चैलेंजिंग रोल एक्स्पेट करता हूं तो उसको पूरा करने के लिए, उस किरदार को ईमानदारी से निभाने के लिए मेहनत से पीछे नहीं हटता। बार्ड ऑफ ब्लड में वीर का किरदार मेरे लिए नया होने के साथ काफी चैलेंजिंग भी था। उसमें मुझे पश्तो बोलना था। इस किरदार के लिए मैंने पश्तून लोगों का रहन सहन, बोली, उनका संगीत, खान पान सब सीखा। ताकि अपने किरदार के साथ जस्टिस कर सकूं। अगर महिला प्रधान फिल्मों की बात करें तो मेरा मानना है कि ऐक्टर के लिए उसमें भी करने को बहुत कुछ रहता है। सांड की आंख में डॉ यशपाल का किरदार ही फिल्म का सूत्रधार है। इसके अलावा कारगिल गर्ल गुंजन में मेरा किरदार काफी अहम है। मेरा मानना है कि संतुलन बहुत जरूरी है। फिल्म में किरदार, कहानी, सबका संतुलन होना चाहिए। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि लिंग, जाति, क्षेत्र की वजह से किसी भी इनसान को रोका नहीं जाना चाहिए। सबको बराबरी का हक मिलना चाहिए। मेरी बहन स्पोर्ट्स प्लेयर है मैं उसको खिलाने ले जाता था और खुद ग्राउंड में बैठा रहता था।
मैं सारी स्क्रिप्ट पढ़ता हूं
मेरे पास जितनी भी स्क्रिप्ट आती हैं उनका रोल करुं या ना करुं लेकिन मैं उनको पढ़ता जरुर हूं। एक ऐक्टर के तौर पर मुझे पढ़ने से काफी फायदा मिलती है। मैंने कई बड़े ऐक्टर के साथ काम किया है। अक्षय कुमार के साथ गोल्ड किया वह बहुत ही खुशमिजाज है मैं तो उनसे कहता था कि आपने खुश रहने का टेंडर ले लिया है। हर कलाकार में कुछ न कुछ यूनिक होता है। मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि उनसे कुछ न कुछ सीख सकूं।
बस सब होता गया
मैं जो परिस्थितियां होती हैं उनमें बेहतर करना चाहता हूं। यहीं मेरी कोशिशें मुझसे बेहतर करवाती है। ऐसे ही जब मेरे बारे में लीड रोल के लिए लोग नहीं सोच रहे थे तब मैंने खुद सोचा और अपने लिए कहानी लिखी। ऐसे ही परिस्थितियां बनती गई और मैं काम करता गया। मेरे बहन भी लिखती है मुक्काबाज हम दोनों ने मिलकर लिखी। मेडल जीतने के बाद दुनिया सलाम करती है लेकिन उस मेडल जीतने के पहले की कहानी जो होती है न वह सबसे महत्वपूर्ण होता है। अगर आगे लिखने की बात करुं तो अभी मैं इतना व्यस्त हूं कि लिखने के लिए वक्त ही नहीं रहता। हां मेरी बहन जो लिखती है उसको पढ़ता जरुर हूं। अगर अपने पसंदीदा लेखकों की बात करुं तो पुराने राइटर बहुत पसंद है उनकी लेखनी बहुत ही जबरदस्त थी। लेकिन वक्त के साथ बदलाव भी आता है आज के दौर में गुलजार साहब कमाल के लेखक है।
भेदभाव खिलाड़ियों को तोड़ देता है
मैं एक नेशनल प्लेयर हूं मैंने खेल को बहुत करीब से देखा है। जब मैं मुक्काबाज की ट्रेनिंग कर रहा था तो उस दौरान भी कई बच्चें ऐसे थे जिनके साथ भेदभाव किया गया। यह भेदभाव खिलाड़ियों को अंदर से तोड़ देता है। आज भी कई जगहों पर ऐसा ही भेदभाव होता है। इसको रोकने के लिए बहुत सख्त कदम उठाने की जरुरत है। इसके अलावा मैं कहना चाहता हूं कि आप खिलाड़ी हो न हो लेकिन मैदान में जरुर जाएं। वहां जाकर आप हार जीत के साथ रोज उठते है और आगे की तैयारी करते है। ऐसे में आप सीखते है कि हार होने पर हतोत्साहित व जीतने पर अतिउत्साहित न होकर एक सामान्य बर्ताव कैसे करते है। खेल हमें अनुशासन के साथ सामाजिक और मानसिक दोनों तौर पर मजबूत बनाता है।
