Tuesday, 31 March 2015

ऐसे तो विलुप्त हो जाएंगी हमारे देश की मूर्तिकला



जीस्ट : प्राचीनकाल से प्रचलित मूर्तिकला हमारे देश की संस्कृति व स•यता को अपने में पिरोए हुए है। आज भी सभी  हिंदू परिवारों में मिट्टी की खूबसूरत मूर्तियां उनके मंदिरों की शोभा बढ़ाती दिखाई देती हैं लेकिन इन मूर्तियों पर दिन-रात काम कर, कठोर पत्थरों को हाथों से तराशकर, उनमें खूबसूरत रंग भरने वाले मूर्तिकारों के हाथ आज भी पूरी तरह खाली हैं। यह काम करते-करते उनके हाथों के चमड़े तक छिल जाते हैं और हथेलियां कठोर हो चुकी हैं। बावजूद इसके उनका दर्द समझने वाला कोई नहीं है। सरकार से उम्मीद छोड़ चुके ये मूर्तिकार अब अपनी आगे की पीढ़ी को इसमें शामिल नहीं करना चाह रहे। यहीं वजह है कि अब हमारे देश व संस्कृति की पहचान मूर्तिकला का हमारे देश से अस्तित्व ही खत्म होता जा रहा है और अब ये विलुप्त होने की कगार पर है।
इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ।  पत्थरों को अपने हाथों से घंटो बारीकी से तराशकर उसे एक सुंदर रूप देना, फिर उसमें रंग भरना एक-एक कर रंगों के सूखने का इंतजार और फिर एक ऐसी मूरत सामने रखना, जिसे देखकर आप और हम सभी नतमस्तक हो जाएंगें। आप सोच रहे हैं ऐसा क्या है इस मूरत में तो आइए हम आपको एक ऐसी दुनिया की सैर कराते हैं जिससे पहले आप कभी रूबरू नहीं हुए होंगे। हम उन मूर्तिकारों की बात कर रहे हैं जो कि कड़ी धूप और धूल के बीच आड़े तिरछे पत्थरों को ऐसी सुंदर आकृतियों में ढालते हैं जिन्हें हम अपने घर के मंदिर में सजाते हैं और फिर उनकी पूजा करते हैं। भगवान्  की ये मूर्तियां हमें जहां ईश्वर के दर्शन कराती हैं वहीं हमारे घर की शोभा  बढ़ाती हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इन्हें बनाने वाले मूर्तिकारों को इसके बदले क्या मिलता है शायद नाम मात्र का लाभ  जिससे कि वह जीविकोपार्जन भी ठीक से नहीं कर पाते हैं। यहीं वजह है कि अब धीरे-धीरे हमारे समाज से मूर्तिकला विलुप्त सी होती जा रही है। हमारी संस्कृति और सभ्यता  की पहचान इस मूर्तिकला के विलुप्त होने से हमारे देश को क्या हानि होगी, शायद इसका अंदाजा भी  हमारी सरकार को नहीं है। तभी  तो वह इनकी उन्नति के लिए कुछ भी  नहीं करती।
मशीनें भी हो जाती हैं फेल
  अपनी जिंदगी को बेरंग कर मूर्तियों को रंगीन बनाने का हुनर जो एक मूर्तिकार में होता है वो किसी आधुनिक मशीन द्वारा भी  नहीं किया जा सकता है। मिटटी को सांचे में ढालकर उसको किसी भी  आकार में परिवर्तित करने का हुनर बस एक मूर्तिकार के ही बस का है, मगर वक्त के साथ मूर्ति और हस्तशिल्प कला विलुप्त होती जा रही है। शहर में कभी  मूर्तिकारों की मांग हुआ करती थी मगर बाजारीकरण और आधुनिकता की चकाचौंध ने इस कला और उसके कलाकारों की जिंदगी में अंधेरा कर दिया है। वर्तमान समय में शहर में गिने चुने ही लोग मूर्तिकला को जिंदा रखे हुए हैं लेकिन उनसे कभी  जब पूछो कि क्या वह अपनी आने वाली पीढ़ी को इसे सौंपेंगे तो वह साफ इंकार कर देते हैं। उनका कहना बस इतना ही होता है कि इस कला ने हमें कुछ नहीं दिया। हम नहीं चाहते कि हमारी अगली पीढ़ी भी  इसमें पड़ जाए और उनका जीविकोपार्जन भी  हमारी तरह मुश्किल हो जाए।

