Wednesday, 31 July 2013

हार और जीत के बीच बस संघर्ष है

असफलता  एक ऐसा शब्द है जिसे कोई भी शायद नहीं सुनना  चाहता मगर असफ़लता हमारे जीवन में उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी सफलता कोई भी काम जिसमे हम असफल हो जाते है उसके बाद उस काम को करने और उसमे सफल होने की ख़ुशी पहले से कई गुना ज्यदा बढ़ जाती है या यू कहे की असफ़लता ही सफलता की कुंजी है जो इन्सान असफ़लता से घबरा कर अपनी मंजिल का रास्ता बदल देता है वो इंसान अपनी मंजिल को हमेशा के लिए खो देता है यदि आप  देर से मिलने वाली सफलता से निराश हो जाते है और निराशावादी विचारो को अपने दिल और दिमाग में हावी होने देते है तो  ऐसे आप  अपनी असफ़लता को खुद ही बुलावा देते है यदि सफलता बिना संघर्ष के मिल जाती तो शायद सफलता का फल इतना मीठा न होता लोगो की नज़र में सफलता का महत्व न रहता कोई भी ऐसा नही है जिससे बिना संघर्ष करे सफलता मिल गयी हो
 असफल हो जाने पर हमे ये पता चलता है की हमारी तय्यारी में कहा गलती हो गयी हमे उन बातो का अध्यन करना चाहिए और फिर से उसकी तय्यारी करनी चाहिए और उन बातो को धयान में रख के मेहनत की शुरुवात करनी चाहिए ताकि दुबारा वो गलती न हो   ये कहावत है की तक़दीर भी मेहनत करने वालो का साथ देती है असफ़लता और सफतला के बीच अगर कुछ है तो वो है  संघर्ष ....

अपनी मंजिल को पाने के लिए खुद में जूनून होना चाहिए पागलपन होना चाहिए उस मज़िल को हासिल करने के लिए संघर्ष करना चाहिय यदि आप के अन्दर ये है तो आपको आपकी मंजिल पर पहुचने से कोई नहीं रोक सकता। … हेनरी फोर्ड में अगर जूनून न होता तो शायद आज कार ना होती। …  राइटर ब्रदर्स अगर तूफानों से घबरा गये होते तो आज हवा में उड़ने वाला जहाज़ न होता।  महात्मा गांधीजी ने एक बार नहीं बीसों बार अंग्रेजो का दमन सहा लाठी खाई जेल गयी मगर भारत को आज़ादी दिलाने की अपनी मजिल से कभी पीछे नहीं हटे। बार बार असफ़लता  के बाद भी ये  अपनी मजिल की राह में पत्थर बने खड़े रहे और आज पूरी दुनिया इनको जानती है और इनके जैसा बनना चाहती है यदि ये  असफलता से घबरा के  अपने मकसद से पीछे हट गये होते तो शायद आज इनका नाम लेने वाला कोई न होता लोग इन्हें जानते तक नही। … अपनी पहचान बनाने के अपनी मजिल को पाने के लिए जुनून पागलपन अपने लक्ष्य के लिए समर्पण की भावना का होना बहुत ज़रूरी होता है और संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए संघर्ष ही असली जीवन है 