यूपी का माहौल बहुत फ्रेंडली है
यहां पर शूटिंग का माहौल बहुत फ्रेंडली है। यहां के लोग डिस्टर्ब नही करते है वो शूटिंग के दौरान आएंगे तो थोड़ी देर रुकते है और फिर चले जाते है। इसके अलावा जिस तरह से सरकार का सहयोग मिल रहा है। यहां का माहौल है, उसके चलते शूटिंग बहुत हो रही है। जिसकी वजह से रोजगार मिल रहा है। नए कलाकारों को मौका मिलता है। यहां के लोग हर क्षेत्र में शुरु से आगे रहे है। अब फिल्म इंडस्ट्री के यहां आ जाने से बहुत से प्रतिभाओं को मंच मिल रहा है।
केडी सिंह में खेली थी स्टेट चैंपियनशिप
लखनऊ से मेरी बहुत सारी यादें हैं। पहली बार जब मैं बनारस से खेलने के लिए निकला था तो सबसे लखनऊ आया था। केडी सिंह स्टेडियम पहले बॉस्केटबाल कोर्ट अंदर हुआ करता था। जहां पर स्टेट चैंपियनशिप खेली थी। यहां से नेशनल के लिए सिलेक्ट हुआ था। यहां पर कैंप लगा था हॉस्टल में रहते थे। उस ग्राउंड से बस एक ही बिल्डिंग नजर आती थी जो क्लार्क होटल की थी। इसके अलावा यहां पर एक नेक्सन मार्केट लगती थी जहां पर स्पोर्ट्स का वह सामान मिलता था जो कहीं और नहीं मिलती थी। जैसे ही हम लोगों को कैंप से वक्त मिलता था तो कोच से रिक्वेस्ट करके शॉपिंग के लिए चले जाते थे। इसके अलावा लड्डू चाणक्य के यहां पर मट्ठा पीते थे। अभी जब हम लोग हनुमान सेतु पर शूटिंग कर रहे थे तो मैंने सबसे पहले बोला की पहले मट्ठा मंगवा लें। यहां की मेरे से जुड़ी इतनी कहानियां हैं कि बता नहीं सकता। आज भी सुबह सुबह मैं केडी सिंह स्टेडियम जाता हूं वहां आराम से बैठता हूं।
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मेरे लिए यह फिल्म नई है
यह फिल्म तमिल का रीमेक है, जो एक नए सब्जेक्ट पर है। सोशल मीडिया से जुड़े लोग इस फिल्म से खुद को जोड़ पाएंगे। असल में सोशल मीडिया पर हम आप सामने वाले को उतना और वैसा ही जानते है जितना वह बताता और दिखाता है। इसमें थ्रिलर के साथ कई ऐंगल है। एक ऐक्टर के तौर पर जब मैंने फिल्म की कहानी सुनी तो मैं काफी एक्साइट हुआ। फिल्म में मैं पुलिस वाले का लीड रोल कर रहा हूं। फिल्म को सुसी गणेशन ही बना रहे है जिन्होंने तमिल में इसको बनाया था। फिल्म की शूटिंग लखनऊ में ही होनी है और यहीं की कहानी भी है।
मुझे स्ट्रगल ने निर्भीक बना दिया
मैं किसी भी रोल को करने से पहले ही उसकी तैयारियां शुरु कर देता हूं। अगर मुक्काबाज की बात करें तो उस फिल्म के किरदार के लिए मैंने दो ढाई साल पहले से ही तैयारियां शुरु कर दी थी। मुक्काबाज लिखने के दौरान मैंने मुंबई को अपना घर बना लिया था अगर मुंबई में ही काम मिलता था तो करता था वरना नहीं करता था। इन सबके बीच मेरे सारे पैसे खत्म हो गए थे। फिल्म की कहानी लेकर मैं अनुराग कश्यप के पास गया, अनुराग सर ने कहा था 'अगर बॉक्सर नही बनोगे तो फिल्म नहीं बनाऊंगा'। मैं किसी को मौका नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने मुंबई में रहते हुए जितना कमाया था, जो भी खरीदा था, उस सबको बेचकर बॉक्सिंग की तैयारी के लिए पाटियाला चला गया। अब मेरे पास खोने को कुछ बचा नहीं था। उसके बाद मेरी लाइफ में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वह यह कि मैं निर्भीक हो गया। इन परिस्थितियों ने मुझे बहुत मजबूत बना दिया।