मूर्तिकला का  इतिहास
प्राचीनकाल से ही मूर्तिकला का अपना एक अलग वजूद रहा है। चाहे वो सिंधु घाटी स•यता हो या मोहनजोदड़ो, मुगल काल का दौर हो या नवाबों का समय हो, सभी  कालों में मूर्तिकारों का सम्मान और रुतबा था। •ाारतीय मूर्तिकारों ने मूर्तिकला को एक अलग आयाम दिया। भारतीय  मूर्तिकला में देवी देवताओं की मूर्तियों को बनाने का प्रचलन बहुत पुराना है। पुराने समय की दीवारों और गुफाओं में इसके प्रमाण भी  मिलते हंै। मूर्तिकला और हस्त शिल्प की पराकाष्ठा को खजुराहो में और मुंबई स्थित एलीफेंटा गुफाओं में देखा जा सकता है। इसके अलावा नवाबों की नगरी में भी  उनके द्वारा बनवाई गर्इं इमारतों और द्वारों पर हस्तशिल्प की झलक साफ नजर आती है। हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप 19वीं शताब्दी में बनी पिक्चर गैलरी में लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। यह गैलरी उस अतीत की याद दिलाती है जब यहां नवाबों का डंका बजता था। इसी तरह गोमती नदी की सीमा पर बनी तीन इमारतों में मोती महल प्रमुख है।

बाजारीकरण से हुआ नुकसान
मूर्तिकारों का मानना है कि पिछले दो दशक में मूर्तिकला का बाजारीकरण तेजी से हुआ है जिसके कारण मूर्तिकारों को उनकी कला का उचित मूल्य नहीं मिलता है। बाजारों में प्लास्टिक और फाइबर के खिलौने और मूर्तियों के आ जाने से मूर्तिकारों द्वारा बनाई गई मूर्तियों की बिक्री पर काफी असर पड़ता रहा है। दुकानों और मॉलो में देवी देवताओं की मूर्तियां सस्ते दामों पर मिल जाती है जबकि मूर्तिकारों की मूर्ति की लागत भी  उससे ज्यादा आ जाती है। दीपावली पर मूर्ति की कीमत अच्छी मिल जाती है मगर सादे दिनों में तो बिक्री के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा शहर की मूर्तियों की डिमांड अन्य प्रदेशों और जनपदों तक होती थी मगर मौजूदा समय में इनकी मांग काफी कम हो गई है।

ऐसे बनती है मूर्ति
मूर्ति बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। मूर्ति बनाने में एक खास तरह की मिटटी का प्रयोग किया जाता है जिसे काली मिट्टी कहते है। इस मिट्टी को धूप में सूखा कर, उसको महीन कर छाना जाता है। इसके बाद उसको भिगोया  जाता ह,ै गीला करके उसको फिर से छाना जाता है ताकि कोई कंक्कड़ उसमें न रह जाये। इसके बाद उसको धूप में हल्का सूखाया जाता है। सांचे में ढाल कर मिटटी  में तपाया जाता है तब जाकर मूर्ति तैयार होती है। कभी कभी  मिटटी  में कच्चा रह जाने के कारण या ज्यादा तप जाने के कारण मूर्तियां टूट भी  जाती हैं। इससे नुकसान भी  सहना पड़ता है।


बाहर से आती है मिट्टी
 मूर्ति बनाने में प्रयोग होने वाली काली मिटटी देहात क्षेत्र से मंगवाई जाती है। इसमें मलिहाबाद, दुबग्गा, बिजनौर आदि जगह प्रमुख है। इसे मंगवाने में •ाी खर्च आता है जिससे काफी पैसा इसमें •ाी खर्च होता है।

कई हुनर हुए विलुप्त
मूर्तिकला बाजारीकरण की भेट  चढ़ गई है। ऐसे में कई हुनर भी  विलुप्त हो गये हैं जैसे इंसाफ का तराजू, लाफिंग बुद्धा, स्टैचू, मिटटी के लैंप आदि चीजों का बनना बंद हो गया है। ऐसे में बस अब देवी देवताओं की ही मूर्तियां बनाते हैं।

