शामे गम कुछ उस निगाहे नाज़ की बाते करो
बे खुदी बढती चली है राज की बाते करो
इस दौर में ज़िन्दगी बशर की ,
बीमार की रात हो गयी
अपना गम किस तरह बयां करू
आग लग जाएगी ,ज़माने में
कहाँ वो खल्वतें दिन रात की और अब यह आलम है कि ,
जब मिलते है दिल कहता है कि कोई तीसरा होता
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्नो इश्क धोखा है सब मगर फिर भी
आज कैसी हवा चली ए " फ़िराक "
आंख बेइख़्तियार भर आई
ना हैरत कर तेरे आगे जो हम कुछ चुप रहते है
हमारे दरमिया ए दोस्त लाखो ख्वाब हायल है
जाओ न तुम हमारी इस बेखबरी पर कि हमारे
हर ख्वाब से इक अहद की बुनियाद पड़ी है
अब तुमसे रुखसत होता हूँ आओ सभालो साज़े ग़ज़ल
नए तराने छेड़ो ,मेरे नगमो को नींद आती है
बे खुदी बढती चली है राज की बाते करो
इस दौर में ज़िन्दगी बशर की ,
बीमार की रात हो गयी
अपना गम किस तरह बयां करू
आग लग जाएगी ,ज़माने में
कहाँ वो खल्वतें दिन रात की और अब यह आलम है कि ,
जब मिलते है दिल कहता है कि कोई तीसरा होता
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्नो इश्क धोखा है सब मगर फिर भी
आज कैसी हवा चली ए " फ़िराक "
आंख बेइख़्तियार भर आई
ना हैरत कर तेरे आगे जो हम कुछ चुप रहते है
हमारे दरमिया ए दोस्त लाखो ख्वाब हायल है
जाओ न तुम हमारी इस बेखबरी पर कि हमारे
हर ख्वाब से इक अहद की बुनियाद पड़ी है
अब तुमसे रुखसत होता हूँ आओ सभालो साज़े ग़ज़ल
नए तराने छेड़ो ,मेरे नगमो को नींद आती है

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