मेरी तो अभी शुरुआत हुई है
मैंने फिल्म इंडस्ट्री में करीब करीब 19 साल दिए हैं, लेकिन मेरा मानना है कि मेरी असल शुरुआत मुक्कबाज के बाद ही हुई है। मुक्काबाज को रिलीज हुए डेढ़ साल हुए है, उसके बाद मैंने बार्ड ऑफ ब्लड, गोल्ड, सांड की आंख, आधार, कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना, बेताल को मिलाकर यह आठवां प्रॉजेक्ट है जो मैं कर रहा हूं। मुक्काबाज से पहले भी मैंने कई फिल्में की है लेकिन आज मैं कई फिल्मों में बतौर लीड काम कर रहा हूं। उस अकेली मूवी ने मुझे मेरे दस साल वापस कर दिए हैं। अब मैं जिसके साथ एक बार काम करता हूं तो वह दुबारा जरुर बुलाते है। पहले मौका नहीं मिलता था अब एक मौके के बाद दूसरा भी मिल रहा है। एक ऐक्टर के तौर मेरे लिए यह बहुत अच्छा है।
ईमानदारी से किरदार निभाता हूं
एक अभिनेता के तौर पर मेरी कोशिश रहती है कि मैं हमेशा कुछ नया करुं। मैं कोई चैलेंजिंग रोल एक्स्पेट करता हूं तो उसको पूरा करने के लिए, उस किरदार को ईमानदारी से निभाने के लिए मेहनत से पीछे नहीं हटता। बार्ड ऑफ ब्लड में वीर का किरदार मेरे लिए नया होने के साथ काफी चैलेंजिंग भी था। उसमें मुझे पश्तो बोलना था। इस किरदार के लिए मैंने पश्तून लोगों का रहन सहन, बोली, उनका संगीत, खान पान सब सीखा। ताकि अपने किरदार के साथ जस्टिस कर सकूं। अगर महिला प्रधान फिल्मों की बात करें तो मेरा मानना है कि ऐक्टर के लिए उसमें भी करने को बहुत कुछ रहता है। सांड की आंख में डॉ यशपाल का किरदार ही फिल्म का सूत्रधार है। इसके अलावा कारगिल गर्ल गुंजन में मेरा किरदार काफी अहम है। मेरा मानना है कि संतुलन बहुत जरूरी है। फिल्म में किरदार, कहानी, सबका संतुलन होना चाहिए। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि लिंग, जाति, क्षेत्र की वजह से किसी भी इनसान को रोका नहीं जाना चाहिए। सबको बराबरी का हक मिलना चाहिए। मेरी बहन स्पोर्ट्स प्लेयर है मैं उसको खिलाने ले जाता था और खुद ग्राउंड में बैठा रहता था।
मैं सारी स्क्रिप्ट पढ़ता हूं
मेरे पास जितनी भी स्क्रिप्ट आती हैं उनका रोल करुं या ना करुं लेकिन मैं उनको पढ़ता जरुर हूं। एक ऐक्टर के तौर पर मुझे पढ़ने से काफी फायदा मिलती है। मैंने कई बड़े ऐक्टर के साथ काम किया है। अक्षय कुमार के साथ गोल्ड किया वह बहुत ही खुशमिजाज है मैं तो उनसे कहता था कि आपने खुश रहने का टेंडर ले लिया है। हर कलाकार में कुछ न कुछ यूनिक होता है। मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि उनसे कुछ न कुछ सीख सकूं।
बस सब होता गया