वर्जन मूर्तिकार
1. मूल रुप से सिधौली निवासी सुल्ताना पंद्रह साल से काम कर रहे हैं। उनके अनुसार, लागत और मेहनत के अनुसार पैसा नहीं मिल रहा है। शुरु में तो बिक्री अच्छी होती थी मगर वर्तमान समय में मूर्तियों में ज्यादा मुनाफा नहीं मिल पाता है। इस कारण पत्थर को तराश कर उनको बनाना बंद कर दिया है। अब चित्रकूट से बनी हुई मूर्ति लाते हैं और उनमें रंग भर  देते है। साल भी  में मूर्ति से मात्र दो तीन हजार रुपये ही बचते हैं।

2...सहादतगंज में रहने वाले कैलाश प्रजापति ने बताया कि मूर्तिकला से उनका पुराना रिश्ता है। यह उनका पुश्तैनी काम है। उनके दादा सुखाराम ने इसकी शुरुआत की थी तब से वो ये काम कर रहे हंै। उन्होंने बताया कि मूर्तिकारों की दशा बहुत खराब है। पिछले चालीस सालों से वह ये काम कर रहे हैं मगर अब इसमें पहले की तरह मुनाफा नहीं मिलता। बाजारीकरण से बहुत नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि जो मूर्ति हम बनाते हंै, उनकी लागत से •ाी कम की मूर्ति बाजार में आ जाती है। ऐसे में हमारी मूर्ति को कौन लेगा। महाजनों से पैसा उधार लेकर काम करते है मगर बिक्री न हो पाने की दशा में भी  महाजन को ब्याज समेत रुपये लौटाने होते है। कभी कभी  तो खाने के भी  लाले पड़ जाते हैं।

3...सहादतगंज निवासी आशीष का भी  पुश्तैनी काम है। उनके दादा पर दादा के जमाने से ये काम होता आ रहा है। कभी  प्रकाश कला केंद्र का नाम हुआ करता था, उनकी बनाई मूर्तियों की डिमांड बाहरी प्रदेशों में भी  रहती थी मगर अब बाजारीकरण के कारण उनकी हालत बहुत खराब है। आशीष के अनुसार, कभी  हमारे यहां 30 से 40 लोग काम करते थे मगर आज मात्र 10 लोग ही बचे हैं। त्यौहारों पर ही मूर्तियों की डिमांड और बिक्री ज्यादा होती है।

Monday, 9 March 2015

यूपी में बयान बहादुरों का बोलबाला

इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। राजनीति में बयानों के बहुत मायने होते हैं। नेताओं के बयानों से उनकी सोच और विचारधारा का पता चलता है, लेकिन 16वीं लोकसभा के शुरुआत से ही नेताओं द्वारा दिये जाने वाले विवादित बयानों की बाढ़ आ गई है। नेता और बयानों का राजनीति से चोली दमन का साथ है। प्रधानमंत्री से लेकर छुटभैया नेता भी बयानबाजी में पीछे नहीं रहते हंै। बयान देने के पीछे कई कारण होते हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में विवादित बयान देने वाले  नेताओं की कमी नहीं है, जिन्होंने समय-समय पर अपने बयानों से सियासी सनसनी पैदा की है। अपने बयानों से चर्चा में रह कर अधिकतर की छवि बयान बहादुर की बन चुकी है। इनके बोल ने विवाद पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
पब्लिसिटी स्टंट
वर्तमान में राजनीति में प्रसिद्ध होने का सबसे अच्छा साधन बयानबाजी है किसी भी मुद्दे पर विवादित बयान देकर सस्ते में हाईलाइट हो जाना सबसे अच्छा तरीका है। थोड़े से समय में राजनीति में पहचान बनाना हो तो विवादित बयान देना जरूरी है। मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के लिए विवादित बयान बेहतरीन तरीका है।

