Friday, 31 October 2014

आने वाली नस्ले तुम पर रश्क करेंगी हम अस्रो ,जब ये ख्याल आयेगा उनको तुमने फ़िराक को देखा था -फ़िराक गोरखपुरी

शामे गम कुछ उस निगाहे नाज़ की बाते करो
बे खुदी बढती चली है राज की बाते करो

इस दौर में ज़िन्दगी बशर की ,
बीमार की रात हो गयी

अपना गम किस तरह बयां करू
आग लग जाएगी ,ज़माने में


कहाँ वो खल्वतें दिन रात की और अब यह आलम है कि ,
जब मिलते है दिल कहता है कि  कोई तीसरा होता

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्नो इश्क धोखा है सब मगर फिर भी


आज कैसी हवा चली ए  " फ़िराक "
आंख बेइख़्तियार  भर आई


ना हैरत कर तेरे आगे जो हम कुछ चुप रहते है
हमारे दरमिया ए दोस्त लाखो ख्वाब हायल है


जाओ न तुम हमारी इस बेखबरी पर कि हमारे
हर ख्वाब से इक अहद की बुनियाद पड़ी है

अब तुमसे रुखसत होता हूँ आओ सभालो साज़े ग़ज़ल 
नए तराने छेड़ो ,मेरे नगमो को नींद आती है 

Tuesday, 1 April 2014

मैं और मेरे बदलते सपने

                 

हर कोई अपने लिए अपने लिए एक सपना देखता है कोई डाक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजिनियर , कोई नेता तो कोई बिज़नस करके अपना सपना पूरा करता है और उस सपने को पूरा करने के लिए वो जी जान लगा देते है मगर मैं अपवाद हूँ  क्योकि  मेरा मानना है जब सपने देखने में कोई बुराई नही है और ना ही गवर्मेंट ने कोई टैक्स लगाया है तो फिर सपने देखने में कंजूसी क्यों ,बस एक क्यों 10 देखो ।छोटी सी  ज़िन्दगी को एक सपने के सहारे क्यों बिताऊ। …
मेरे सपने वक़्त के हिसाब से बदलते गए और और मैं ज़िन्दगी को जीने का मज़ा लेता गया । 
जब मैंने पहला सपना  देखा उस वक़्त मैं क्लास 7  में अपने गाव के एक स्कूल में पढता था वो स्कूल कम और प्ले ग्राउंड ज्यादा था पापा कि गाव में मान दान बहुत थी इसलिए कभी फ़ेल नहीं हुआ उस वक़्त हर किसी को डाक्टर बनने का जूनून सवार था तो मैं भी इस जूनून का हिस्सा बन गया और पापा ने मेरा दाखिला शहर के एक नामी स्कूल में करवा दिया ।
मैंने भी डाक्टर बनने के लिए कमर कस ली थी और पढाई भी शुरू कर दी थी मगर क्लास 10 तक पहुचते ही मेरे डॉक्टर बनने की हवा निकलने लगी या यू कहू की पापा के सपने की हवा निकल गई मुझे डॉक्टर बनता देखने की तो गलत ना होगा ।
जब क्रिकेट मैंने देखना और शुरू की तो वो दौर क्रिकेट का नहीं बल्कि सचिन का था। तो मैंने सोचा जब सचिन हाई स्कूल में था तो उसने भी पढाई छोड़ क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था और मैं भी 10 में हु तो कुछ न कुछ तो कनेक्शन है मेरा और सचिन का । बस फिर क्या था मैं घर पंहुचा और पापा से कहा कि मुझे अब क्रिकेट खेलना और सचिन बनना है।
पापा ने मुझे ऐसे देखा जैसे मैंने उनसे अपने लिए शीला की जवानी मांग ली हो फिर उन्होंने कहा कि तुम क्रिकेट खेलोगे तो पढाई कब होगी फिर शुरू हुए उनके उपदेश लेकिन मम्मी के कहने पर उन्होंने मुझे क्रिकेट किट दिला दी और पास के ही एक स्टेडियम में मेरा एडमिशन भी करवा दिया और ये भी कहते गये की ये चार दिन की चांदनी है  पैसे की बर्बादी है और कुछ नही है
धीरे धीरे वक़्त बीतता गया और मेरा क्रिकेटर बनने का सपना भी गायब हो गया और मई गिरते पड़ते इंटरमीडिएट के एग्जाम में पास हो गया मेरे पास होते ही मेरा सपना भी बदल गया। . अब मुझे पैसे चाहिए थे क्योकि मुझे अब विलासियत में जीना का था फोर व्हीलर में घूमना था , महंगे फ़ोन रखना था और सबसे इम्पोर्टेंट लडकियों को इम्प्रेस करना था बस फिर क्या था मैंने पापा से कहा क्योकि उन्ही थे एकलौते मेरे बैंक।
मैं उनके पास गया और झट से २ लाख रुपये की मांग कर दी उन्होंने मुझे ऐसे देखा जैसे किसी अपहरणकर्ता ने उनसे पैसे मांग लिया हो कुछ देर मुझे वो ऐसे ही घूरते रहे फिर उन्होंने मम्मी को आवाज़ लगाईं और कहा.……सुनती हो तुम्हारे साहबजादे एक नया शुगुफा लाये है अब इन्हें बिल्डर बनना है इन्हें घर पर बैठाओ और समझो वरना ये बिल्डिंग बनाये न बनाये अपनी मुमताज़ के लिए ये ताजमहल ज़रूर बना देंगे इतना कह के वो चले गये तब मेरे पास एक ही उम्मीद थी जिससे मेरा सपना साकार हो सकता था वो थी मेरी मम्मी।  मैंने उनकी खुशामद करना शुरू कर दिया काफी रोने गाने के बाद मुझे पैसे मिल गये।
ग्रेजुएट होते ही मेरा सपना भी दम तोड़ गया क्योकि उन 3 सालो में न तो मैं बिल्डर बन पाया और ना ही मेरे पास गाडी थी न महंगा मोबाइल अब आप पूछोगे की लडकिय इम्प्रेस हुई या वो भी नही तो मैं बता दू जब गाड़ी नहीं थी महंगा मोबाइल नही था तो लडकिय क्या घंटा इम्प्रेस होंगी।
जो पैसे बचे थे मेरे बिल्डर वाले काम में उनको मैंने पापा को लौटा दिया और उन्होंने तभी मुझसे सवाल किया की अब क्या इरादा है तभी मेरे मुह से अचानक निकला मास कॉम।  सुनते ही वो मुस्कुराये और बोले जाओ करो जा के।
मैंने मास कॉम में एडमिशन लिया और शुरू किआ अपना नया सपना जिसे पूरा करने के लिए मैंने भुत म्हणत की मगर उसी दौरांन हम लोगो को अस्सिंग्मेंट मिला जिसमे शोर्ट मूवी बनानी थी तो उस मूवी में मैंने एक्टिंग की और लोगो ने बहुत तारीफ की मेरे गुरु जी जब मुझसे कहा की तुम कलाकार हो थिएटर किया करो इरफ़ान खान ,नवाज़ुद्दीन , ये सब थिएटर से ही आये है …… बस फिर क्या था नया सपना जगा और मन में लड्डू फूटा। मास कॉम का कोर्स ख़त्म हुआ और मैं  पापा के पास गया तो  उन्होंने पूछा अब क्या करना है तुम्हे तो मैंने कहा................................................... ।