Thursday, 18 July 2013

लखनऊ की धरोहर कुत्ता गायें और बन्दर

   
 यूँ तो लखनऊ मैं बहुत सारी चीजें प्रसिद्ध है जैसे हजरत गंज की  शोपिंग, रत्ति लाल  के ख्खस्ते, राजा की  ठंडाई मगर इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जो इस शहर कि प्रसिधी के लिए कम नहीं है जैसे गाडियों ने के पीछे दोड़ते कुत्ते सडको पे आराम फरमाती गायें और हमारी छत्तों पर आराम फरमाते हुए बन्दर  वैसे तो कुत्ते गाये बन्दर ये सभी जानवर आपको और भी शहरो मैं देखने को मिल जाएँगे मगर लखनऊ के इन जानवरों कि कुछ और ही बात है 
         सबसे पहले बात करते है यहाँ के कुत्ते कि यदि आप अपनी गाडी या बाइक पे जा रहे है तो आपको बहुत ही सावधानी से चलना पड़ेगा यदि आप कार से है तो आप थोड़ी  रहत से जा सकते है  लेकिन यदि आप बाइक पे है तो सावधानी बरतनी पड़ेगी द्य रास्तें या गली में कोई कुत्ता या कुत्तों का गैंग दिखाई दे तो आप कि सलामती इसी में है कि आप बिना उन्हें घूरे { आंखे दिखाए} बिना हॉर्न बजाये धीरे धीरे उन्हें सर झुका के सलामी देते हुए निकल जाये इससे हो सकता है कि वो आपको जाने दे यदि आपने बहादुरी दिखाई तो अप नजदीकी किसी हॉस्पिटल में पाए जा सकते है इनके प्रकोप से पुलिस नेता तक नहीं बचपाए तो हम तो आम इंसान है भाई
             यहाँ कि गाये और बैल तो एक दम शान्त स्वभाव के है ये इतने शांत स्वाभाव के है कि आप हॉर्न बजाते रहे ये आराम से सड़को के बीच में बाते करती रहती है जैसे दो औरते आपस में जब गुफ्तगू करती है तो सब भूल जाती है कि वो कहाँ खड़ी है कौन सुन रहा है बस गुफ्तगू करने में लगी रहती है ठीक उसी तरह  ये गाये भी भूल जाती है कि वो कहाँ खड़ी है और यहाँ के बैल तो सडको पे लेट के ऐसा आराम फरमाते है जैसे कह रहे हो कि भाई हम तो नवाबो क सहर से है जहाँ बैठ गए वो हमारी जगह है स्वाभाविक सी बात है नवाबो के सहर में रहते है तो कुछ तो असर होगा ही नवाबो कि अदाओ का  ये नज़ारा आपको लखनऊ के चैक , सदर ,निशातगंज में देखने को मिल जायेगे इनकी इन्ही अदाओ कि वजह से अक्सर सड़क दुर्घटनाये देखने को मिलती रहती है 
      इस शहर का  तीसरा प्राणी इन सबसे खतरनाक और होशियार है इस प्राणी का नाम बन्दर है जिसकी कुछ हरकते हमारे नेताओ से मिलती है जैसे नेता आपके दरवाज़े पर तब तक आते रहते है जब तक उन्हें वोट न मिल जाये ठीक उसी तरह ये भी आप के दरवाज़े छतों पर तब तक छलांग मरते रहते है जब तक इन्हें कुछ खाने को न मिल जाये या आप के कीमती सामान तोड़ने  को न मिल जाये द्यसरकार ने इन्हें पकड़ने का आदेश जारी क्या किया जैसे इन पे पहाड़ टूट गया हो सरकार और अपने नीता भाइयो के इस आदेश से एक बन्दर इस कदर नाराज़ हुआ कि उस्सने बदला लेने के लिए पिछले साल एक आठ महीने के बच्चे क आपरहण कर लिया और एक पेड़ से दुसरे पेड़ तक इसलिए छलांग मारता रहा ताकि पुलिश उसे ट्रेस न कर सके  उसकी मांगे इस प्रकार थीं
१ हमें घर के अन्दर तक टहलने कि अनुमति दी जाये
२ आप जो भी खाने का सामान लायें सबसे पहले उसका भोग हमें लगाया जाये
३ छतों पर से जाली हटाई जाये जिस कारण हमारे बहुत से भाई जख्मी हो चुके हैं
४ छतों और आँगन में कपडे फैलाएं जाएँ ताकी हम अपने खाली समय में उनसे खेल के अपना मनोरंजन कर सकें
बाद में बड़ी मशक्कत के बाद उस अपहरणकर्ता बन्दर से उस बच्चे को छुड़ाया गया तबसे सरकार ने बंदरों के ऊपर कार्यवाही न करके इंसानों पर ही और सुरक्षा करने का नियम बना डाला  इतना सब कुछ होने के बाद भी सरकार हमारे इन अनमोल जानवरों के हित में कोई कदम नहीं उठा पा रही है और न ही इन्हें गिनीज बुक में दर्ज करने का प्रयास कर रही है द्य अगर सरकार ने इनकी मांगों और सुविधाओ कि अनदेखी की तो आने वाले समय में इनके द्वारा सरकार का तख्ता पलट की पूरी संभावना है और सड़कों और छतों पर इनका ही एकछत्र राज होगा     

Tuesday, 16 July 2013

स्कूल के दिन भी क्या दिन थे

स्कूल के दिन भी क्या दिन थे स्कूल न जाने के बहाने बना ,स्कूल हमेशा लेट पहुचना ,होमवर्क कभी पूरा न करना और टीचर के पूछने  पर कहना "की सर वो हम होमवर्क कर रहे थे और कॉपी घर में ही भूल गये " वो बेंच पर खड़े होना वो स्कूल का बैंक मरना वो लंच से पहले टिफ़िन कर लेना वो तेअचेरो का नाम रकना भुत याद आते है वो स्कूल के दिन