वोट बैंक के लिए बयानबाजी

बहुत से ऐसे नेता हैं जो वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बयान देते हैं। कम्यूनल बयान देने के पीछे सीधा से मकसद अपने संप्रदाय के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना होता है। वोटों की गोलबंदी करने में नेताओं के लिए सबसे अच्छा हथियार बयान होता है। सांप्रदायिकता वाले बयानों को मीडिया में सुर्खी बनने में समय नहीं  लगता है। बयानों का असर किस तरह होता है उसका नतीजा हाल के ही चुनावों में देखने को भी मिला। धर्म विशेष के खिलाफ बयानबाजी आज की राजनीति का अहम हिस्सा बन गयी है।

विकास नही बयान है मुद्दा

दिल्ली विधानसभा चुनावों को छोड़ दे तो कोई भी ऐसा चुनाव नहीं है जहां विकास का मुद्दा हावी रहा हो। विकास की बात छोड़ नेता कम्यूनल बयान देने में आगे रहते हैं। उनके इन बयानों से की गूंज में विकास की बात दब जाती है। इनमें सबसे ज्यादा बयान प्रदेश के नेताओं ने दिये हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछले दो तीन सालों में विवादित बयानों की बाढ़ सी आ गई है। इन बयानों से नेताओं का व्यक्तिगत रूप से तो संबंध होता ही है इसके अलावा कहीं न कहीं पार्टी की विचारधारा भी दिखाई देती है।

चुनावी दौर में लगती है बयानों की होड़

चुनावी दौर शुरू होते ही विवादित बयानों की होड़ लग जाती है। देश प्रदेश स्तर की सभी राजनीतिक पार्टियों में बयानवीरों की कमी नहीं है। पार्टी ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने के बजाये उनको पद और संरक्षण देकर उनका प्रोत्साहन करती है। चुनाव के नजदीक आते ही ऐसे बयानवीर नेता सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे तो साल में इक्का दुक्का ही बयान सुनाई देते हैं।

ये है विवादित बयानों के बादशाह 

वरुण गांधी-गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाले और राहुल गांधी के भाई वरुण गांधी का बयानों से काफी गहरा संबंध है। उनका सबसे विवादित बयान 2009 के आम चुनावों में दिया गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदू पर हाथ उठा या कार्यकर्ता को डराने धमकाने एवं हक छीनने के लिए शिकायत मिलती है तो वरुण गांधी हाथ काट देगा. कमल... (मुसलमानों के लिए अपमानजनक शब्द) के गले काट देगा. मुस्लिम एक बीमारी है, चुनाव के बाद खत्म हो जाएगी. इस बयान के बाद उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी थी।

आजम खां- सपा सरकार के मंत्री और फायर ब्रांड नेता कहे जाने वाले आजम खां का विवादों से पुराना रिश्ता रहा है उनके निशाने पर आरएसएस से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक निशाने पर रहते हंै। उनका जिसमें विवादित बयान था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कारगिल में भारत माता के साथ अल्लाह हो अकबर के भी नारे गंूजे थे उनके इस बयान से राजनीति में भूचाल आ गया था। इसके लिए उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई थी ।

साक्षी महाराज- भाजपा सांसद साक्षी महाराज के विवादित बयानों का तो चोली दमन का साथ रहा है। उनके द्वारा दिया गया बयान ‘नाथू राम गोंडसे देशभक्त है’ पर विपक्ष को सरकार पर बोलने का मौका दे दिया। अभी ये मामला शांत ही नहीं हुआ था कि उनका हर हिन्दू महिला को चार बच्चे पैदा करने वाले बयान ने उनकी किरकिरी करवा दी।

संगीत सोम - सरधना विधानसभा से भाजपा विधायक संगीत सोम सुर्खियों में तब आये जब उनका नाम मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगे के मुख्य आरोपित के रूप में सामने आया। दंगे भड़कने के पीछे संगीत सोम का भड़काऊ भाषण था जिसमें उन्होंने एक विशेष समुदाय के खिलाफ जनसभा में बदला लेने की बात कही थी उसके बाद ही सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे।

साध्वी निरंजन ज्योति- उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीट से सांसद और केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने दिल्ली विधानसभा में एक विवादित बयान दिया था जिसमें उन्होंने दिल्ली की जनता से रामजादे और ...रामजादे की सरकार चुनने की अपील की थी, जिसके बाद उनके ऊपर केस भी दर्ज हुआ था।