मैं जो परिस्थितियां होती हैं उनमें बेहतर करना चाहता हूं। यहीं मेरी कोशिशें मुझसे बेहतर करवाती है। ऐसे ही जब मेरे बारे में लीड रोल के लिए लोग नहीं सोच रहे थे तब मैंने खुद सोचा और अपने लिए कहानी लिखी। ऐसे ही परिस्थितियां बनती गई और मैं काम करता गया। मेरे बहन भी लिखती है मुक्काबाज हम दोनों ने मिलकर लिखी। मेडल जीतने के बाद दुनिया सलाम करती है लेकिन उस मेडल जीतने के पहले की कहानी जो होती है न वह सबसे महत्वपूर्ण होता है। अगर आगे लिखने की बात करुं तो अभी मैं इतना व्यस्त हूं कि लिखने के लिए वक्त ही नहीं रहता। हां मेरी बहन जो लिखती है उसको पढ़ता जरुर हूं। अगर अपने पसंदीदा लेखकों की बात करुं तो पुराने राइटर बहुत पसंद है उनकी लेखनी बहुत ही जबरदस्त थी। लेकिन वक्त के साथ बदलाव भी आता है आज के दौर में गुलजार साहब कमाल के लेखक है।
भेदभाव खिलाड़ियों को तोड़ देता है
मैं एक नेशनल प्लेयर हूं मैंने खेल को बहुत करीब से देखा है। जब मैं मुक्काबाज की ट्रेनिंग कर रहा था तो उस दौरान भी कई बच्चें ऐसे थे जिनके साथ भेदभाव किया गया। यह भेदभाव खिलाड़ियों को अंदर से तोड़ देता है। आज भी कई जगहों पर ऐसा ही भेदभाव होता है। इसको रोकने के लिए बहुत सख्त कदम उठाने की जरुरत है। इसके अलावा मैं कहना चाहता हूं कि आप खिलाड़ी हो न हो लेकिन मैदान में जरुर जाएं। वहां जाकर आप हार जीत के साथ रोज उठते है और आगे की तैयारी करते है। ऐसे में आप सीखते है कि हार होने पर हतोत्साहित व जीतने पर अतिउत्साहित न होकर एक सामान्य बर्ताव कैसे करते है। खेल हमें अनुशासन के साथ सामाजिक और मानसिक दोनों तौर पर मजबूत बनाता है।
यूपी का माहौल बहुत फ्रेंडली है
यहां पर शूटिंग का माहौल बहुत फ्रेंडली है। यहां के लोग डिस्टर्ब नही करते है वो शूटिंग के दौरान आएंगे तो थोड़ी देर रुकते है और फिर चले जाते है। इसके अलावा जिस तरह से सरकार का सहयोग मिल रहा है। यहां का माहौल है, उसके चलते शूटिंग बहुत हो रही है। जिसकी वजह से रोजगार मिल रहा है। नए कलाकारों को मौका मिलता है। यहां के लोग हर क्षेत्र में शुरु से आगे रहे है। अब फिल्म इंडस्ट्री के यहां आ जाने से बहुत से प्रतिभाओं को मंच मिल रहा है।
केडी सिंह में खेली थी स्टेट चैंपियनशिप
लखनऊ से मेरी बहुत सारी यादें हैं। पहली बार जब मैं बनारस से खेलने के लिए निकला था तो सबसे लखनऊ आया था। केडी सिंह स्टेडियम पहले बॉस्केटबाल कोर्ट अंदर हुआ करता था। जहां पर स्टेट चैंपियनशिप खेली थी। यहां से नेशनल के लिए सिलेक्ट हुआ था। यहां पर कैंप लगा था हॉस्टल में रहते थे। उस ग्राउंड से बस एक ही बिल्डिंग नजर आती थी जो क्लार्क होटल की थी। इसके अलावा यहां पर एक नेक्सन मार्केट लगती थी जहां पर स्पोर्ट्स का वह सामान मिलता था जो कहीं और नहीं मिलती थी। जैसे ही हम लोगों को कैंप से वक्त मिलता था तो कोच से रिक्वेस्ट करके शॉपिंग के लिए चले जाते थे। इसके अलावा लड्डू चाणक्य के यहां पर मट्ठा पीते थे। अभी जब हम लोग हनुमान सेतु पर शूटिंग कर रहे थे तो मैंने सबसे पहले बोला की पहले मट्ठा मंगवा लें। यहां की मेरे से जुड़ी इतनी कहानियां हैं कि बता नहीं सकता। आज भी सुबह सुबह मैं केडी सिंह स्टेडियम जाता हूं वहां आराम से बैठता हूं।
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