गुपचुप जमीन तैयार कर रही ओवैसी की पार्टी

इन्टरवल एक्सप्रेस
लखनऊ। असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी आॅल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने 2017 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा  चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। बिना किसी शोर शराबे के शहर, गांवों, बूथ स्तर और जिलेवार लोगों के बीच पहुंचने लगी है। जनता के बीच अभी  से सक्रिय होने की वजह को आगामी विधानसभा  चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। जिस तरह से एमआईएम के पदाधिकारी जनता के बीच पहुंच रहे है  उससे सपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सपा को अपनी विरोधी पार्टियां भाजपा , बसपा और कांग्रेस के साथ ओवैसी से भी निपटना पड़ेगा। अपनी रणनीति पर चर्चा के लिए पिछले दिनों राजधानी के एक बड़े होटल में कई जिलों के पदाधिकारियों की एक बैठक हुई थी। सूत्रों के मुताबिक, इस दौरान आगामी चुनाव की रणनीति पर चर्चा हुई।
मुलायम के क्षेत्र से की शुरुआत
ओवैसी ने चुनावी तैयारी के चलते सपा की घेराबंदी शुरू कर दी है। उन्होंने यूपी में मुलायम के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव को गोद लेने की घोषणा की थी। उसी के बाद से पार्टी के पदाधिकारी अन्य जिलों और शहरों में लोगों को जोड़ने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा ओवैसी ने मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर अभी  सपा पर आरोप लगाया था कि सपा को सबसे ज्यादा वोट का मुसलमानों ने दिया था, लेकिन उनकी हिफाजत नहीं की गई। जाहिर है इस तरह के बयान से ओवैसी  ने मुसलमानों के वोटों का ध्रुवीकरण करना शुरू कर दिया है।
राजधानी से शुरू किया प्रचार
प्रदेश की राजधानी में मुस्लिम बहुल इलाकों में एमआईएम ने गुपचुप तरीके से बूथ स्तर पर काम शुरू कर दिया है। राजधानी की कुल नौ विधानसभा सीटों में से पश्चिमी, उत्तर, पूर्वी, मध्य, बीकेटी, मलिहाबाद विधानसऽाा सीटों पर पार्टी ने पैठ बना लिया है। इन विधानसभा  सीटों पर पदाधिकारी सभी  नियुक्त कर दिये गये हैं। ज्ञात होे कि ये सीटे मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं यहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग वोटिंग में निर्णायक भूमिका निभाते है ।
प्रशासन कर रहा है परेशान
पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि राजधानी में कार्यालय खोलने से मौजूदा सरकार को काफी दिक्कत हो रही है। इस वजह से उनके समर्थकों और कार्यालय खोलने के लिए जगह देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दी जा रही है। पहले लालबाग स्थित सिटी होटल में कार्यालय खुला था जो अब हटकर पार्टी के एक पदाधिकारी के घर पर खोलने की तैयारी हो रही है। इसके अलावा पार्टी के कार्यक्रम के लिए विकास नगर में अपार्टमेंट के कम्युनिटी हाल को बुक कराया गया था, लेकिन शासन को इसकी भनक  लग गई जिसके बाद पार्टी के एक कार्यकर्ता को पुलिस ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। तब से कार्यकर्ता गुपचुप तरीके से बैठकें कर पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं।
अन्य जिलों में सभी  काम कर रही है पार्टी 
राजधानी से लगे अन्य जिले जैसे बाराबंकी, उन्नाव, सीतापुर, बस्ती जैसे जिलों में एमआईएम से लोगों को जोड़ने का काम तेजी से चल रहा है। पार्टी का मकसद बिना किसी प्रचार के बूथ स्तर पर काम कर लोगों को जोड़ना है। 2016 तक पार्टी का लक्ष्य कम से कम हर जिले से दस हजार ऐसे लोगों को जोड़ना है जो जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए काम करते रहें। ओवैसी शहर में कब आएंगे इस पर पार्टी के जिला संयोजक ने बताया कि जिस दिन हम रमाबाई मैदान को भर  लेंगे उस दिन ओवैसी की लखनऊ में रैली होगी।